लिमिटेशन एक्ट, 1963 का अनुच्छेद 1 दिवाला और शोधन अक्षमता संहिता, 2016 के तहत कार्यवाही पर लागू नहीं होगा: एनसीएलएटी

LiveLaw News Network

26 May 2022 7:25 AM GMT

  • लिमिटेशन एक्ट, 1963 का अनुच्छेद 1 दिवाला और शोधन अक्षमता संहिता, 2016 के तहत कार्यवाही पर लागू नहीं होगा: एनसीएलएटी

    जस्टिस अशोक भूषण और डॉ आलोक श्रीवास्तव की मौजूदगी वाले नेशनल कंपनी लॉ अपीलेट ट्रिब्यूनल (एनक्लैट) के प्रिंसिपल बेंच ने 'एसएम घोगभाई बनाम शेड्यूलर्स लॉजिस्टिक्स इंडिया प्राइवेट लिमिटेड' के मामले में माना कि लिमिटेशन एक्ट (परिसीमन अधिनियम), 1963 का अनुच्छेद 1 दिवाला और शोधन अक्षमता संहिता (आईबीसी कोड) की धारा 9 के तहत परिचालन लेनदार द्वारा दायर याचिका पर लागू नहीं है।

    संक्षिप्त पृष्ठभूमि

    पार्टियां परिवहन सेवाओं के कारोबार में शामिल हैं। अपीलकर्ताओं द्वारा प्रतिवादी पर कुल 174 चालान तैयार किये गए थे और अंतिम भुगतान अपीलकर्ता को 26.09.2016 को प्राप्त हुआ था। अपीलकर्ता ने बकाया देय राशि की मांग की, लेकिन वह बकाया रहा।

    अपीलकर्ता ने 76.04 लाख रुपये का डिमांड नोटिस भेजा और बाद में प्रतिवादी के खिलाफ 24.10.2019 को धारा 9 के तहत याचिका दायर की।

    आक्षेपित आदेश

    एनसीएलटी मुंबई, कोर्ट- III ने अपीलकर्ता द्वारा दायर धारा 9 याचिका को इस आधार पर खारिज कर दिया कि याचिका उन चालानों के आधार पर दायर की गई है जो धारा 9 याचिका दायर करने की तारीख से तीन साल पहले थे और इसलिए, यह माना गया कि धारा 9 के तहत यह याचिका लिमिटेशन एक्ट द्वारा वर्जित है।

    अपीलकर्ता की दलीलें

    अपीलकर्ता द्वारा यह दलील दी गयी थी कि पार्टियों ने एक चालू खाता बनाए रखा और वही राशि प्रतिवादी के खाता बही में परिलक्षित होता है। यह भी तर्क दिया गया था कि अंतिम चालान 10.10.2016 को तैयार किया गया था और चूंकि, लिमिटेशन एक्ट के अनुच्छेद 1 में कहा गया है कि तीन वर्ष की सीमा अवधि उस वित्त वर्ष की समाप्ति से शुरू होती है, जिसमें अंतिम आइटम को खाते में स्वीकार या सिद्ध किया जाता है और इसलिए, सीमा अवधि 31.03.2017 से शुरू होगी। याचिका 24.10.2019 को दायर की गई थी और इसलिए यह तीन साल की अवधि के भीतर थी।

    प्रतिवादी की दलीलें

    प्रतिवादी की ओर से यह तर्क दिया गया था कि दावा 174 चालानों के आधार पर किया गया था, जो 10.10.2016 को दिनांकित थे और याचिका 24.10.2019 को दायर की गई थी और इस प्रकार यह स्पष्ट रूप से लिमिटेशन एक्ट के दायरे के तहत वर्जित थी।

    प्रतिवादी द्वारा आगे यह तर्क दिया गया कि लिमिटेशन एक्ट के अनुच्छेद 1 की प्रयोज्यता से संबंधित तर्क एनसीएलटी के समक्ष भी नहीं उठाया गया था और अन्यथा, यह अच्छी तरह से तय है कि लिमिटेशन एक्ट का केवल अनुच्छेद 137 लागू होगा।

    एनसीएलएटी द्वारा निर्णय/विश्लेषण

    अपीलीय ट्रिब्यूनल ने पाया कि यह अच्छी तरह से तय है कि लिमिटेशन एक्ट के प्रावधान आईबीसी के तहत कार्यवाही पर लागू होते हैं। इसके बाद, एनसीएलएटी ने कानून का प्रश्न तैयार किया, जो इस प्रकार था;

    "12. वर्तमान मामले में विचारणीय प्रश्न यह है कि क्या अपीलकर्ता लिमिटेशन एक्ट, 1963 के अनुच्छेद 1 का लाभ ले सकता है..."

    उपर्युक्त प्रश्न के लिए, एनसीएलएटी ने 'बीके एजुकेशनल सर्विसेज प्राइवेट लिमिटेड बनाम पराग गुप्ता ' और 'बाबूलाल वरधरजी गुर्जर बनाम वीर गुर्जर एल्युमीनियम इंडस्ट्रीज ' के मामले पर भरोसा जताया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि संहिता की धारा 7 या 9 के तहत आवेदन दाखिल करने की अवधि लिमिटेशन एक्ट के अनुच्छेद 137 के अनुसार तय की जानी है।

    अपीलीय ट्रिब्यूनल ने आगे कहा कि लिमिटेशन एक्ट का अनुच्छेद 1 "खातों के संबंध में सूट" से संबंधित है और संहिता की धारा 9 के तहत एक आवेदन को खातों से संबंधित सूट नहीं कहा जा सकता है।

    खंडपीठ ने आगे व्यवस्था दी कि अंतिम भुगतान 26.09.2016 को प्राप्त हुआ था और अंतिम चालान 10.10.2016 को उठाया गया था और इसलिए, धारा 9 के तहत अनुच्छेद 137 के आवेदन को उस समय से तीन साल की अवधि के भीतर फाइल किया जाना है, जब आवेदन करने का अधिकार अर्जित होता है" और यह तब उपार्जित होगा, जब प्रतिवादी द्वारा अपीलकर्ता की ओर से जारी चालानों का भुगतान नहीं किया गया था।

    केस शीर्षक: एस एम घोगभाई बनाम शेड्यूलर्स लॉजिस्टिक्स इंडिया प्रा. लिमिटेड

    अपीलकर्ता के वकील: एडवोकेट एकता मेहता

    प्रतिवादी के लिए वकील: एडवोकेट कयोमार्स के. केरावाला, एडवोकेट कुणाल मेहता और एडवोकेट रॉबिन फर्नाडीस

    आदेश पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें




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