क़ानून की पुस्तकों के प्रकाशकों से मद्रास हाईकोर्ट ने कहा, पुस्तकों में संशोधन पर रहें सतर्क, नहीं तो अदालत ले सकती है ग़लत फैसले

LiveLaw News Network

30 Dec 2019 7:44 AM GMT

  • क़ानून की पुस्तकों के प्रकाशकों से मद्रास हाईकोर्ट ने कहा, पुस्तकों में संशोधन पर रहें सतर्क, नहीं तो अदालत ले सकती है ग़लत फैसले

    एक रिट याचिका को ख़ारिज करते हुए मद्रास हाईकोर्ट ने पुस्तक प्रकाशकों से कहा कि वे पुस्तकों में सभी अधिनियमों, नियमों और विनियमनों में हुए सभी संशोधनों को शामिल करें ताकि कोई भ्रम नहीं रहे और जजों को सही आदेश पास करने में मदद मिले।

    मुख्य न्यायाधीश अमरेश्वर प्रताप साही और सुब्रमोनियम प्रसाद की बेंच ने कहा,

    "यह अदालत विभिन्न पुस्तक प्रकाशकों से अनुरोध करती है कि वे पुस्तकों में संशोधनों को शामिल करते हुए सावधान रहें नहीं तो अदालत कोई ग़लत निर्णय ले सकती है और यह लोगों के हितों के ख़िलाफ़ होगा।"

    ए अनंतकुमार जो कि सरकारी विभाग में कनिष्ठ सहायक हैं, उनकी याचिका पर अदालत ने यह कहा। अनंतकुमार के ख़िलाफ़ अनुशासनहीनता का मामला चलाया गया था। उनके ख़िलाफ़ लापरवाही का आरोप था और इसके लिए उसे कारण बताओ नोटिस जारी किया गया था और सेवा से निलंबित कर दिया गया था।

    याचिकाकर्ता ने इस कार्रवाई का विरोध किया और कहा कि उसके निलंबन का आदेश देनेवाले ज़िला मुंसिफ़-सह न्यायिक मजिस्ट्रेट को ऐसा करने का अधिकार नहीं है।

    अदालत ने कहा कि अगर कोई आदेश अधिकारक्षेत्र के बाहर जाकर दिया गया है तो अदालत को अनुच्छेद 226 के तहत अपने अधिकार के प्रयोग की अनुमति है। इस संबंध में भारत संघ बनाम कुनिसेट्टी सत्यनारायण (2006) 12 SCC 28 मामले में आए फ़ैसले का हवाला दिया गया।

    इस फ़ैसले में कहा गया था कि

    "सामान्य तौर पर किसी चार्ज शीट या कारण बताओ नोटिस के ख़िलाफ़ रिट याचिका की अनुमति नहीं है…क्योंकि यह किसी पक्ष के अधिकार को प्रभावित नहीं करता बशर्ते यह ऐसे किसी व्यक्ति ने जारी किया है जिसके पास ऐसा करने का अधिकार नहीं है।"

    मामले के बारे में अदालत ने कहा कि नियम 12(2) के प्रावधान 3 के अनुसार पीड़ित व्यक्ति से ऊंचे दर्जे का राज्य सेवा का कोई भी अधिकारी राज्य सेवा के उस व्यक्ति को चार्ज शीट जारी कर सकता है। इसके बावजूद कि वे दंड देनेवाले उचित अधिकारी नहीं हैं। अदालत ने कहा, इसलिए, कारण बताओ नोटिस ग़लत नहीं है।

    जहां तक निलंबन की बात है, अदालत ने कहा,

    "नियमों पर ग़ौर करने पर यह स्पष्ट है कि ज़िला मुंसिफ़-सह-न्यायिक मजिस्ट्रेट उस सहायक से ऊँचा ओहदा है पर वह नियुक्तिकर्ता अथॉरिटी से नीचे है जो इस मामले में प्रधान ज़िला जज है। नियम 12 के तहत ज़िला मुंसिफ़-सह-न्यायिक मजिस्ट्रेट को अनुशासनात्मक कार्रवाई करने का अधिकार है।"

    ध्यान देने की बात है कि नियम 14(a)(1) को 1954 में संशोधित किया गया। हालांकि, इस नियम को यहां ग़लत उद्धृत किया गया है जिसकी वजह से काफ़ी भ्रम की स्थिति पैदा हुई, पीठ ने कहा।




    Tags
    Next Story