आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने राजधानी अमरावती के आर-5 जोन में आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए घरों के निर्माण पर रोक लगाई

Avanish Pathak

10 Aug 2023 8:18 AM GMT

  • आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने राजधानी अमरावती के आर-5 जोन में आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए घरों के निर्माण पर रोक लगाई

    Andhra Pradesh High Court 

    आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने राजधानी अमरावती के आर-5 जोन में आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए घरों के आगे निर्माण पर रोक लगा दी है।

    कोर्ट ने कहा,

    "नुकसान अपूरणीय होगा; सुविधा का संतुलन अंतिम न्यायिक आदेश पारित होने तक घरों के संबंध में भी यथास्थिति बनाए रखने के पक्ष में है। भूमि खोने वालों/ किसानों के अधिकार; किसानों / राजधानी शहर/ विकास पर अमरावती फैसले के निहितार्थ; योजनाओं / स्कीमों आदि में बदलाव करने का राज्य का अधिकार, सभी अविभाज्य रूप से जुड़े हुए हैं।"

    जस्टिस डीवीएसएस सोमयाजुलु, जस्टिस चीताकी मानवेंद्रनाथ रॉय और जस्टिस रवि नाथ तिलहारी की पूर्ण पीठ ने मार्च में जारी सरकारी आदेश संख्या 45/2023 के ख़िलाफ़ दायर याचिकाओं पर अंतरिम आदेश पारित किया था।

    उक्त सरकारी आदेश में राजधानी क्षेत्र विकास प्राधिकरण (सीआरडीए) को समाज के आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लाभार्थियों को घर उपलब्ध कराने के उद्देश्य से गुंटूर और एनटीआर के जिला कलेक्टरों को 1134 एकड़ जमीन सौंपने का आदेश दिया गया था।

    याचिकाकर्ताओं में से एक की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट उन्नम मुरलीधर राव ने दलील दी कि राजधानी के निर्माण के लिए जमीन किसानों के साथ लैंड पूलिंग स्कीम (एलपीएस) के तहत एक वैधानिक समझौता करके ली गई थी, जिसके तहत वादा किया गया था कि अमरावती के विकसित शहर में नए जमीन देने वाले किसानों को भूखंड आवंटित किए जाएंगे, जिसके बाद किसानों ने जमीन सौंप दी थी।

    उन्होंने तर्क दिया कि वैधानिक अनुबंध में एकतरफा संशोधन नहीं किया जा सकता है। उन्होंने जोर देकर कहा कि किसानों द्वारा सौंपी गई भूमि का उपयोग केवल उन्हीं के लाभ के लिए किया जा सकता है और बाहरी लोगों को "भूमि में शामिल किया गया है।"

    अमरावती जजमेंट [राजधानी रायथु परिरक्षण समिति बनाम आंध्र प्रदेश राज्य] पर भरोसा करते हुए राव ने इस बात पर जोर दिया कि किसान विकास में भागीदार हैं और राज्य उनके अनुबंध संबंधी दायित्वों को पूरा करने के लिए बाध्य है।

    एक जनहित याचिका में याचिकाकर्ता की ओर से बहस करते हुए सीनियर एडवोकेट दम्मलपति श्रीनिवास ने तर्क दिया कि सीआरडीए में भूमि का अधिकार पूरा नहीं हुआ है। उन्होंने दलील दी कि भूमि के लिए प्रतिफल के रूप में तय किए गए 354 करोड़ रुपये में से 50% का भी भुगतान नहीं किया गया है। यह भी प्रस्तुत किया गया कि आवंटन पूरा होने के लिए, बिक्री पर पूरा भुगतान करना आवश्यक है और इसलिए, सीआरडीए के पास भूमि के हस्तांतरण शुरू करने का कोई अधिकार नहीं है।

    राज्य की ओर से पेश अतिरिक्त महाधिवक्ता पोन्ना सुधाकर रेड्डी ने कहा कि राज्य की कार्रवाई सुप्रीम कोर्ट द्वारा अनुमोदित अमरावती फैसले के दायरे में है। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने सीआरडीए सहित राज्य को लैंड पूलिंग नियम, 2015 की अनुसूची II और III के तहत निर्धारित कर्तव्यों का निर्वहन करने का निर्देश दिया था।

    राज्य द्वारा यह तर्क दिया गया था कि सुप्रीम कोर्ट ने उसे और सीआरडीए को निर्देश दिया था कि राज्य की राजधानी के निर्माण को छोड़कर भूम‌ि को अलग/गिरवी न रखें या तीसरे पक्ष का हित न बनाएं। उन्होंने यह तर्क देने के लिए एपीसीआरडीए अधिनियम की धारा 53(1)(डी) पर भरोसा किया कि राजधानी क्षेत्र का 5% गरीबों के किफायती आवास के लिए आवंटित किया जाना है, और चूंकि प्रारंभिक मानचित्र में इस तरह के आवंटन का प्रावधान नहीं था, इसलिए यह इसे शामिल करने के लिए अधिनियम की धारा 87 के तहत संशोधित किया गया था।

    अदालत ने सभी दलीलें सुनने के बाद कहा कि एलपीएस नियमों की अनुसूची II और III को संयुक्त रूप से पढ़ने से प्रथम दृष्टया संकेत मिलता है कि आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के घरों का निर्माण केवल उन लोगों के संबंध में होगा जो वहां निवासी हैं, और उन पर लागू नहीं, जो बाहर से आये हैं।

    अदालत ने अमरावती भूमि आवंटन विनियम 2017 के खंड 7.2.1 का उल्लेख करते हुए कहा कि जब तक भुगतान नहीं किया जाता है, तब तक यह निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता है कि भूमि सीआरडीए को हस्तांतरित कर दी गई है। "whereupon" शब्द का उपयोग स्पष्ट रूप से इस इरादे को इंगित करता है कि भुगतान और समझौते का निष्पादन संरचनाओं के निर्माण के लिए पूर्व शर्त हैं।

    पूर्ण पीठ ने कहा कि हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि पट्टा जारी करना अदालत के निष्कर्षों के अधीन होगा, सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी केवल ईडब्ल्यूएस के लिए भूखंडों के आवंटन के संबंध में थी, आवास निर्माण के लिए नहीं।

    अदालत ने यह भी कहा कि केंद्र और राज्य सरकार ईडब्ल्यूएस के लिए आवास के निर्माण का खर्च साझा कर रही हैं। हालांकि, लंबित मुकदमेबाजी के मद्देनजर केंद्र सरकार पीछे हटने का प्रस्ताव कर रही है और अधिग्रहण और निर्माण की पूरी लागत पूरी तरह से राज्य द्वारा वहन की जा सकती है।

    यह देखते हुए कि जिले के बाहर से लोगों को शामिल करने का सवाल एक बहस का मुद्दा है, अदालत ने कहा कि इन मामलों में किसानों के जीवन/आजीविका का अधिकार शामिल है।

    कोर्ट ने फैसले में कहा,

    "उपर्युक्त कारणों से, इस न्यायालय का मानना है कि आगे के निर्माण की अनुमति देना इन परिस्थितियों में उचित या न्यायोचित नहीं होगा। इस मामले को ध्यान में रखते हुए, इस न्यायालय की राय है कि व्यापक सार्वजनिक हित अब आर-5 ज़ोन में घरों के निर्माण के ख़िलाफ़ है।"

    केस टाइटल: नीरुकोंडा और कुरागल्लू फॉर्मर वेलफेयर एसो‌सिएशन बनाम आंध्र प्रदेश राज्य


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