NLSIU में 25 प्रतिशत डोमिसाइल आरक्षण के खिलाफ बार काउंसिल ऑफ इंडिया कर्नाटक हाईकोर्ट पहुंची
LiveLaw News Network
12 Aug 2020 4:00 PM IST
बार काउंसिल ऑफ इंडिया (बीसीआई) ने कर्नाटक हाईकोर्ट में एक याचिका दायर कर मांग की है कि नेशनल लॉ स्कूल ऑफ इंडिया (संशोधन) एक्ट 2020 (जो कर्नाटक के छात्रों के लिए 25 प्रतिशत हॉरिजान्टल डोमिसाइल याने एक समान निवास स्थान के आधार पर आरक्षण की अनुमति देता है) को भारत के संविधान के उल्लंंघन करने के रूप मेंं घोषित किया जाए।
याचिका में दावा किया गया है कि बीसीआई से परामर्श लिए बिना ही राज्य ने अधिनियम में संशोधन कर दिया है। इस संशोधन के तहत सामान्य वर्ग, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति श्रेणियों को एक समान निवास स्थान के आधार पर आरक्षण दे दिया गया है। इसके आधार पर, नेशनल लॉ स्कूल ऑफ इंडिया यूनिवर्सिटी (एनएलएसआईयू) ने सीट मैट्रिक्स पर एक संशोधित अधिसूचना जारी की है और कर्नाटक के छात्रों के लिए क्षैतिज रूप से या एक समान रूप से 25 प्रतिशत आरक्षण और सामान्य मेरिट कट ऑफ स्कोर में 5 प्रतिशत की रियायत प्रदान कर दी है।
याचिका में आगे यह भी कहा गया है कि इस संशोधन ने 'लोकशा बनाम संयोजक, कॉमन लॉ एडमिशन टेस्ट (सीएलएटी-2009)' के मामले में कर्नाटक हाईकोर्ट के फैसले को अमान्य घोषित कर दिया है।
इसके अलावा यह भी कहा गया है कि कर्नाटक राज्य ने अपनी स्वयं की स्टेट लाॅ यूनिवर्सिटी में निवास स्थान के आधार पर आरक्षण (डोमिसाइल) प्रदान नहीं किया है,इस प्रकार एनएलएसआईयू ने यह आरक्षण देकर पूरी तरह से भेदभाव किया है। यह भी कहा गया है कि संशोधित अधिनियम याचिकाकर्ता (बीसीआई) के वैधानिक कामकाज में एक गंभीर हस्तक्षेप करते हुए इसका उल्लंघन करता है।
याचिका में तर्क दिया गया है कि वर्ष 1996 से 2017 के बीच में एनएलएसआईयू से 20 स्कालर निकले हैं, जिनमें से सात कर्नाटक राज्य से हैं। संस्था का असली राष्ट्रीय चरित्र न केवल उसके वैधानिक घोषित उद्देश्यों से प्रकट होता है बल्कि उसकी प्रैक्टिस और शासन संरचना में भी प्रकट होता है।
मार्च माह में, कर्नाटक राज्य विधानसभा ने नेशनल लॉ स्कूल ऑफ इंडिया (संशोधित) एक्ट, 2020 पारित किया था। जिसे 4 मई को कर्नाटक के राज्यपाल की स्वीकृति मिल गई थी। इस संशोधन के अनुसार एनएलएसआईयू को कर्नाटक के छात्रों के लिए एक समान रूप से पच्चीस प्रतिशत सीटें आरक्षित करनी थी।
इस संशोधन में नेशनल लॉ स्कूल ऑफ इंडिया एक्ट की धारा 4 में निम्नलिखित प्रावधान को शामिल किया था- ''इस अधिनियम और इसके तहत बनाए गए नियमों में चाहे कुछ भी निहित हो, स्कूल को कर्नाटक के छात्रों के लिए क्षैतिज रूप या एक समान रूप से पच्चीस प्रतिशत सीटें आरक्षित करनी होंगी।''
इस खंड की व्याख्या के अनुसार, ''कर्नाटक के छात्र'' का अर्थ है एक छात्र जिसने राज्य में मान्यता प्राप्त शैक्षणिक संस्थानों में से किसी एक संस्थान में योग्यता परीक्षा से पहले कम से कम दस साल तक अध्ययन किया हो।''
इस याचिका में एनएलएसआईयू द्वारा बीए एलएलबी (ऑनर्स) और एलएलएम प्रोग्राम के लिए जारी संशोधित सीट मैट्रिक्स को भी रद्द करने की मांग की है। इस संबंध में एनएलएसआईयू ने 4 अगस्त को अधिसूचना जारी की थी।
इसी मामले को उठाते हुए दो अन्य व्यक्तियों ने भी दो अलग-अलग याचिका दायर की हैं। जिन पर 13 अगस्त को न्यायमूर्ति कृष्ण दीक्षित की अध्यक्षता वाली पीठ द्वारा सुनवाई की जाएगी।