(बलात्कार का प्रयास) निर्धारित साठ दिन की अवधि के भीतर अंतिम रिपोर्ट दायर न करने पर आईपीसी की धारा 511 रीड विद 376 का आरोपी बन जाता है वैधानिक जमानत का हकदार : केरल हाईकोर्ट
LiveLaw News Network
31 Aug 2020 6:48 PM IST
केरल हाईकोर्ट ने माना है कि साठ दिनों की अवधि के भीतर अंतिम रिपोर्ट दायर न करने पर बलात्कार के प्रयास (धारा 511 रीड विद 376) का आरोपी वैधानिक जमानत का हकदार बन जाता है।
अदालत इस मामले में बलात्कार के प्रयास के आरोपी एक व्यक्ति की तरफ से दायर जमानत याचिका पर विचार कर रही थी। आरोपी ने तर्क दिया था कि वह सीआरपीसी की की धारा 167 (2) (ए) (ii) के तहत वैधानिक जमानत का हकदार है क्योंकि उसे 19 जून 2020 को गिरफ्तार किया गया था और साठ दिन की हिरासत की अवधि खत्म हो गई है।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 167 (2) (ए) के अनुसार, मजिस्ट्रेट उस मामले की जांच के संबंध में 60 दिनों की अवधि से परे अभियुक्त को हिरासत में रखने को अधिकृत नहीं कर सकता है, जिसमें अधिकतम कारावास की सजा दस वर्ष है। इस प्रकार न्यायालय के समक्ष कानूनी मुद्दा यह था कि आईपीसी की धारा 376 की 511 और धारा 306 की 511 के तहत दी जाने वाली अधिकतम सजा दस साल हो सकती है या नहीं (under Section 511 of 376 and Section 511 of 306 IPC is ten years or not)।
अदालत ने आईपीसी की धारा 57 पर ध्यान दिया, जिसमें कहा गया है कि सजा की शर्तों के अंशों की गणना में, आजीवन कारावास को बीस साल के कारावास के बराबर माना जाएगा।
अदालत ने आगे कहा कि आईपीसी की धारा 511 में कहा गया है कि जो कोई भी इस संहिता के तहत आजीवन कारावास या कारावास के साथ दंडनीय अपराध करने का प्रयास करेगा, या ऐसा अपराध करेगा, और इस तरह के प्रयास में अपराध के प्रति कोई भी कार्य करेगा, ऐसे में जहां इस तरह के प्रयास की सजा के लिए इस संहिता में कोई भी प्रावधान नहीं किया गया है, तो अपराध के लिए प्रदान किए गए किसी भी तरह के कारावास के साथ उसे दंडित किया जाएगा। ऐसी अवधि आजीवन कारावास की आधी अवधि तक बढ़ाई जा सकती हैै, या जैसा भी मामला हो सकता है, उस अपराध के लिए प्रदान किए गए कारावास की सबसे लंबी अवधि की आधी अवधि भी हो सकती है, या अपराध के प्रदान किया गया जुर्माना भी हो सकता है, या सजा व जुर्माना,दोनों हो सकते हैं।
पीठ ने कहा कि लोक अभियोजक ने जमानत याचिका का विरोध करते हुए कहा था कि आईपीसी की धारा 376 (2) में आजीवन कारावास के बारे में एक स्पष्टीकरण है कि 'उस व्यक्ति के प्राकृतिक जीवन के शेष के रूप में'। ऐसे में सीआरपीसी की धारा 167 (2) के तहत 60 दिनों की गणना करने के लिए आईपीसी की धारा 57 को नहीं अपनाया जा सकता है। ऐसे में अगर लोक अभियोजक के इस तर्क को स्वीकार कर लिया जाता है तो आईपीसी की धारा 376 (2) की 511 के तहत और धारा 376 (2) के तहत दी जाने वाली सजा एक समान हो जाएगी।
अदालत ने राकेश कुमार पॉल बनाम असम राज्य (2017 (4) केएचसी 470) का हवाला देते हुए कहा कि सीआरपीसी की धारा 167 का अन्वयन करते हुए उदार दृष्टिकोण जरूरी है। जस्टिस पीवी कुन्हीकृष्णन ने कहा कि-
''यह सच है कि आईपीसी की धारा 376 (2) में यह उल्लेख किया गया है कि आजीवन कारावास का अर्थ उस व्यक्ति के प्राकृतिक जीवन के शेष के लिए कारावास है। यह एक निर्धारित स्थिति है कि आजीवन कारावास का अर्थ उस व्यक्ति के शेष जीवन के लिए कारावास है। उस पर कोई विवाद नहीं है। लेकिन जब भारतीय दंड संहिता में एक विशेष प्रावधान है, जो कहता है कि सजा की शर्तों के अंशों की गणना में, आजीवन कारावास को बीस साल के कारावास के बराबर माना जाएगा तो हम उस प्रावधान को नजरअंदाज नहीं कर सकते हैं।
हालांकि सीआरपीसी की धारा 167 (2) के तहत हिरासत अवधि की गणना करते समय भी आजीवन कारावास की व्याख्या यही है कि उस व्यक्ति के प्राकृतिक शेष जीवन के लिए कारावास। परंतु जैसा कि शीर्ष न्यायालय ने कहा है कि सीआरपीसी की धारा 167 (2) के प्रावधानों की व्याख्या उदार होनी चाहिए। ऐसे में सीआरपीसी की 167 (2)(ए) (ii) के साथ आईपीसी की धारा 376 की 511 (Section 511 of 376 IPC) व साथ में आईपीसी की धारा 57 को पढ़ने पर, यह स्पष्ट है कि एक अभियुक्त जिस पर आईपीसी की 376 की 511 (Section 511 of 376 IPC) के तहत किए गए अपराध का मामला बनाया गया है उसे केवल दस साल की अवधि के लिए कारावास हो सकता है। यदि ऐसा है, तो याचिकाकर्ता इस मामले में वैधानिक जमानत का हकदार है। याचिकाकर्ता के पहले रिमांड के बाद, 60 दिन समाप्त हो गए हैं। याचिकाकर्ता को 19 जून 2020 को गिरफ्तार किया गया था। आज के दिन तक इस मामले में अभी अंतिम रिपोर्ट दाखिल नहीं की गई है। इसलिए, याचिकाकर्ता सीआरपीसी की धारा 167 (2) (ए) (ii) के तहत वैधानिक जमानत का हकदार है। इसलिए, इस जमानत आवेदन को निम्नलिखित कठोर शर्तों के साथ अनुमति दी जाती है। "
केस का विवरण-
केस का नाम- विनेश बनाम केरल राज्य
केस नंबर-बेल अपील नंबर 4876/ 2020
कोरम- जस्टिस पीवी कुन्हीकृष्णन
प्रतिनिधित्व- एडवोकेट लथेश सेबेस्टियन, पीपी रेनजिथ टीआर