बलात्कार के मामले में अनचाहे गर्भ से पैदा हुई पीड़ा पीड़िता के मानसिक स्वास्थ्य पर गंभीर चोट : राजस्थान हाईकोर्ट
Manisha Khatri
17 Jun 2022 8:38 PM IST
राजस्थान हाईकोर्ट ने एक बलात्कार पीड़िता को 18 सप्ताह के गर्भ को चिकित्सकीय रूप से समाप्त करने( medical termination) की अनुमति देते हुए कहा है कि बलात्कार से ठहरे एक अवांछित गर्भ के कारण होने वाली पीड़ा को पीड़िता के मानसिक स्वास्थ्य के लिए गंभीर चोट माना जा सकता है।
विशेष रूप से, याचिकाकर्ता-पीड़िता ने भारतीय दंड संहिता की धारा 323, 341 और 376 डी के तहत दंडनीय अपराधों के लिए पुलिस स्टेशन कमान, भरतपुर में एक एफआईआर भी दर्ज कराई है। वर्तमान याचिका उसने अपनी अवांछित गर्भावस्था को समाप्त करने का निर्देश देने की मांग करते हुए दायर की थी क्योंकि वह अब इसे जारी रखने का इरादा नहीं रखती है।
दिनांक 31.05.2022 को, न्यायालय की एक समन्वय पीठ ने भरतपुर के पुलिस अधीक्षक को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया था कि पीड़ित लड़की का उस मेडिकल बोर्ड द्वारा चिकित्सकीय परीक्षण किया जाए जिसमें इस क्षेत्र के विशेषज्ञ डॉक्टर शामिल हों और बोर्ड याचिकाकर्ता की गर्भावस्था की स्थिति के बारे में अपनी राय दे। साथ ही यह भी बताया जाए कि याचिकाकर्ता की गर्भावस्था को समाप्त करना संभव है या नहीं।
जस्टिस सुदेश बंसल की अवकाश पीठ ने याचिका को अनुमति देते हुए कहा,
''मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी, भरतपुर को स्त्री रोग विशेषज्ञ की एक टीम का गठन करने का निर्देश दिया जाता है, जो लिखित रूप में पीड़िता की सहमति प्राप्त करने के बाद उसकी एडवांस स्टेज व पीड़ित लड़की के चिकित्सक स्वास्थ्य को देखते हुए, जल्द से जल्द गर्भावस्था को समाप्त कर दे, यदि चिकित्सकीय रूप से ऐसा करना संभव हो।''
कोर्ट ने आदेश दिया है कि इस प्रोसिजर के दौरान निकाले जाने वाले भ्रूण को डी.एन.ए. परीक्षण के लिए संरक्षित किया जाए और इस उद्देश्य के लिए जांच अधिकारी को सौंप दिया जाए।
साथ ही न्यायालय ने सचिव, जिला सेवा विधिक प्राधिकरण, भरतपुर को निर्देश दिया है कि वह राजस्थान पीड़ित मुआवजा योजना, 2011 के प्रावधानों के तहत पीड़ित लड़की को नियमानुसार मुआवजा प्रदान करे।
इसके साथ ही कोर्ट ने रजिस्ट्रार (न्यायिक) को इस आदेश की एक प्रति मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी भरतपुर, पुलिस थाना कमान, भरतपुर के संबंधित थाना प्रभारी और सचिव, जिला सेवा विधिक प्राधिकरण, भरतपुर को भेजने का निर्देश दिया है।
याचिकाकर्ता के वकील ने नाबालिग पी बनाम राजस्थान राज्य व अन्य,एस.बी. सीआरएलएमपी नंबर 2850/2021 और श्रीमती एम. बनाम राजस्थान राज्य व अन्य,एस.बी.सीआरएलएमपी नंबर 122/2019 के मामलों में हाईकोर्ट की समन्वय पीठों द्वारा दिए गए फैसलों का हवाला दिया,जिनमें क्रमशः 24 सप्ताह और 28 सप्ताह की अवधि के गर्भ को समाप्त करने की अनुमति दी गई थी।
यह तर्क दिया गया था कि मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट, 1971 की धारा 3 (4) (ए) के अनुसार, अभिभावक की लिखित सहमति के अलावा 18 साल से कम उम्र की एक महिला की गर्भावस्था को समाप्त नहीं किया जा सकता है। यह भी जोड़ा गया कि अधिनियम की धारा 3 (2) के स्पष्टीकरण 2 के अनुसार, जब गर्भवती महिला यह आरोप लगाती है कि गर्भ बलात्कार के कारण ठहरा है, तो ऐसी अवांछित गर्भावस्था के कारण होने वाली पीड़ा को गर्भवती महिला के मानसिक स्वास्थ्य के लिए गंभीर चोट माना जा सकता है।
याचिकाकर्ता की ओर से एडवोकेट मुकेश कुमार सैनी उपस्थित हुए जबकि प्रतिवादियों की ओर से जीए-कम-एएजी जीएस राठौर उपस्थित हुए।
केस टाइटल- पीड़ित बनाम राजस्थान राज्य व अन्य
साइटेशन- 2022 लाइव लॉ (राज) 196
केस नंबर- सीआरएलएमपी/4448/2022