आश्रम प्रबंधक पर दो पुरुषों को श्राप देने की धमकी देकर जबरन यौन संबंध बनाने का आरोप: तेलंगाना हाईकोर्ट ने कार्यवाही रद्द करने से इनकार किया

LiveLaw News Network

29 July 2021 11:57 AM GMT

  • आश्रम प्रबंधक पर दो पुरुषों को श्राप देने की धमकी देकर जबरन यौन संबंध बनाने का आरोप: तेलंगाना हाईकोर्ट ने कार्यवाही रद्द करने से इनकार किया

    तेलंगाना हाईकोर्ट ने हाल ही में एक आश्रम के केयरटेकर/प्रबंधक के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही को रद्द करने से इनकार किया, जिसने कथित तौर पर लकवा होने का श्राप देने के बाद दो पुरुषों के साथ यौन संबंध बनाया और उन्हें अपने भक्तों द्वारा जान से मारने की धमकी भी दी थी।

    न्यायमूर्ति के लक्ष्मण की खंडपीठ ने यह देखते हुए आदेश दिया कि जांच के दौरान जांच अधिकारी द्वारा कई तथ्यात्मक पहलुओं की जांच की गई थी।

    न्यायालय ने प्रथम दृष्टया पाया कि याचिकाकर्ता/आरोपी के खिलाफ गंभीर आरोप हैं और आईपीसी की धारा-377 के तहत अपराध समाज के खिलाफ अपराध है।

    संक्षेप में तथ्य

    शिकायतकर्ता (प्रतिवादी संख्या 2) और उसके भाई को व्यवसाय में नुकसान हो रहा था और इस प्रकार उन्होंने याचिकाकर्ता से संपर्क किया और अपने व्यवसाय में लाभ कमाने के लिए उनका आशीर्वाद मांगा।

    याचिकाकर्ता/आरोपी ने उन्हें अपने आश्रम में प्रतिदिन सेवा करने और उन्हें दान देने को कहा, ताकि उन्हें अच्छा मुनाफा हो। फिर एक दिन याचिकाकर्ता ने उन्हें अपने निजी विश्राम कक्ष में बुलाया और उन्हें यौन संबंध बनाने के लिए मजबूर किया। जब दोनों शिकायतकर्ता ने यौन संबंध बनाने से इनकार किया तो याचिकाकर्ता ने उन्हें लकवा होने का श्राप दिया और उन्हें अपने भक्तों द्वारा जान से मारने की धमकी भी दी।

    इसके बाद कथित तौर पर याचिकाकर्ता / आरोपी उनके साथ रोज जबरन यौन संबंध बनता था। एक दिन याचिकाकर्ता के करीब 500 भक्तों ने पीड़ितों को पीटने की कोशिश की लेकिन दोनों वहां से भाग निकले।

    शिकायतकर्ताओं को जान से मारने की धमकी दी गई। इसके बाद प्रतिवादी संख्या 2 (वास्तविक शिकायतकर्ता) ने याचिकाकर्ता के खिलाफ तत्काल शिकायत दर्ज कराई।

    न्यायालय की टिप्पणियां

    कोर्ट ने शुरुआत में कहा कि शिकायत की सामग्री के अनुसार एक ही लिंग के दो वयस्कों के बीच यौन संबंध स्थापित हुआ है और न्यायालय द्वारा विचार करने का एकमात्र बिंदु यह है कि क्या सहमति से सेक्स किया गया था या नहीं?

    अदालत ने कहा कि कथित तौर पर धमकी के तहत प्रतिवादी नंबर 2 के भाई और उसके दोस्त ने याचिकाकर्ताओं के साथ यौन कृत्यों में भाग लिया और यह एक तथ्यात्मक पहलू है जिसकी जांच की जानी चाहिए।

    न्यायालय कहा कि,

    "क्या प्रतिवादी नंबर 2 के भाई और उसके दोस्त ने स्वेच्छा से या जबरन याचिकाकर्ता के साथ यौन कृत्यों में भाग लिया है और क्या सहमति से किया गया है, यह भी जांच अधिकारी द्वारा जांच के दौरान जांच की जाने वाली एक तथ्यात्मक पहलू है।"

    कोर्ट ने कहा कि भारतीय दंड संहिता की धारा 377 को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन माना गया है और इसे आंशिक रूप से समाप्त कर दिया गया है। हालांकि, सहमति के बिना समान लिंग के वयस्कों के बीच यौन संबंध अभी भी दंडनीय है।

    न्यायालय ने नवतेज सिंह जौहर बनाम भारत संघ (2018) 10 एससीसी 1 में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का जिक्र करते हुए कहा कि,

    "एलजीबीटी समुदाय के सदस्य अन्य सभी नागरिकों के रूप में संविधान द्वारा संरक्षित स्वतंत्रता सहित संवैधानिक अधिकारों के हकदार हैं। संविधान के तहत अपने पसंद का साथी चुनने, यौन संबंध बनाने की स्वतंत्रता है और संविधान के तहत भेदभावपूर्ण व्यवहार के खिलाफ सुरक्षा प्राप्त है। एलजीबीटी समुदाय के सदस्य बिना किसी भेदभाव के नागरिकों की तरह ही लाभ के हकदार हैं।"

    कोर्ट ने इसके अलावा कहा कि यदि शिकायत में अभियुक्त के खिलाफ आरोपित अपराध की सामग्री प्रथम दृष्टया पाई जाती है, तो आपराधिक कार्यवाही को बाधित नहीं किया जा सकता है।

    कोर्ट ने कहा कि,

    "प्रथम दृष्टया, यहां याचिकाकर्ता के खिलाफ आरोप हैं और जांच अधिकारी द्वारा जांच की जाने वाली कई तथ्यात्मक पहलुओं की जांच की जा रही है। इसलिए, यह न्यायालय वर्तमान अपराध में जांच को बाधित करने के लिए इच्छुक नहीं है।"

    कोर्ट ने देखा कि याचिकाकर्ता कार्यवाही को रद्द करने के लिए कोई आधार बनाने में विफल रहा और कोर्ट ने याचिका खारिज कर दी।

    आदेश की कॉपी यहां पढ़ें:



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