बॉम्बे हाईकोर्ट ने वक़ील की सेवाओं को "आवश्यक सेवाओं" की श्रेणी में रखने की मांग वाली याचिका ख़ारिज की

LiveLaw News Network

17 July 2020 9:31 AM GMT

  • बॉम्बे हाईकोर्ट ने वक़ील की सेवाओं को आवश्यक सेवाओं की श्रेणी में रखने की मांग वाली याचिका ख़ारिज की

    बॉम्बे हाईकोर्ट ने एडवोकेट की आपराधिक रिट याचिका को ख़ारिज कर दिया जिसमें वकीलों की सेवाओं को आवश्यक सेवाओं की श्रेणी में रखे जाने की मांग की थी ताकि लॉकडाउन के दौरान वकीलों की आवाजाही पर लगे प्रतिबंध से उन्हें छूट मिल सके।

    न्यायमूर्ति एसएस शिंदे और न्यायमूर्ति माधव जमदार ने मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि इस बारे में फ़ैसला करने का पूरा अधिकार राज्य की विधायिका के पास है और वही समुदाय के हित में इसे 'आवश्यक सेवाओं' की श्रेणी में इसे रख सकता है।

    याचिकाकर्ता की ओर से वक़ील करीम पठान ने कहा कि 29 जून को उन्हें एस्प्लेनेड के मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट के समक्ष ज़मानत के एक मामले में पेश होना था और वह अपने मित्र की मोटरसाइकिल से कोर्ट के लिए निकले पर वेस्टर्न हाइवे पर पुलिस ने उन्हे6 रोक दिया और वक़ील का अपना आईडी दिखाने के बावजूद पुलिस ने उनका ₹500 का चालान कर दिया।

    इसी वजह से उन्होंने वकीलों की सेवा को आवश्यक सेवा में शामिल करने का आदेश प्राप्त करने के लिए यह याचिका दायर की।

    कोर्ट ने महाराष्ट्र आवश्यक सेवा मेंटेनेंस अधिनियम, 2017 पर विचार किया और कहा,

    "…यह पूरी तरह राज्य की विधायिका का अधिकार है कि वह समुदाय के सर्वोत्तम हितों का ख़याल रखते हुए आवश्यक सेवाओं में किसे शामिल करती है।

    वर्तमान याचिका में याचिकाकर्ता ने प्रतिवादी नंबर 2 को आवश्यक रूप से निर्देश देकर उसे वकीलों की क़ानूनी सेवाओं को 'आवश्यक सेवाओं' में शामिल करने की माँग की है। हमारी राय में आवश्यक निर्देश की बात छोड़िए, राज्य विधायिका को निर्देश भी नहीं दिया जा सकता कि वह वकीलों की क़ानूनी सेवाओं को 'आवश्यक सेवाओं' में शामिल कर दे। इसलिए इस याचिका के माध्यम से जिस राहत की माँग की गई है वह नहीं दी जा सकती।"

    इसके बाद पीठ ने उस आग्रह की बात की जिसके तहत याचिकाकर्ता ने मांग की थी उसके ख़िलाफ़ जो चालान काटा गया था उसे वह रद्द कर दे। अदालत ने उसके इस आग्रह को ठुकरा दिया।

    अतिरिक्त लोक अभियोजक दीपक ठाकरे ने कहा कि प्रतिवादी याचिकाकर्ता ने जो आपत्ति उठाई है उस पर ग़ौर करने के लिए तैयार हैं। इस पर याचिकाकर्ता के वकील करीम पठान ने कहा कि इस बारे में राज्य सरकार के समक्ष व्यापक प्रतिवेदन पेश किया जाएगा।

    अंत में पीठ ने कहा कि प्रतिवादी याचिकाकर्ता के प्रतिवेदनों पर ग़ौर करने के लिए स्वतंत्र हैं और यह कहते हुए याचिका ख़ारिज कर दी।

    आदेश की प्रति डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें



    Next Story