बिहार न्यायिक सेवा परीक्षा 2020 | चयन सूची के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका दायर, मुख्य परीक्षा नए सिरे से कराने की मांग

Avanish Pathak

14 Dec 2022 10:44 AM GMT

  • बिहार न्यायिक सेवा परीक्षा 2020 | चयन सूची के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका दायर, मुख्य परीक्षा नए सिरे से कराने की मांग

    पटना हाईकोर्ट के समक्ष एक रिट याचिका दायर की गई है, जिसमें बिहार लोक सेवा आयोग द्वारा घोषित 31वीं बिहार न्यायिक सेवा परीक्षा 2020 की चयन सूची (अक्टूबर 2022 में जारी) और मुख्य परीक्षा परिणाम (फरवरी 2021 में जारी) को रद्द करने की मांग की गई है।

    याचिका में मांग की गई है, बिहार सिविल सेवा (न्यायिक शाखा) (भर्ती) नियम, 1955 के नियम 15 (बी) और नौ मार्च, 2020 के विज्ञापन के खंड 4 (1) के सख्ती से पालन करते हुए नए सिरे से मुख्य परीक्षा आयोजित करने और उसके परिणाम घोषित करने, उसके बाद नए साक्षात्कार आयोजित करने, और एक नई चयन सूची घोषित करने और प्रकाशित करने का निर्देश बीपीएससी को दिया जाए।

    मौजूदा याचिका उन 19 उम्मीदवारों ने दायर की है, जो बीजेएसई 2020 के लिए उपस्थित हुए और साक्षात्कार दिया था, हालांकि अंतिम चयन सूची में जगह बनाने में विफल रहे। उन्होंने BPSC द्वारा चयन सूची प्रकाशित होने के बाद याचिका दायर की, जिसमें न्यूनतम योग्यता अंक / कट-ऑफ भी निर्दिष्ट किए गए थे।

    अभ्यर्थियों ने एडवोकेट अमृत कुमार व एडवोकेट एसएन कुमार के माध्यम से याचिका दायर की।

    यह दलील इस आधार पर दी गई है कि बीपीएससी ने 1955 नियमों के नियम 15 (बी) के उल्लंघन में बीजेएसई 2020 के मुख्य परिणाम जारी किए, और इसके परिणामस्वरूप साक्षात्कार के लिए उन उम्मीदवारों को बुलाया, जो 1955 के नियम 17 के अनुसार प्रथम दृष्टया साक्षात्कार के लिए पात्र नहीं थे और साथ में अंतिम चयन सूची की घोषणा की गई जो कानून की नजर में टिकाऊ नहीं है।

    [नोट: नियम 15 (बी) में कहा गया है कि अनारक्षित (सामान्य) श्रेणी और आरक्षित श्रेणी के बीच मुख्य परीक्षा कट-ऑफ/न्यूनतम अर्हक अंकों का अधिकतम अंतर 5% होगा। नियम 17 में यह व्यवस्था है कि केवल उन्हीं उम्मीदवारों को साक्षात्कार/मौखिक परीक्षा के लिए बुलाया जाएगा जो नियम 15(बी) के अनुसार परीक्षा में उत्तीर्ण हुए हों।]

    दरअसल, बीजेएससी 2020 की अधिसूचना के खंड 4 (ए) (2) में कहा गया है कि सभी आरक्षित श्रेणी के उम्मीदवारों, महिला और अस्थि विकलांग श्रेणी के उम्मीदवारों समेत, के लिए मुख्य परीक्षा के लिए प्रत्येक थ्योरी पेपर में न्यूनतम अर्हक अंकों में 5% अंक की छूट और सामान्य श्रेणी के उम्मीदवारों की तुलना में कुल अंकों में 5% कम अंक की छूट दी जाएगी। यह खंड 1955 के नियम के नियम 15(बी) के शासनादेश के अनुसार डाला गया था।

    हालांकि, याचिकाकर्ताओं का मामला यह है कि आरक्षित श्रेणी के उम्मीदवारों (ईडब्ल्यूएस, बीसी, ईबीसी, एससी) के न्यूनतम अर्हक अंकों को केवल 5% तक कम करने के लिए नियम 15 (बी) के आदेश के बावजूद, बीपीएससी ने उक्त । न्यूनतम योग्यता में 12% तक छूट दी और उन लोगों को भी साक्षात्कार के लिए बुलाया गया जो इसके लिए पात्र नहीं थे, क्योंकि उन्होंने नियम 15 (बी) के तहत योग्यता अंक के रूप में निर्धारित अंकों से कम अंक प्राप्त किए थे।

    याचिकाकर्ताओं ने यह भी आरोप लगाया कि बीजेएसई 2020 का साक्षात्कार/वाइवा वोस वैज्ञानिक तरीके से आयोजित नहीं किया गया, जैसा कि सुप्रीम कोर्ट ने कई निर्णयों में निर्धारित किया है।

    याचिकाकर्ताओं ने एक और आरोप यह था कि उन्हें साक्षात्कार के लिए 5-7 मिनट से अधिक समय नहीं दिया गया, जबकि सुप्रीम कोर्ट का कहना था कि एक उम्मीदवार के व्यक्तित्व का निष्पक्ष का मूल्यांकन करने और संतोषजनक परिणाम प्राप्त करने के लिए साक्षात्कार में प्रत्येक उम्मीदवार के लिए 25 से 30 मिनट के बीच समय लगना चाहिए।

    "यह महज संयोग नहीं हो सकता है कि इन 5-6 मिनटों में कुछ उम्मीदवारों को साक्षात्कार में 75-80% अंक दिए गए और उनमें से कुछ को मौखिक परीक्षा में 10-34 अंकों के साथ कम प्रतिशत अंक दिए गए, हालांकि उन्होंने लिखित परीक्षा में बहुत अच्छा प्रदर्शन किया है और उनमें से कुछ ने अंतिम योग्यता (लिखित+साक्षात्कार) से 70-80 अधिक अंक भी प्राप्त किए हैं। ऐसे मेधावी उम्मीदवार, जिन्होंने लिखित परीक्षा में इतना अच्छा प्रदर्शन किया है, मौखिक परीक्षा में इतना खराब प्रदर्शन कैसे कर सकते हैं कि वे साक्षात्कार में न्यूनतम अर्हक अंक 100 में से 35 अंक देने के ‌लिए भी उपयुक्त नहीं पाए जा सकते हैं.....।"

    याचिका साक्षात्कार में 35% की न्यूनतम योग्यता मानदंड तय करने संबंधी 1955 के नियमों के नियम 15 (सी) को संविधान के अनुच्छेद 14, 16 और 21 के खिलाफ और अल्ट्रा-वायर्स घोषित करने की मांग की गई है।

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