प्रत्यर्पण अनुरोध स्वीकार किये जाने तक अभियुक्त को किसी भी मामले में गिरफ्तार नहीं किया जा सकता: दिल्ली हाईकोर्ट कोर्ट

LiveLaw News Network

20 Aug 2020 12:08 PM IST

  • प्रत्यर्पण अनुरोध स्वीकार किये जाने तक अभियुक्त को किसी भी मामले में गिरफ्तार नहीं किया जा सकता: दिल्ली हाईकोर्ट कोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने मंगलवार को कहा कि अभियुक्त के खिलाफ प्रत्यर्पण का अनुरोध स्वीकार किये जाने तक उसे किसी भी मामले में गिरफ्तार नहीं किया जा सकता।

    हाईकोर्ट ने यह टिप्पणी विनय कुमार (याचिकाकर्ता) की रिट याचिका का निपटारा करते हुए की। केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) ने पंजाब नेशनल बैंक की रकम के गबन के लिए सात अलग मामलों में विनय मित्तल के खिलाफ आरोप पत्र दायर किये हैं।

    ट्रायल के दौरान याचिकाकर्ता भारत छोड़ चुका था और सीबीआई द्वारा शुरू किये गये मुकदमे की सुनवाई के दौरान अदालत के समक्ष उपस्थित नहीं हुआ। इसके बाद विनय मित्तल को भगोड़ा अपराधी घोषित कर दिया गया था। अदालती कार्यवाही में याचिकाकर्ता के हिस्सा लेने में असफल रहने के कारण उसके खिलाफ रेड कॉर्नर नोटिस जारी किया गया था। सीबीआई के अनुसार, याचिकाकर्ता इंडोनेशिया में था और वहां के अधिकारियों ने उसे गिरफ्तार कर लिया था।

    उसके बाद इंडोनिशयाई अधिकारियों को उचित माध्यम से प्रत्यर्पण अनुरोध भेजा गया था। जिसके परिणामस्वरूप, इंडोनेशिया गणराज्य के राष्ट्रपति द्वारा जारी एक आदेश पर याचिकाकर्ता को प्रत्यर्पित कराया गया था। सीबीआई याचिकाकर्ता को भारत लेकर आयी और गाजियाबाद स्थित विशेष न्यायिक मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया, जहां से उसे न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया।

    इसी बीच छह अन्य मामलों में भी छह अलग प्रत्यर्पण अनुरोध राजनयिक माध्यमों से भेजे गये थे।

    याचिकाकर्ता का कहना है कि जिन छह मामलों में प्रत्यर्पण के अनुरोध पर विचार लंबित है, उन मामलों में भारत में उसकी गिरफ्तारी गैर-कानूनी है। यह प्रत्यर्पण अधिनियम, 1962 की धारा 21 का उल्लंघन है। याचिकाकर्ता ने दलील दी कि चूंकि उसे केवल एक ही मामले में प्रत्यर्पित किया गया था, इसलिए उसके खिलाफ दायर अन्य मामलों में मुकदमा नहीं चलाया जा सकता। याचिकाकर्ता ने भारत और इंडोनिशया के बीच प्रत्यर्पण संधि के आर्टिकल 14 में सन्निहित 'विशिष्टता के नियमों' (रूल्स ऑफ स्पेशलिटी) का हवाला दिया था।

    दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद हाईकोर्ट ने कहा,

    "प्रत्यर्पण अधिनियम 1962 की धारा 21 की भाषा से यह स्पष्ट है कि जिस भी व्यक्ति को प्रत्यर्पित कराकर दूसरे देश से यहां लाया जाता है, उसके खिलाफ भारत में केवल उस अपराध को छोड़कर किसी अन्य अपराध के लिए मुकदमा नहीं चलाया जा सकता, जिसके लिए उसने आत्मसमर्पण किया है या उसे वापस भेजा गया है।"

    हाईकोर्ट ने 'दया सिंह लाहोरिया बनाम भारत सरकार एवं अन्य (2001) 4 एससीसी 516' के मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा व्याख्यायित विशिष्टता के सिद्धांत (डॉक्ट्राइन ऑफ स्पेशलिटी) पर भरोसा किया और निर्णय दिया कि याचिकाकर्ता को इंडोनेशियाई सरकार के समक्ष लंबित प्रत्यर्पण अनुरोध पर निर्णय लिये जाने तक अन्य मामले में गिरफ्तार नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने हालांकि, यह स्पष्ट किया कि इंडोनिशयाई सरकार द्वारा लंबित मामलों में प्रत्यर्पण अनुरोध स्वीकार किये जाने के बाद याचिकाकर्ता के खिलाफ मुकदमा चलाने में सीबीआई के समक्ष कोई बाधा नहीं होगी।

    आदेश की प्रति डाउनलोड करने के लिए यहांं क्लिक करेंं



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