'अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर लक्ष्मण रेखा नहीं लांघनी चाहिए': हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने भगवान शिव के खिलाफ आपत्तिजनक पोस्ट करने के आरोपी डॉक्टर को राहत देने से इनकार किया
Brij Nandan
26 July 2023 12:14 PM IST
हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने भगवान शिव के खिलाफ आपत्तिजनक पोस्ट करने के आरोपी को राहत देने से इनकार किया। और कहा- अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर लक्ष्मण रेखा नहीं लांघनी चाहिए।
दरअसल, भगवान शिव और भगवान नंदी (भगवान शिव का बैल वाहन) के खिलाफ अपमानजनक फेसबुक कमेंट करने के आरोप में आईपीसी की विभिन्न धाराओं के तहत डॉक्टर के खिलाफ FIR दर्ज हुई। आरोपी डॉक्टर ने अग्रिम जमानत की मांग करते हुए हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की थी।
जस्टिस वीरेंद्र सिंह ने कहा,
"FIR के मुताबिक, डॉक्टर नदीम अख्तर ने भगवान के खिलाफ अपमानजनक कमेंट किया था। जिससे कई लोगों की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंची। नदीम कोई आम आदमी नहीं है, बल्कि एक पढ़ा लिखा व्यक्ति है, जो अपने कथित पोस्ट और कमेंट के प्रभाव से अच्छी तरह से वाकिफ है।"
आगे कहा- समाज में प्रत्येक व्यक्ति को दूसरे समुदाय की धार्मिक मान्यताओं का सम्मान करना चाहिए और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर लक्ष्मण रेखा नहीं पार कर सकते।
अदालत ने नदीम की अग्रिम जमानत याचिका खारिज करते हुए कहा,
"अगर नदीम को जमानत दी जाएगी तो समाज को गलत मैसेज जाएगा। दूसरे लोगों को भी ऐसे कमेंट करने के लिए प्रोत्साहित करेगा। जो कि धर्मनिरपेक्ष देश के ताने-बाने के लिए अच्छा है।"
शिकायत में कहा गया था कि नदीम ने अनिवार्य रूप से, आवेदक (अख्तर) के खिलाफ एक शिकायत दर्ज की गई थी जिसमें कहा गया था कि वह अपने फेसबुक अकाउंट पर भगवान शिव के खिलाफ ऐसे अपमानजनक पोस्ट करने का आदी है और उसके कृत्य से धार्मिक भावनाएं आहत हुई हैं।
इस शिकायत के बाद उनके खिलाफ आईपीसी की धारा 295-ए के तहत एफआईआर दर्ज की गई और जांच के दौरान पुलिस ने आवेदक की फेसबुक आईडी के कथित अपमानजनक पोस्ट वाले स्क्रीनशॉट के प्रिंट-आउट ले लिए। बाद में एफआईआर में आईपीसी की धारा 153ए और 505(2) जोड़ी गई.
कोर्ट के नोटिस पर, आवेदक की फेसबुक प्रोफाइल पर आपत्तिजनक पोस्टों से पीठ को अवगत कराते हुए कोर्ट के समक्ष एक स्टेटस रिपोर्ट दायर की गई। भगवान शिव और भगवान नदी पर उनकी टिप्पणी के संबंध में, स्टेटस रिपोर्ट में कहा गया है कि आवेदक ने दावा किया था कि उसका एफबी अकाउंट किसी ने हैक कर लिया था और उक्त पोस्ट किसी और ने किया था।
स्टेटस रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि अपमानजनक टिप्पणी करने के बाद, आवेदक ने Google सर्च इंजन पर सर्च की थी कि डेटा को कैसे हटाया जाए और टिप्पणियों को कैसे संशोधित किया जाए।
अंत में यह भी कहा गया कि आवेदक के कृत्य से धार्मिक भावनाओं का अपमान होने के कारण क्षेत्र में काफी आक्रोश है और उक्त फेसबुक पोस्ट के खिलाफ कुछ प्रदर्शन भी हुए हैं।
कोर्ट ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनीं, सबूतों को देखा और कहा- नदीम ने एक विशेष धर्म को मानने वालों की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने के लिए सोशल मीडिया का इस्तेमाल किया। इसलिए वो सीआरपीसी की धारा 438 के तहत किसी भी राहत का हकदार नहीं है।"
इसके साथ ही कोर्ट ने उसकी अग्रिम जमानत याचिका खारिज की।
आवेदक के लिए: अधिवक्ता आदर्श के. वशिष्ठ
प्रतिवादी की ओर से: अतिरिक्त महाधिवक्ता एच.एस. रावत और तेजस्वी शर्मा के साथ उप महाधिवक्ता लीना गुलेरिया और अवनी कोचर मेहता
शिकायतकर्ताओं के लिए: वरिष्ठ अधिवक्ता अशोक शर्मा, अधिवक्ता ओंकार जैरथ, ज्योतिर्मय भट्ट, अंकित धीमान, गौरव कौशल, सुष्मित भट्ट और श्याम सिंह चौहान, अधिवक्ता।
केस टाइटल - डॉ. नदीम अख्तर बनाम हिमाचल प्रदेश राज्य
केस साइटेशन:
ऑर्डर पढ़ने/डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें: