आपत्तिजनक सामग्री वाले सोशल मीडिया ग्रुप के सदस्य भी सहअपराधी बनाये जा सकते हैं : पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट
LiveLaw News Network
25 July 2020 9:42 PM IST
पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए कहा है कि यदि कोई व्यक्ति किसी सोशल मीडिया ग्रुप का सदस्य है और यदि उस ग्रुप में आपत्तिजनक वीडियो पोस्ट किया जाता है तो वह व्यक्ति भी अपराध में साझेदार होगा।
न्यायमूर्ति सुवीर सहगल भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धाराएं 354 (शील भंग करने के इरादे से महिला के खिलाफ जोर-जबर्दस्ती करने या बल प्रयोग करने), धारा 354-ए (यौन उत्पीड़न), धारा 384 (जबरन वसूली) और 120-बी (आपराधिक साजिश रचने) तथा बाल यौन अपराध संरक्षण कानून, 2012 की धारा-8 (यौन हमला) के तहत दर्ज प्राथमिकी के सिलसिले में अग्रिम जमानत की अर्जी की सुनवाई कर रहे थे। इस कोर्ट के समक्ष याचिकाकर्ता एक अविवाहित लड़की थी, जिसकी उम्र 26 साल थी।
मामले में तथ्य यह था कि एक 16 वर्षीया लड़की ने एक लिखित शिकायत की थी कि वह मैडम सुप्रिया नामक एक महिला के घर तीन साल पहले ट्यूशन के लिए जाया करती थी, जहां उसे शराब पीने, धूम्रपान करने के लिए मजबूर किया जाता था। यहां तक कि उसे इंजेक्शन भी लगाया जाता था। इस दौरान उस महिला ने नाबालिग बच्ची की अश्लील वीडियो बनाई और उसे ब्लैकमेल किया। उससे रुपये और गहने भी मांगे गये थे।
ट्यूटर ने वीडियो को उस सोशल मीडिया ग्रुप में अपलोड किया था, जिसमें चार अन्य पुरुषों के अलावा परमजीत कौर नामक यह याचिकाकर्ता भी सदस्य थी। पीड़िता ने कहा कि सभी आरोपी उससे छेड़छाड़ करने की धमकी देते थे और पैसे ऐंठ रहे थे। उसने कहा कि उसने इस घटना की रिपोर्ट पहले इसलिए नहीं की, क्योंकि वह डर गई थी कि उसके माता-पिता उसे डांट फटकार करेंगे। पीड़िता का बयान अपराध प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 164 के तहत दर्ज कराया गया था।
याचिकाकर्ता के वकील ने दलील दी थी कि याचिकाकर्ता निर्दोष है और उसे गलत तरीके से फंसाया गया है। वकील के अनुसार, याचिकाकर्ता एक निजी अस्पताल में कंप्यूटर ऑपरेटर के रूप में काम कर रही है और ड्यूटी से छूटने के बाद शिकायतकर्ता को लगभग 2-3 महीने पढ़ाया था। शिकायतकर्ता के पिता रोज उसे याचिकाकर्ता के घर छोड़ जाते थे और रात करीब 10 बजे उसे ले जाते थे।
एकल पीठ के न्यायाधीश ने कहा,
"सोलह वर्षीया लड़की के बयान पर प्राथमिकी दर्ज की गयी है, जिसमें याचिकाकर्ता को भी सह-आरोपी बनाया गया है। याचिकाकर्ता सहित सभी आरोपी उसे डराते-धमकाते थे, जिसकी वजह से वह इतना डर गयी थी कि तीन साल तक उसने अपने माता-पिता को भी इस घटना की जानकारी नहीं दी।"
एकल पीठ ने कहा कि पीड़िता अब 'मानसिक रूप से विचलित' है और 'यह संभवत: उस मानसिक आघात का परिणाम हो सकता है जो उसने याचिकाकर्ता और अन्य सह-आरोपियों के हाथों बीते वर्षों में झेले होंगे।'
बेंच ने याचिकाकर्ता को 'यौन परभक्षी' की संज्ञा देते हुए कहा, "तथ्य यह है कि याचिकाकर्ता उस समूह की सदस्य थी, जहां आपत्तिजनक वीडियो प्रसारित किया गया था, इसलिए वह भी अपराध में साझेदार है।"
बेंच ने कहा,
"एक युवती के जीवन निर्माण के वर्षों के दौरान उसके साथ जो दुर्व्यवहार किया गया, उसकी वजह से उस युवती का जीवन बर्बाद हो गया है।" बेंच ने आगे कहा कि अपराध की गम्भीरता और इस तथ्य को देखते हुए कि घटना के वक्त पीड़िता महज 13 साल की थी, याचिकाकर्ता अग्रिम जमानत की रियायत की हकदार नहीं है।"
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