बॉम्बे हाईकोर्ट ने दूसरी पत्नी को मैसेज करके तीन बार तलाक कहने वाले आरोपी पुलिसकर्मी को दी अग्रिम जमानत

LiveLaw News Network

12 Jun 2020 2:30 AM GMT

  • बॉम्बे हाईकोर्ट ने दूसरी पत्नी को मैसेज करके तीन बार तलाक कहने वाले आरोपी पुलिसकर्मी को दी अग्रिम जमानत

    बॉम्बे हाईकोर्ट ने मंगलवार को मुम्बई पुलिस के एक सब-इंस्पेक्टर को अपनी दूसरी पत्नी को मैसेज भेजकर तलाक देने के आरोप में अग्रिम जमानत दे दी है। इस पुलिसकर्मी पर आरोप है कि उसने मैसेज के जरिए तीन बार तलाक लिखकर अपनी दूसरी पत्नी को भेजा और कहा कि अब उनका तलाक हो गया है। इतना ही नहीं इस अधिकारी पर जबरन और अप्राकृतिक यौन संबंध बनाने का भी आरोप लगाया गया है।

    न्यायमूर्ति भारती डांगरे इस मामले में यूसुफ शेख की तरफ से दायर अग्रिम जमानत याचिका पर सुनवाई कर रही थी। शेख इस समय घाटकोपर पुलिस स्टेशन में तैनात है। उनकी दूसरी पत्नी ने उन पर आईपीसी की धारा 376 (2), 377, 323 और 504 के तहत अपराध करने का आरोप लगाया गया है। इसके अलावा मुस्लिम महिला संरक्षण अधिनियम की धारा 3 के तहत दंडनीय अपराध का भी आरोप लगाया गया है।

    शिकायतकर्ता के अनुसार, आवेदक अधिकारी पहले से ही शादीशुदा था और उसकी पत्नी परवीन से दो बच्चे थे। उसके बाद भी उसने 3 दिसंबर, 2018 को मुस्लिम रीति-रिवाज के अनुसार उसके साथ विवाह रचा लिया था। जनवरी 2019 में इस वैवाहिक रिश्ते के चलते वह गर्भवती हो गई थी परंतु आवेदक के दबाव में उसने गर्भपात करवा लिया। वह फिर से गर्भवती हुई और इस बार उसने 12 दिसंबर, 2019 को एक बच्ची को जन्म दिया। इसके बाद आवेदक ने शिकायतकर्ता के मोबाइल पर तलाक लिखकर तीन बार यह मैसेज भेजा और जिसके परिमणाम स्वरूप उनका विवाह खत्म हो गया है।

    इसके अलावा आवेदक पुलिस अधिकारी ने उसके पास आना-जाना भी बंद कर दिया और अपनी नवजात बेटी की देखभाल करने से भी इनकार कर दिया। शिकायतकर्ता पत्नी ने अप्राकृतिक यौन संबंध व जबरन यौन संबंध बनाने के आरोप भी लगाए हैं।

    जस्टिस डांगरे ने कहा कि-

    ''शिकायत में लगाए गए आरोपों के आधार पर शिकायतकर्ता का यह मामला नहीं बनता है कि उससे जबरन यौन संबंध बनाए गए हैंं और आईपीसी की धारा 376 के प्रावधान लागू होते हैं, क्योंकि उसने स्वीकार किया है कि यह सब मुस्लिम रीति-रिवाज के अनुसार विवाह करने के बाद किया गया था।''

    कोर्ट ने कहा कि अपनी पत्नी को फोन पर तलाक देना मुस्लिम महिला संरक्षण अधिनियम के प्रावधानों के तहत अपराध को आकर्षित करता है, परंतु यह एक जमानती अपराध है। इसलिए आवेदक को जमानत दी जा सकती है।

    अंत में, कोर्ट ने कहा-

    ''जहां तक धारा 376 (2) के तहत अपराध का संबंध है तो यह बस जबरन संभोग करने के समान है। शिकायतकर्ता के अनुसार, उसने मुस्लिम रीति-रिवाजों के अनुसार शादी करने के बाद ही आवेदक के साथ यौन संबंध बनाए। इन परिस्थितियों में आरोपी को हिरासत में लेकर पूछताछ करने की आवश्यकता नहीं है। इसके अलावा आवेदक के भागने की भी कोई संभावना नहीं है। प्राथमिकी को प्रथम दृष्टया पढ़ने से पता चलता है कि वह घाटकोपर पुलिस थाने में पुलिस सब इंस्पेक्टर के रूप में काम कर रहा है,जहां पर एफआईआर दर्ज हुई है, इसलिए आवेदक गिरफ्तारी की स्थिति में जमानत पर रिहा होने का हकदार है।''

    इस प्रकार, अदालत ने अग्रिम जमानत अर्जी की अनुमति दे दी है। साथ ही निर्देश दिया है कि गिरफ्तारी की स्थिति में शेख को 25,000 रुपये के व्यक्तिगत बांड प्रस्तुत करने के साथ-साथ इसी तरह के एक या दो जमानतदार की ज़मानत पर रिहा कर दिया जाए।


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