[एंटी-सीएए प्रोटेस्ट] संपत्ति के नुकसान की जांच के लिए एफआईआर दर्ज, क्लेम कमिश्नर नियुक्त : दिल्ली हाईकोर्ट ने जनहित याचिका का निपटारा किया
Sharafat
10 Feb 2023 7:32 PM IST
दिल्ली हाईकोर्ट ने नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2019 के खिलाफ विरोध प्रदर्शन के दौरान कथित तौर पर सार्वजनिक और निजी संपत्तियों को नुकसान पहुंचाने वाले लोगों से नुकसान की वसूली की मांग वाली एक जनहित याचिका का निस्तारण कर दिया।
मुख्य न्यायाधीश सतीश चंद्र शर्मा और जस्टिस सुब्रमण्यम प्रसाद की खंडपीठ ने कहा कि क्लेम कमिश्नर को मुआवजा देने पर विचार करने के लिए नियुक्त किया जा चुका है और दिल्ली पुलिस द्वारा पहले ही एफआईआर दर्ज कर ली गई है तो इस मामले में आगे कोई आदेश पारित करने की आवश्यकता नहीं है।
याचिका में दायर एक हलफनामे में दिल्ली पुलिस ने अदालत को सूचित किया कि सार्वजनिक और निजी संपत्तियों को नुकसान पहुंचाने वालों के खिलाफ दर्ज कुल 541 एफआईआर में से केवल आठ का अदालतों में फैसला किया गया है और 51 प्रतिशत मामलों में सुनवाई लंबित है।
जैसा कि पहले बताया गया था , 20 सितंबर, 2022 के जवाब से पता चला कि 276 मामलों में सुनवाई लंबित है, जबकि 213 मामलों में जांच पूरी होनी बाकी है।
मंदिर, मस्जिद, सीसीटीवी कैमरे, पुलिस बूथ और बैरिकेड्स सहित सार्वजनिक संपत्तियों को नुकसान पहुंचाने के आरोपियों के खिलाफ 2020 में कुल 23 एफआईआर दर्ज की गईं। दूसरी ओर, दुकानों, घरों और निजी वाहनों जैसी निजी संपत्तियों को हुए नुकसान के खिलाफ 518 एफआईआर दर्ज की गईं।
दिल्ली पुलिस ने अदालत को यह भी सूचित किया कि जस्टिस (सेवानिवृत्त) सुनील गौर को नुकसान की जांच करने और दंगों से संबंधित मुआवजा देने के लिए दावा आयुक्त के रूप में नियुक्त किया गया है।
अदालत ने कहा,
"इस न्यायालय की सुविचारित राय में एक बार क्लेम कमिश्नर नियुक्त हो जाने के बाद और मुआवजा देने के लिए विचाराधीन मुद्दे से निपट रहा है और यह देखते हुए कि एफआईआर दर्ज की गई हैं, वर्तमान रिट याचिका में आगे कोई आदेश पारित करने की आवश्यकता नहीं है । तदनुसार याचिका का निपटारा लंबित आवेदन (ओं) के साथ किया जाता है, यदि कोई हो।”
अदालत ने पिछले साल मार्च में जनहित याचिका में नोटिस जारी किया था और गृह मंत्रालय, दिल्ली सरकार और दिल्ली पुलिस से जवाब मांगा था।
एक वकील और एक कानून के छात्र द्वारा दायर जनहित याचिका में दावा किया गया है कि उन्होंने व्यक्तिगत रूप से शहर के विभिन्न स्थानों का दौरा किया और दंगों के दौरान सार्वजनिक संपत्तियों को हुए नुकसान और सरकारी खजाने को भारी नुकसान देखकर हैरान रह गए।
जनहित याचिका में प्रार्थना की गई थी कि इससे हुए नुकसान का आकलन करने और चिन्हित व्यक्तियों से इसकी वसूली के लिए एक स्वतंत्र सिस्टम स्थापित किया जाए।
दिल्ली पुलिस ने याचिका में उठाई गई दलीलों को झूठा और निराधार बताते हुए स्टेटस रिपोर्ट में कहा था कि पुलिस अधिकारियों ने दंगों के दौरान "पेशेवर तरीके" से तुरंत, सतर्कता और प्रभावी ढंग से काम किया।
याचिकाकर्ताओं की ओर से एडवोकेट युधवीर सिंह चौहान, शिवांगी शौकीन और आदित्य शर्मा पेश हुए।
केस टाइटल : हीनू महाजन बनाम भारत संघ
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