बॉम्बे हाईकोर्ट ने पत्नी की हत्या के आरोपी व्यक्ति को गवाह के पक्षद्रोही होने पर बरी किया

Sharafat

9 Jun 2022 3:40 PM GMT

  • बॉम्बे हाईकोर्ट, मुंबई

    बॉम्बे हाईकोर्ट

    बॉम्बे हाईकोर्ट ने हाल ही में अपनी पत्नी की हत्या के दोषी एक व्यक्ति को बरी कर दिया, क्योंकि जिस व्यक्ति ने हत्या के संबंध में यह दावा किया था कि आरोपी ने उसके समक्ष अपना जुर्म कुबूल करते हुए न्यायेतर स्वीकारोक्ति की है, वह अपनी गवाही से मुकर गया।

    जस्टिस साधना एस. जाधव और जस्टिस मिलिंद एन. जाधव ने कहा कि

    " जहां तक ​​न्यायेतर स्वीकारोक्ति का सवाल है, यह इस साधारण कारण से विश्वसनीय नहीं है कि जिस व्यक्ति के समक्ष कथित रूप से न्यायेतर स्वीकारोक्ति की गई थी, वह अपने पहले के बयान से मुकर गया है और अभियोजन पक्ष ने उसे पक्षद्रोही गवाह (hostile witness) घोषित किया है।"

    संक्षेप में मामला :

    गवाह नं. 1, ने दावा किया था कि किसी ने उसे सूचित किया कि आरोपी ने उसकी पत्नी की हत्या कर दी है। वह इसकी जांच करने गया तो उसने पाया कि आरोपी अपने घर में अपनी पत्नी के शव के पास बैठा है जो खून से लथपथ पड़ा था। गवाह का दावा था कि पूछताछ के बाद आरोपी ने उसे बताया कि जब वह अपने एक रिश्तेदार के यहां से घर लौटा तो उसकी पत्नी ने दरवाजा नहीं खोला। उसने खिड़की से प्रवेश किया और पत्नी को गहरी नींद में पाया।

    इस पर उसने पत्नी के सिर और पीठ पर वार किया। बाद में उसने उस पर ध्यान नहीं दिया और अगली सुबह 6 बजे उसने देखा कि वह मर चुकी थी। गवाह नं 1 ने इसकी सूचना पुलिस को दी और चार्जशीट दाखिल की गई।

    हालांकि वास्तविक साक्ष्य में गवाह नं.1 ने आरोपी द्वारा उसे दिए गए खुलासे के बयान के बारे में बयान नहीं दिया और अदालत के समक्ष पेश किया कि उक्त घटना की जांच करने पर आरोपी ने उसे बताया कि उसकी पत्नी की मृत्यु हो गई है, इसलिए गवाह को होस्टाइल घोषित किया गया।

    अभियोजन पक्ष का यह भी कहना था कि आरोपी के कहने पर बांस की एक छड़ी भी बरामद हुई है।

    अदालत ने कहा कि न तो कानून के अनुसार कुछ भी साबित होता है और न ही यह माना जा सकता है कि आरोपी के कहने पर बरामद की गई बांस की छड़ी का इस्तेमाल उसकी मृत पत्नी पर हमला करने के लिए किया गया था।

    अदालत ने कहा कि इस तथ्य को छोड़कर कि मृतक का शव उसके घर में पाया गया था, इस निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए कोई अन्य सबूत नहीं है कि उसने अपनी पत्नी को चोट पहुंचाई।

    कोर्ट ने कहा,

    " भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 106 उचित संदेह से परे अपने मामले को साबित करने के लिए अभियोजन पक्ष पर प्रारंभिक बोझ से छूट नहीं देती है, जब तक अभियोजन अपने पैरों पर खड़ा होने में सक्षम नहीं होता है और इस तथ्य का निर्णायक सबूत नहीं देता है कि आरोपी अपनी पत्नी को लगी चोटों का ज़िम्मेदार है।

    ऐसे में आरोपी पर उन परिस्थितियों की व्याख्या करने की जिम्मेदारी नहीं होगी जिसमें उसकी पत्नी की मृत्यु हुई है और उसका शव आरोपी और मृतक के कब्जे वाले घर में मिला है। यह आपराधिक न्यायशास्त्र का एक स्थापित सिद्धांत है कि एक आरोपी को चुप्पी बनाए रखने का अधिकार है और अभियोजन पक्ष को अपने मामले को उचित संदेह से परे साबित करना होगा। वर्तमान मामले में बचाव पक्ष ने सुझाव दिया कि मृतक शराब की आदी थी और घर जाते समय वह नाले में गिर गई थी और उसे उक्त चोटें लगी थीं।"

    पीठ ने आगे राजस्थान राज्य बनाम राजाराम मामले पर भरोसा किया , जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि किसी अन्य सबूत की तरह, स्वीकारोक्ति के रूप में सबूत का मूल्य, उस गवाह की सत्यता पर निर्भर करता है, जिसे उसने दिया है।

    इस प्रकार मौजूदा मामले में यह माना गया कि अभियुक्त को एक पक्षद्रोही गवाह द्वारा कथित तौर पर दिए गए बयान के आधार पर दोषी नहीं ठहराया जा सकता। इस प्र्कार आरोपी को बरी कर दिया गया।

    केस टाइटल : सुरेश लडक़ भगत बनाम महाराष्ट्र राज्य


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