''कम से कम मरने के बाद वह सम्मान की हकदार" हर व्यक्ति को संविधान ने यह सुविधा दी है''; कलकत्ता हाईकोर्ट ने मृतक गर्भवती महिला का दूसरी बार पोस्टमार्टम करने का आदेश दिया

LiveLaw News Network

15 Jan 2021 2:15 PM GMT

  • कम से कम मरने के बाद वह सम्मान की हकदार हर व्यक्ति को संविधान ने यह सुविधा दी है; कलकत्ता हाईकोर्ट ने मृतक गर्भवती महिला का दूसरी बार पोस्टमार्टम करने का आदेश दिया

    कलकत्ता हाईकोर्ट ने पिछले महीने एक गर्भवती महिला के शरीर पर दूसरा पोस्टमार्टम करने का आदेश दिया (जो अप्रैल 2020 में मर गई थी) ताकि उसकी मौत के सही कारणों का पता लगाया जा सके।

    न्यायमूर्ति संजीब बनर्जी और न्यायमूर्ति अरिजीत बैनर्जी की खंडपीठ ने इस बात पर नाराजगी व्यक्त की है कि मृतका को स्नेह, देखभाल और सम्मान का वह आनंद नहीं मिला,जो कि संविधान के अनुसार हर नागरिक को मिलना चाहिए,भले ही उसका स्टे्टस कुछ भी हो।

    कोर्ट ने विशेष रूप से कहा,

    ''(वह) भारत की एक नागरिक थी ... हो सकता है वह एंटाइटल्ड क्लास से संबंध न रखती हो। यह भी हो सकता है कि उसका परिवार इतना सशक्त नहीं था कि उसे अच्छी तरह से बुनियादी सुविधाएं प्रदान कर सकें,जो एक गर्भवती होने के कारण उसे मिलनी चाहिए थी। परंतु कम से कम मौत (वह) के बाद तो वह कुछ गरिमा की हकदार है, क्योंकि हमारे गौरवशाली संविधान ने हर नागरिक को यह सुविधा दी है।''

    न्यायालय के समक्ष मामला

    अदालत एक 19 वर्षीय महिला के पिता की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जो उसके पिता के अनुसार गर्भावस्था के उन्नत चरण में थी और उसे 14 अप्रैल, 2020 को उलुबेरिया उप-विभागीय अस्पताल में भर्ती कराया गया था।

    उसे कुपोषण और सामान्य खराब स्वास्थ्य के कारण भर्ती कराया गया था और उसे स्पष्ट रूप से संजीबन अस्पताल की निजी सुविधा में कोरोना का टेस्ट करवाने की सलाह दी गई थी।

    संजीबन अस्पताल ने बताया कि उन्होंने सिर्फ कोरोना का टेस्ट किया था और टेस्ट होने के बाद उसे उलुबेरिया एसडी अस्पताल में वापस जाने के लिए कहा था,परंतु वह वहां नहीं गई।

    संजीबन अस्पताल ने आगे प्रस्तुत किया कि उसके टेस्ट का परिणाम नकारात्मक आया था,इसलिए उसके बाद संजीबन अस्पताल का संबंधित रोगी से कोई लेना-देना नहीं था।

    दूसरी ओर, उलुबेरिया अस्पताल द्वारा दायर की गई रिपोर्ट, जिसे राज्य की रिपोर्ट के रूप में माना गया है, में खुलासा किया गया था कि 20 अप्रैल, 2020 को कुपोषण और संबंधित समस्याओं के कारण उक्त महिला की मृत्यु हो गई थी।

    याचिकाकर्ता पिता ने कहा कि मीडिया रिपोर्ट में संकेत दिया गया है कि उसने संजीबन अस्पताल में एक बच्चे को जन्म दिया था। हालाँकि, अदालत को इस संबंध में कोई सत्यापित रिपोर्ट या सामग्री नहीं मिली।

    राज्य ने कहा कि उसने उलूबेरिया अस्पताल में किसी बच्चे को जन्म नहीं दिया और न ही उसका ऑपरेशन किया गया था।

    कोर्ट का अवलोकन

    मामले के तथ्यों को एक साथ रखने की कोशिश करते हुए, अदालत पूरी तरह से हतप्रभ दिखी और कहा कि,

    ''जब उसे भर्ती कराया गया था, तब उसका वजन 41 किलोग्राम था। पोस्टमार्टम रिपोर्ट में महिला के निर्जीव शरीर की जांच की गई है, जिसका वजन 25 किलो है। यह समझ से बाहर है कि चार दिनों में उसका वजन 16 किलो कैसे कम हो गया था।''

    अदालत ने यह भी कहा कि,पोस्टमार्टम रिपोर्ट में इस बात का भी उल्लेख नहीं गया है कि मृतक के पेट में कोई भ्रूण था।

    राज्य ने अदालत को सूचित किया कि मृतका के शरीर को अभी भी उलुबेरिया अस्पताल के मुर्दाघर में रखा गया है,इस तथ्य को ध्यान में रखते न्यायालय ने निर्देश दिया कि,

    ''शव को उसी अवस्था में संरक्षित किया जाए,जिस अवस्था में अभी है। वहीं आर.जी कर मेडिकल कॉलेज एंड अस्पताल में 48 घंटे के भीतर शव का दूसरा पोस्टमार्टम किया जाए।''

    न्यायालय ने यह भी निर्देश दिया है कि डीएनए परीक्षण किया जाए और महिला के किसी अन्य करीबी रिश्तेदार के डीएनए नमूने भी एकत्र किए जा सकते हैं ताकि यह पता लगाया जा सके कि उलुबेरिया अस्पताल के मुर्दाघर में संरक्षित शरीर,उसी महिला का है जिसके पिता ने यह याचिका दायर की है।

    दूसरी ओर, कोर्ट ने संजीबन अस्पताल के प्रमुख व्यक्तियों सहित निदेशकों को यह भी निर्देश दिया है कि वे इस बताएं कि क्यों न उनके खिलाफ अवमानना​सहित उचित कार्यवाही की जाए क्योंकि उन्होंने न्यायालय के 4 अगस्त 2020 के आदेश में दिए गए स्पष्ट निर्देश के बाद भी कोर्ट में रिपोर्ट दायर नहीं की है?

    केस का शीर्षक - शंकर रुईदास बनाम पश्चिम बंगाल राज्य व अन्य [WPA 5882 of 2020 CAN 1 of 2020 (CAN 3982 of 2020)]

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