लोकल बॉडी से कानूनी रूप से देय राशि की वसूली के लिए दायर मुकदमे पर मध्य प्रदेश पंचायत राज अधिनियम की धारा 10(2) के तहत रोक लागू नहीं होगीः मध्य प्रदेश हाईकोर्ट

Avanish Pathak

5 Jan 2023 7:02 AM GMT

  • लोकल बॉडी से कानूनी रूप से देय राशि की वसूली के लिए दायर मुकदमे पर मध्य प्रदेश पंचायत राज अधिनियम की धारा 10(2) के तहत रोक लागू नहीं होगीः मध्य प्रदेश हाईकोर्ट

    मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की इंदौर स्थित खंडपीठ ने हाल ही में एक फैसले में कहा कि अगर राशि स्थानीय निकाय की ओर से कानूनी रूप से देय हो तो मध्य प्रदेश पंचायत राज अधिनियम, 1993 की धारा 108 (2) के तहत रिकवरी के लिए मुकदमा वर्जित नहीं होगा।

    अधिनियम की धारा 108(2) ग्रामीण स्थानीय निकाय या उसके अधिकारी के खिलाफ कार्रवाई के कथित कारण की प्राप्ति की तारीख से छह महीने के बाद मुकदमा चलाने पर रोक लगाती है।

    मामला

    मामले में एक फोटोकॉपी सेंटर की मालकिन ने स्थानीय निकाय के लिए किए गए कार्य के लिए जनपद पंचायत कसरावद से 2,86,886 रुपये की रिकवरी के लिए मुकदमा दायर किया था।

    प्रतिवादी ने निचली अदालत में आदेश 7, नियम 11, सीपीसी के तहत एक आवेदन दायर किया और दलील दी कि अधिनियम, 1993 की धारा 108(2) के तहत मुकदमा वर्जित है। हालांकि दलील खारिज कर दी गई। पंचायत ने फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी।

    मप्र नगर पालिका अधिनियम, 1961 की धारा 319 और अधिनियम, 1993 की धारा 108 के मद्देनज़र जस्टिस प्रणय वर्मा ने कहा कि प्रावधान एक दूसरे के लिए समान (Pari Materia) हैं।

    अदालत ने कहा कि धारा 319 की व्याख्या नगर पालिका, मुरैना और अन्य बनाम शिवशंकर गुप्ता और आईबी मिश्रा बनाम नगर पंचायत सुहागपुर व अन्य में की गई है।

    जस्टिस वर्मा ने कहा,

    "दोनों प्रावधानों में मुकदमा दायर करने पर रोक है और दोनों में प्रदान की गई आकस्मिकताएं एक जैसी हैं। "इस अधिनियम के तहत कुछ भी किया या किया जाने वाला" शब्द दोनों प्रावधानों में निहित हैं और नगरपालिका अधिनियम की धारा 319 के बाद से निर्णयों में व्याख्या की गई है, जैसा ऊपर कहा गया है। उसमें निर्धारित सिद्धांत अधिनियम, 1993 की धारा 108 की व्याख्या पर लागू होंगे और पूरी ताकत से लागू होंगे।"

    अदालत ने कहा कि फोटोकॉपी सेंटर की मालकिन ने समय-समय पर अपने काम के बिल दिए हैं, लेकिन प्रतिवादियों ने उसका भुगतान नहीं किया है। प्रतिवादी की ओर से दायर सीपीसी के आदेश 7 नियम 11 के तहत आवेदन पर विचार करते हुए उक्त आरोपों को इस स्तर पर सही माना जाना चाहिए।

    कोर्ट ने कहा,

    "इस प्रकार वादी ने वह कार्य किया है जो उसे दिया गया था और प्रतिवादियों ने इसका लाभ उठाया है। यह जानते हुए कि उन्हें वादी को तय की गई राशि का भुगतान करना है, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। प्रतिवादी की ओर से भुगतान नहीं करने का कार्य अधिनियम, 1993 के प्रावधानों के तहत किया गया या कथित रूप से किया गया कार्य नहीं कहा जा सकता है।"

    कोर्ट ने कहा महिला को कानूनी रूप से देय राशि को रोकना ऐसा कार्य नहीं कहा जा सकता है।

    कोर्ट ने कहा

    "चूंकि प्रतिवादियों की कार्रवाई अधिनियम, 1993 के तहत की गई या कथित तौर पर की गई कार्रवाई नहीं कही जा सकती है, धारा 108 (2) के तहत रोक लागू नहीं होगी और मुकदमे पर इस आधार पर रोक नहीं लगेगी कि कार्रवाई के कारण के प्राप्ति की तारीख से छह महीने की अवधि से परे इसे स्थापित किया गया है।"

    पंचायत ने पहले तर्क दिया था कि 1993 के अधिनियम के प्रावधानों के तहत फोटोकॉपी सेंटर की मालकिन को काम सौंपा गया था। इसलिए, 1993 के अधिनियम की धारा 108 (2) के प्रावधान उसके ‌लिए बाध्यकारी थे, जिसके तहत उसे मुकदमा का कारण पैदा होने के छह माह के भीतर मुकदमा दायर करना चाहिए था। इसके बजाय, उसने दो साल बाद मुकदमा दायर किया। इस प्रकार, यह तर्क दिया गया कि उसका मुकदमा परिसीमा द्वारा वर्जित था।

    इसके विपरीत, महिला ने कहा कि उस राशि को रोके जाने की पंचायत की कार्रवाई, जिसकी वह कानूनी रूप से हकदार थी, 1993 के अधिनियम के तहत नहीं कही जा सकती है। इसलिए, यह तर्क दिया गया कि याचिकाकर्ता द्वारा उठाई गई आपत्ति टिकाऊ नहीं थी।

    अदालत ने कहा कि उसे नहीं लगता कि ट्रायल कोर्ट ने पंचायत द्वारा दायर आवेदन को खारिज करके कोई अवैधता की है।

    केस टाइटल: जनपद पंचायत कसरावद बनाम शकुंतला

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