बार काउंसिल ऑफ दिल्ली ने केंद्र सरकार से कृषि कानूनों को वापस लेने और सिविल न्यायालयों में जाने के अधिकार को बहाल करने की मांग की

LiveLaw News Network

14 Dec 2020 4:31 PM GMT

  • Telangana High Court Directs Police Commissioner To Permit Farmers Rally In Hyderabad On Republic Day

    बार काउंसिल ऑफ दिल्ली ने एक बयान जारी कर केंद्र सरकार से विवादास्पद कृषि कानूनों को वापस लेने और अदालतों से न्याय पाने के लिए किसानों के अधिकारों को बहाल करने का आग्रह किया है।

    चूंकि अधिनियमों को जल्दबाजी में पारित किया गया था, इसलिए काउंसिल ने मांग की है कि इन अधिनियमों में देश के किसानों के परामर्श और सलाह करने के बाद संशोधन करने की आवश्यकता है, ताकि एक समुदाय के रूप में उनके अधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित हो सके।

    कांउसिल ने कहा कि,'

    'देश भर में कानूनी बिरादरी को लगता है कि सरकार को कृषि कानूनों की विभिन्न धाराओं को लेकर किए जा रहे किसान आंदोलन का हल निकालने के लिए ठोस कदम उठाने चाहिए। देश के वकीलों को लगता है कि सरकार ने जल्दबाजी में ही फार्मर एक्ट का मसौदा तैयार किया है, इसलिए इन पर फिर से विचार किया जाना चाहिए और फार्मर एसोसिएशन के परामर्श के बाद जल्द से जल्द इनमें सुधार किया जाना चाहिए ताकि किसान समुदाय को अधिक से अधिक लाभ मिल सकें।''

    यह ध्यान दिया जा सकता है कि कृषक उत्पाद व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) अधिनियम, 2020 के तहत, अब उन सभी विवादों को उप-विभागीय मजिस्ट्रेट (एसडीएम) या कलेक्टरों के समक्ष रखा जाएगा,जिन पर सविल अदालतों द्वारा सुनवाई की जाती थी।

    इस तरह के दमनकारी कानून को पेश करने के लिए बार काउंसिल ने सरकार को चैस्टाइज किया है। कांउसिल द्वारा जारी बयान में कहा गया है कि,

    ''कानूनी बिरादरी की चिंता का मुख्य कारण अधिकारियों द्वारा किसानों के विवादों को सुलझाने को लेकर है जो हमेशा सरकार के दबाव में काम करते हैं और इस तरह सेे किसान समुदाय हमेशा उनकी दया पर निर्भर रहेगा। सरकार का उक्त कृत्य बहुत ही निंदनीय है क्योंकि यह संविधान की जड़ों तक जाता है जो न्यायिक प्रणाली के माध्यम से किसी भी तरह के विवाद को निपटाने के लिए प्रत्येक नागरिक को अदालत में आने का अधिकार देता है जो लोकतंत्र की थर्ड विंग है।''

    काउंसिल ने सुझाव दिया है कि कृषकों से परामर्श के बाद अधिनियमों में निम्नलिखित परिवर्तन किए जाएः

    -एमएसपी को मौखिक आश्वासनों के बजाय अधिनियम में शामिल किया जाना चाहिए।

    -निजी व्यापारियों को एमएसपी से 5 प्रतिशत ज्यादा की दर से खरीद करनी चाहिए और खरीद के समय सभी राशि का भुगतान आरटीजीएस से किया जाना चाहिए।

    -कम राशि या कम माप देने के लिए दंडात्मक खंड प्रदान किया जाना चाहिए, जिसमें 3-5 साल की सजा का प्रावधान और किसान की बकाया राशि की वसूली के लिए व्यापारी की संपत्ति को जब्त करना शामिल होना चाहिए।

    -प्रत्येक ब्लॉक में अधिक से अधिक गोदाम स्थापित किए जाए ताकि जो किसान अपनी सभी उपज को बेचना नहीं चाहते हैं, वे कुछ समय के लिए स्टोर कर सकें।

    -प्याज, आलू और टमाटर सहित सभी आवश्यक वस्तुओं को आवश्यक वस्तु अधिनियम से बाहर नहीं रखा जाना चाहिए।

    -फार्मर एक्ट से संबंधित सभी विवादों पर केवल न्यायालय परिसर में अतिरिक्त जिला न्यायाधीशों की अध्यक्षता वाली विशेष अदालतों द्वारा सुनवाई की जानी चाहिए,जिसके लिए बीस रूपये की मामूली अदालती फीस के जरिए याचिका दायर की जा सकें।

    -समझौताकारी बोर्ड की अध्यक्षता अतिरिक्त जिला न्यायाधीश द्वारा की जानी चाहिए, न कि तहसीलदार द्वारा और 3 सप्ताह के भीतर कार्यवाही पूरी होनी चाहिए।

    -कृषि क्षेत्र की प्रकृति के आधार पर हर फसल का सरकार द्वारा अनिवार्य बीमा होना चाहिए या अपने स्वयं के बैंक के माध्यम से सरकार को फसलों, बीज, उर्वरक आदि के बीमा के लिए बिना गारंटी के आसान ऋण की सुविधा प्रदान करनी चाहिए।

    -बिजली में सब्सिडी जारी रहनी चाहिए और उचित लाभ के साथ किए गए खर्चों की अधिकतम सीमा को ध्यान में रखने के बाद एमएसपी की गणना की जानी चाहिए।

    -गन्ने सहित किसी भी प्रकार की फसलों के भुगतान में 15 दिनों से अधिक की देरी नहीं होनी चाहिए।

    -कृषि भूमि को गिरवी रखने की अनुमति न दी जाए और इसे गैर-निष्पादन योग्य घोषित किया जाना चाहिए।

    अपने मानसून सत्र में, संसद ने तीन कृषि कानूनों को जल्दबाजी में पारित किया था,जिसमें मूल्य आश्वासन और कृषि सेवाओं पर किसान (सशक्तिकरण और संरक्षण) अनुबंध अधिनियम, 2020, कृषक उत्पाद व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) अधिनियम, 2020 और आवश्यक वस्तु (संशोधन) अधिनियम, 2020 शामिल हैं।

    जबकि सरकार ने दावा किया था कि इन अधिनियमों को एक सकारात्मक बदलाव लाने के लिए पेश किया गया था, किसान असहमत हैं, क्योंकि उन्हें डर है कि ये अधिनियम उनकी आजीविका को गंभीर रूप से प्रभावित करेंगे।

    किसानों को सबसे बड़ी आशंका यह है कि उन्हें अपनी उपज के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) नहीं मिलेगा। उन्हें डर है कि इससे कृषि क्षेत्र का एक निजीकरण होगा, क्योंकि जिन मंडियों में किसान वर्तमान में अपनी उपज बेचते हैं, उनका अस्तित्व समाप्त हो जाएगा। अंततः इसका मतलब यह होगा कि पैदावार के लिए कीमतें अपने लाभ के लिए निजी संस्थाओं द्वारा निर्धारित की जाएंगी।

    इससे पहले, बार काउंसिल ऑफ दिल्ली ने चल रहे किसान आंदोलन का समर्थन किया था। कांउसिल ने कहा था कि वह ''किसानों की मांग का पूरी तरह से समर्थन करती है'' और ''भारत सरकार से किसान समुदाय की वास्तविक मांगों पर विचार करने का आग्रह करती है।''

    बार काउंसिल ऑफ पंजाब एंड हरियाणा ने भी किसानों के पक्ष में अपना समर्थन व्यक्त किया था और केंद्र सरकार से तीनों अधिनियमों को तुरंत वापस लेने का अनुरोध किया था।

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