एंटी-सीएए प्रोटेस्ट : हाईकोर्ट ने दिल्ली दंगों के पीड़ितों की सहायता के लिए दावेदारों, सरकारी योजना के तहत वितरित राशि का विवरण मांगा

LiveLaw News Network

2 Aug 2022 11:36 AM GMT

  • एंटी-सीएए प्रोटेस्ट : हाईकोर्ट ने दिल्ली दंगों के पीड़ितों की सहायता के लिए दावेदारों, सरकारी योजना के तहत वितरित राशि का विवरण मांगा

    दिल्ली हाईकोर्ट ने दिल्ली सरकार की 'दंगा पीड़ितों की मदद के लिए सहायता योजना' के तहत मुआवजे की मांग करने वाले दावेदारों और अब तक वितरित की गई राशि का एक सारणीबद्ध चार्ट (tabular chart) में विवरण मांगा है।

    दिल्ली सरकार द्वारा 2019-20 में सीएए के विरोध प्रदर्शनों के दौरान हुए दंगों के पीड़ितों को मुआवजा देने और उनकी सहायता करने के लिए सहायता योजना शुरू की गई थी। उक्त योजना में बालिग की मृत्यु, अवयस्क की मृत्यु, स्थायी अपंगता, गंभीर या मामूली चोट और संपत्ति के नुकसान के लिए मुआवजे का प्रावधान है।

    याचिकाकर्ताओं ने बारह जुड़े मामलों के एक बैच के माध्यम से कहा कि योजना के अनुसार पीड़ितों को कोई मुआवजा नहीं दिया गया है।

    जस्टिस यशवंत वर्मा ने योजना के कामकाज को समझते हुए कहा कि योजना के तहत मुआवजा पाने के लिए पीड़ित को पहले मुआवजे के दावे के लिए एक आवेदन पत्र भरना होगा। फिर फॉर्म को सब-डिविजनल मजिस्ट्रेट को जमा करना होगा, जो शिकायतकर्ताओं द्वारा किए गए दावों को सत्यापित करने के लिए नोडल अधिकारियों को मामले का निरीक्षण करने और उसी पर एक रिपोर्ट तैयार करने के लिए भेजेगा।

    याचिकाकर्ताओं ने कहा कि कुछ याचिकाओं के माध्यम से एक और सवाल उठाया गया कि क्या मुआवजे की मात्रा योजना द्वारा पर्याप्त रूप से निर्धारित की गई। याचिकाकर्ताओं में से एक की ओर से पेश एडवोकेट आंचल टिकमनी ने कहा कि याचिकाओं के बैच में दो प्रकार के दावे शामिल थे- पहला, दावेदार जिन्होंने योजना के तहत मुआवजे की मांग की और दूसरा, मुआवजे की बढ़ी हुई राशि की मांग करने वाली याचिकाएं और योजना के तहत प्रदान किए गए मुआवजे की संवैधानिक वैधता को चुनौती देना।

    उन्होंने सुझाव दिया कि अदालत उन याचिकाओं को अलग कर दे जो इस योजना के तहत मुआवजे की मांग करने वाली याचिकाओं से दावे के रूप में बढ़ी हुई राशि की मांग करती हैं।

    प्रतिवादी की ओर से पेश एडवोकेट सीपी श्रीवास्तव ने अदालत के संज्ञान में लाया कि दिल्ली सरकार की सहायता योजना के तहत राहत देने के लिए दंगा पीड़ितों की मदद के लिए एक आयोग का गठन किया गया। पीठ ने कहा कि उसे यह तय करना होगा कि मामलों की सुनवाई पीठ को ही करनी है या आयोग को।

    एडवोकेट टिकमणि ने मौखिक रूप से प्रस्तुत किया कि आयोग पर भरोसा नहीं किया जा सकता क्योंकि आयोग के माध्यम से एक दावेदार को एक भी दावे की गारंटी नहीं दी गई थी। उन्होंने कहा कि आयोग ने लोगों से संपर्क करके उन्हें सूचित किया कि दावेदारों को दी जाने वाली राशि योजना के तहत जितनी राशि की कल्पना की गई है, उससे कम होगी। राशि के बदले में आयोग दावेदारों को उसी के संबंध में एक पत्र पर हस्ताक्षर करवाएगा। यदि याचिकाकर्ता शर्तों से सहमत नहीं हुआ तो आयोग द्वारा कोई राशि वितरित नहीं की जाएगी। याचिकाकर्ता के अनुसार, दबाव में कई दावेदार अपने अधिकारों पर हस्ताक्षर कर रहे थे।

    जस्टिस वर्मा ने कहा कि आयोग की अक्षमता पर लगाए गए आरोपों पर विश्वास करना कठिन है, क्योंकि उक्त आयोग का नेतृत्व हाईकोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश ने किया था। एडवोकेट टीकामणि को इन प्रस्तुतियों को रिकॉर्ड पर रखने के लिए कहा गया था। हालांकि पीठ ने इस तरह के आरोप लगाते हुए उन्हें जिम्मेदार होने की चेतावनी दी।

    "मुआवजे के प्रत्येक व्यक्तिगत दावेदार मुआवजे का कारण दावेदार को वितरित राशि का विवरण देने वाले अपडेट चार्ट को रिकॉर्ड में रखा जाना चाहिए। उन रिट याचिकाओं को भी इंगित और उजागर करें जिनमें मुआवजा योजना के प्रावधानों को चुनौती दी गई है और साथ ही साथ जिसमें योजना को संवैधानिक आधार पर चुनौती दी जाती है और जिसमें योजना के तहत निर्धारित अधिकतम राशि से अधिक मुआवजा मांगा जाता है। "

    मामला अब 12 सितंबर, 2022 के लिए सूचीबद्ध है।

    केस टाइटल : शाह नवाज बनाम सरकार। एनसीटी ऑफ दिल्ली और अन्य जुड़े मामले

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