अंसल बंधुओं ने सबूतों से छेड़छाड़ कर मुकदमे में देरी की, वृद्धावस्था का लाभ नहीं ले सकते: दिल्ली हाईकोर्ट में अभियोजन पक्ष ने सजा निलंबन का विरोध किया

LiveLaw News Network

15 Jan 2022 9:48 AM GMT

  • अंसल बंधुओं ने सबूतों से छेड़छाड़ कर मुकदमे में देरी की, वृद्धावस्था का लाभ नहीं ले सकते: दिल्ली हाईकोर्ट में अभियोजन पक्ष ने सजा निलंबन का विरोध किया

    दिल्ली हाईकोर्ट ने शुक्रवार को रियल एस्टेट व्यवसायी सुशील अंसल और गोपाल अंसल द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई जारी रखी। इस याचिका में वर्ष 1997 में हुई उपहार अग्निकांड के संबंध में सबूतों से छेड़छाड़ मामले में उनकी सात साल की जेल की सजा को निलंबित करने की मांग की गई है।

    अभियोजन पक्ष की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता दयान कृष्णन ने मुख्य रूप से दलील दी कि अंसल बंधु खुद सबूतों से छेड़छाड़ करके मुकदमे में देरी के लिए जिम्मेदार हैं, इसलिए वे अब अपनी जेल की अवधि को निलंबित करने की मांग नहीं कर सकते।

    उन्होंने तर्क दिया,

    "साजिश 2003 में समाप्त नहीं हुई थी। अभियोजन पक्ष कटे-फटे दस्तावेजों की बरामदगी से निराश नहीं था। वास्तव में अभियोजन पक्ष को द्वितीयक साक्ष्य के लिए मजबूर किया गया। मुकदमे में काफी देरी हुई। इसका लाभ आज तक जारी है जहां वे अब कहते हैं कि 'मैं बूढ़ा हूं और मुझे रिहा किया जाना चाहिए।"

    उन्होंने आगे कहा कि चूंकि निचली अदालत ने अंसल बंधुओं को दोषी ठहराया है, इसलिए उनके निर्दोष होने का कोई अनुमान नहीं है। उन्होंने कहा कि अब अगर कुछ इतना गलत पाया जाता है कि यह न्यायालय की न्यायिक अंतरात्मा को झकझोरने से परे है तो सजा को निलंबित किया जा सकता है।

    उन्होंने पूछा,

    "क्या आपका न्यायिक विवेक इतना परेशान है कि माई लॉर्ड इस स्तर पर हस्तक्षेप करेंगे?"

    उन्होंने कहा,

    "यहां तक ​​कि जब उन्होंने आरोप के खिलाफ पुनर्विचार याचिका दायर की तब भी इस मुद्दे पर बहुत लंबी बहस हुई थी।"

    विली (विलियम) स्लेनी बनाम मध्य प्रदेश राज्य और मेन पाल बनाम हरियाणा राज्य के मामले का संदर्भ देते हुए कृष्णन ने कहा,

    "न्याय और निष्पक्षता के समान व्यापक सिद्धांतों को पूर्वाग्रह के मामले का निर्धारण करते समय अपराध के निर्णय के रूप में सहन किया जाना चाहिए। लेकिन जब सब कुछ कहा और किया जाता है तो हम यह देखने के लिए चिंतित हैं कि क्या अभियुक्त के पास निष्पक्ष सुनवाई है, क्या वह जानता है कि उसके खिलाफ क्या मुकदमा चलाया जा रहा है, क्या उसके खिलाफ स्थापित किए जाने वाले मुख्य तथ्यों को उसे निष्पक्ष और स्पष्ट रूप से समझाया गया है और क्या उसे अपना बचाव करने का पूर्ण और निष्पक्ष मौका दिया गया है। यदि ये सभी तत्व हैं और कोई पूर्वाग्रह नहीं दिखाया गया कि दोषसिद्धि को खड़ा होना चाहिए चाहे जो भी अनियमितताएं आरोप से जुड़ी हों या किसी एक की कमी के कारण हों।"

    जस्टिस सुब्रमोनियम प्रसाद दिसंबर 2021 में सात साल की सजा को स्थगित करने की उनकी याचिका को खारिज करने वाले निचली अदालत के आदेश के खिलाफ अंसल बंधुओं की चुनौती पर सुनवाई कर रहे थे।

    हाईकोर्ट ने पहले पूछा कि क्या उनकी ज्यादा उम्र और COVID-19 स्थितियों को देखते हुए हिरासत में लेना संभव है। पिछले हफ्ते हुई सुनवाई में दिल्ली पुलिस ने इसका कड़ा विरोध किया था।

    शुक्रवार को कृष्णन ने तर्क दिया कि अब बेगुनाही का कोई अनुमान नहीं है। अंसल बंधुओं को कुछ अवैध करने के अपराध के लिए दोषी ठहराया गया है, इसलिए जेल की अवधि को निलंबित करने की उनकी याचिका की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। उन्होंने एक अनुकूल फैसला प्राप्त करने के लिए साजिश रची और इस साजिश का खुलासा तब हुआ जब कटे-फटे दस्तावेजों की खोज की गई। इस साजिश का लाभ आज भी अंसल बंधुओं को मिल रहा है, क्योंकि वे जेल की सजा के निलंबन की अपनी याचिका को आगे बढ़ाने के लिए बुढ़ापे का दावा कर रहे हैं।

    मामले की सुनवाई अब 19 जनवरी को सूचीबद्ध की गई है।

    पृष्ठभूमि:

    13 जून 1997 को उपहार सिनेमा की आग में 59 लोगों की जान चली गई और 103 लोग घायल हो गए, जहां दर्शक उस साल की सबसे बड़ी बॉलीवुड ब्लॉकबस्टर, बॉर्डर को दोपहर की स्क्रीनिंग के दौरान देख रहे थे। दिल्ली का पॉश उपहार सिनेमा, रियल एस्टेट दिग्गजों और भाइयों सुशील और गोपाल अंसल के स्वामित्व में था। 95 सुनवाई के बाद अंसल को आखिरकार दोषी ठहराया गया। आठ नवंबर, 2021 को सात साल जेल की सजा सुनाई गई। सबूतों से छेड़छाड़ मामले में कोर्ट ने अंसल पर 2.5 करोड़ रुपये का जुर्माना भी लगाया। अदालत ने अदालत के पूर्व कर्मचारी दिनेश चंद शर्मा और दो अन्य पीपी बत्रा और अनूप सिंह को भी सात साल की जेल की सजा सुनाई और उनमें से प्रत्येक पर तीन लाख का जुर्माना लगाया।

    अंसल बंधुओं ने तब निचली अदालत में याचिका के निलंबन के लिए अपील की। इसे खारिज कर दिया गया और यह आदेश इस माननीय न्यायालय के समक्ष विचाराधीन है।

    केस शीर्षक: सुशील अंसल बनाम दिल्ली के राज्य एनसीटी CRL.M.C. 3276/2021, गोपाल अंसल बनाम राज्य, सीआरएल.एम.सी. 3277/2021, अनूप सिंह करायत बनाम राज्य सी.आर.एल.एम.सी. 3517/2021

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