बार लीडर गलती करने वाले वकीलों का बचाव करके भगवान बनने की कोशिश करते हैं : मद्रास हाईकोर्ट नेअवमानना मामले में वकील को दोषी माना

LiveLaw News Network

19 Dec 2021 9:37 AM GMT

  • God Does Not Recognize Any Community, Temple Shall Not Be A Place For Perpetuating Communal Separation Leading To Discrimination

    मद्रास हाईकोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट के वकील आर कृष्णमूर्ति के खिलाफ स्वत: आपराधिक अवमानना ​​याचिका में मद्रास हाईकोर्ट ने बार और बेंच के बीच संबंधों के बारे में कुछ प्रासंगिक टिप्पणियां करते हुए कहा कि दोनों के बीच परस्पर संबंध किसी भी कीमत पर बनाए रखे जाने चाहिए।

    जस्टिस आर. हेमलता और जस्टिस पी.एन. प्रकाश की खंडपीठ ने राज्य में अधिवक्ताओं के खिलाफ दर्ज मामलों की बढ़ती संख्या पर चिंता जताई। आंकड़ों के मुताबिक इस साल जनवरी से अप्रैल तक अधिवक्ताओं के खिलाफ 263 मामले दर्ज हुए हैं।

    न्यायिक अवमानना अधिनियम, 1971 (Contempt of Court Act, 1971) की धारा 2 (सी) (i) [अदालत को बदनाम करना] और 2 (सी) (iii) [न्याय के प्रशासन में हस्तक्षेप करना] के तहत अवमानना करने वाले को दोषी ठहराते हुए बेंच ने कहा कि मजिस्ट्रेट से लेकर सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश तक बार से आए हैं।

    कोर्ट ने कहा,

    "हम बार को एक स्वतंत्र और निडर निकाय के रूप में देखते हैं और मानते हैं कि जब न्यायपालिका को बदनाम किया जाता है और दूसरे लोग इसे निशाना बनाते हैं तो बार न्यायपालिका की रक्षा करेगा।"

    अदालत ने बार के कुछ सदस्यों के आपराधिक आचरण के बारे में टिप्पणी की,

    "... यह भी दुर्भाग्यपूर्ण है कि बार लीडर गलती करने वाले अधिवक्ताओं का बचाव करके खुद उनके लिए भगवान बनने की कोशिश करते हैं, जो खुद अंदर से संस्था तोड़ने में शामिल होते हैं। हमें वास्तव में डर है कि अगर बार, जो बेंच का स्रोत है, वह अपराधी और भ्रष्ट होगा तो इससे बेंच को खराब परिणाम मिलेंगे। यह लोकतंत्र के ताबूत में आखिरी कील होगी। उसके बाद यह कहने का कोई मतलब नहीं होगा कि न्यायपालिका में गिरावट आ गई।"

    अदालत ने हाल की घटनाओं के बारे में अपनी आपत्ति व्यक्त की जहां वकीलों पर पुलिस ने मामला दर्ज किया।

    जस्टिस एम. धंदापानी ने 15 जून, 2021 को मां-बेटी की अग्रिम जमानत याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए कानूनी पेशे के बिगड़ते मानकों के बारे में कुछ टिप्पणियां कीं, जबकि बार काउंसिल ऑफ तमिलनाडु और पुडुचेरी को एक स्टेटस रिपोर्ट दायर करने के लिए कहा।

    एडवोकेट आर कृष्णमूर्ति के खिलाफ अवमानना ​​का मामला मद्रास हाईकोर्ट के जस्टिस एम. धंदापानी के बारे में व्हाट्सएप पर फैलाए गए एक बदनाम ऑडियो संदेश के आधार पर शुरू किया गया था।

    ऑडियो में आरोपी अधिवक्ता की टिप्पणी के अनुसार, जस्टिस एम. धंदापानी एक महिला वकील और उसकी बेटी की अग्रिम जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए निष्पक्ष नहीं थे, जिस अपराध के लिए बेटी पर आरोप लगाया गया था, वह बिना आवश्यक पास के बाहर जाकर कोविड प्रोटोकॉल के उल्लंघन का मामला था। मां पर अपनी बेटी की हरकतों का बचाव करते हुए पुलिस को गाली देने का आरोप लगाया गया था।

    आरोपी अधिवक्ता ने ऑडियो रिकॉर्डिंग में उल्लेख किया है कि जस्टिस एम. धंदापानी के लिए मामले से खुद को अलग करना समझदारी है क्योंकि उन्होंने कानूनी बिरादरी के बारे में अपमानजनक टिप्पणी करते हुए मामले में पुलिस का पक्ष चुना है। आरोपी वकील ने यहां तक ​​चेतावनी भी दी कि अगर वह टिप्पणी अदालत के आदेश में दर्ज की गई तो उससे संबंधित टिप्पणी को हटाने के लिए वह सुप्रीम कोर्ट के समक्ष एक विशेष अनुमति याचिका दायर करेगा।

    इस मुद्दे पर, खंडपीठ ने नोट किया कि सुनवाई के दौरान या अपने चैंबर में न्यायाधीश से अपॉइंटमेंट लेने के बाद अपने विरोध को सम्मानजनक तरीके से दर्ज करने के बजाय, उन्होंने ऑडियो क्लिपिंग प्रसारित करके जस्टिस एम धंधापानी पर आरोप लगाए।

    कथित अवमानना ​​के आरोपों पर अदालत ने पाया कि पद्महसिनी बनाम सीआर श्रीनिवास, (1999) 8 एससीसी 711 पर भरोसा करके निराधार रूप से पक्षपात का आरोप लगाने से अदालत को बदनाम करने का प्रभाव पड़ता है। इस आरोप पर कि मां-बेटी की अग्रिम जमानत याचिकाओं में न्यायिक कार्यवाही में अदालत के नियत समय में हस्तक्षेप किया गया, वकील दोषी नहीं है क्योंकि उन्होंने सुनवाई के बाद व्हाट्सएप संदेश को रिकॉर्ड और प्रसारित किया।

    न्याय प्रशासन में हस्तक्षेप करने के तीसरे आरोप पर अदालत ने अधिवक्ता के आचरण और हरिदास दास बनाम उषा रानी बानिक और अन्य, (2007) 14 एससीसी 1 में शीर्ष अदालत के फैसले के संदर्भ में निम्नलिखित बातें नोट की,

    "... प्रतिवादी ने विद्वान न्यायाधीश से जो कहा था, वह यह है कि यदि वह (विद्वान न्यायाधीश) आदेश में अपनी पीड़ा दर्ज कर रहे हैं तो वह मामले को सुप्रीम कोर्ट ले जाएगा। यह हमारे विचार में स्पष्ट रूप से "किसी अन्य तरीके से" न्याय के प्रशासन में हस्तक्षेप करने के समान है, जैसा कि न्यायिक अवमानना अधिनियम, 1971 की धारा 2 (सी) (iii) के तहत प्रदान किया गया है, इसलिए हम प्रतिवादी को तीसरे आरोप में दोषी मानते हैं।"

    इसलिए कोर्ट ने दोनों आरोपों के लिए जिसमें वकील दोषी पाया गया, 4,000/- रुपए का जुर्माना देने का निर्देश दिया गया। जुर्माने की राशि का भुगतान करने में विफल रहने पर उन्हें अपने खिलाफ साबित किए गए प्रत्येक आरोप के लिए एक सप्ताह का साधारण कारावास भुगतना होगा।

    इसके अलावा अदालत ने आरके आनंद बनाम रजिस्ट्रार, दिल्ली हाईकोर्ट, (2009) 8 एससीसी 106 पर भरोसा करते हुए कहा कि प्रतिवादी को आदेश की तारीख से एक वर्ष की अवधि के लिए मद्रास हाईकोर्ट में प्रैक्टिस करने की अनुमति नहीं दी जाएगी।

    कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया कि अवमानना ​​करने वाले के खिलाफ उचित कार्रवाई के लिए फैसले की प्रति सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन और बार काउंसिल ऑफ केरल भेजी जाए।

    केस शीर्षक: मद्रास उच्च न्यायालय बनाम आर कृष्णमूर्ति

    केस नं: स्वत: संज्ञान लेना। कंट। पेटन। संख्या 766/2021

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