रोस्टर में बदलाव के बाद यूपी में COVID-19 प्रबंधन से संबंधित स्वत: संज्ञान मामले की सुनवाई इलाहाबाद हाईकोर्ट के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश की अगुवाई वाली बेंच करेगी

LiveLaw News Network

5 Jun 2021 11:33 AM GMT

  • रोस्टर में बदलाव के बाद यूपी में COVID-19 प्रबंधन से संबंधित स्वत: संज्ञान मामले की सुनवाई इलाहाबाद हाईकोर्ट के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश की अगुवाई वाली बेंच करेगी

    इलाहाबाद हाईकोर्ट के समक्ष उत्तर प्रदेश राज्य में COVID-19 प्रबंधन से संबंधित मामले में [क्वारंटाइन सेंटर पर अमानवीय स्थिति और कोरोना पॉजिटिव को बेहतर उपचार प्रदान करने के लिए] रोस्टर में बदलाव के बाद कार्यवाहक मुख्य जस्टिस संजय यादव और जस्टिस प्रकाश पाडिया की खंडपीठ द्वारा सुनवाई की जाएगी।

    कोर्ट इस मामले में चिकित्सा और स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी के कारण राज्य की अराजक स्थिति का जायजा लेता रहा है और अब तक न्यायमूर्ति सिद्धार्थ वर्मा और न्यायमूर्ति अजीत कुमार की खंडपीठ इस मामले की सुनवाई कर रही थी।

    कोर्ट ने इसी मामले में पिछले महीने कहा था कि उत्तर प्रदेश के छोटे शहरों और ग्रामीण क्षेत्रों में चिकित्सा और स्वास्थ्य के बुनियादी ढांचे की स्थिति राम भरोसे (भगवान की दया पर) है।

    जस्टिस सिद्धार्थ वर्मा और अजीत कुमार की डिवीजन बेंच ने कहा था कि,

    "छोटे शहरों और गांवों से संबंधित राज्य की पूरी चिकित्सा प्रणाली प्रसिद्ध हिंदी कहावत 'राम भरोसे' है।"

    कोर्ट 17 मई को कहा कि उत्तर प्रदेश राज्य में चिकित्सा सुविधाओं के लिए युद्ध स्तर की स्थिति बनी हुई है और इसके लिए कई निर्देश जारी किए। हालांकि, आदेश पारित होने के 4 दिन बाद सुप्रीम कोर्ट ने इन निर्देशों रोक लगा दी थी।

    जस्टिस विनीत सरन और बीआर गवई की अवकाश पीठ ने उत्तर प्रदेश राज्य की ओर से भारत के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता द्वारा किए गए सबमिशन को सुनने के बाद आदेश पर रोक लगा दी थी।

    सुप्रीम कोर्ट से सॉलिसिटर जनरल ने विशेष रूप से यह निर्देश देने का अनुरोध किया था कि COVID-19 से संबंधित मुद्दों को उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीशों के नेतृत्व वाली पीठों के साथ निपटाया जाना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने इस तरह के आदेश को पारित करने से इनकार करते हुए कहा कि बेंचों का गठन मुख्य न्यायाधीश का विशेषाधिकार है। कोर्ट ने आगे कहा था कि यह वांछनीय है कि सार्वजनिक महत्व के ऐसे मामलों को मुख्य न्यायाधीशों के नेतृत्व वाली पीठों द्वारा निपटाया जाए।

    यह ध्यान दिया जा सकता है कि इस मामले में इलाहाबाद उच्च न्यायालय कुछ महत्वपूर्ण टिप्पणी किया है और न्यायालय ने जिस तरह से उत्तर प्रदेश सरकार ने राज्य में COVID महामारी की स्थिति को संभाला है, उसकी आलोचना की है।

    जस्टिस सिद्धार्थ वर्मा और अजीत कुमार की बेंच द्वारा की गई कुछ आलोचनात्मक टिप्पणियां

    उच्च न्यायालय ने 17 मई को, यूपी सरकार द्वारा COVID-19 की तीसरी लहर के खिलाफ नागिरकों के सुरक्षा के लिए ग्रामीण आबादी का टेस्टिंग करने और दूरदराज के क्षेत्रों में चिकित्सा और स्वास्थ्य के बुनियादी ढांचे को बढ़ाने के लिए उठाए गए कदमों पर असंतोष व्यक्त करते हुए यूपी सरकार की आलोचना की।

    जस्टिस सिद्धार्थ वर्मा और जस्टिस अजीत कुमार की खंडपीठ ने कहा था कि,

    "जहां तक चिकित्सा के बुनियादी ढांचे का सवाल है, इन कुछ महीनों में हमने महसूस किया है कि आज जिस तरह से यह खड़ा है, वह बहुत नाजुक, कमजोर और दुर्बल है।"

    कोर्ट ने कहा था कि,

    "यदि ग्रामीण क्षेत्रों में या छोटे शहरों में किसी रोगी की स्थिति गंभीर हो जाता है, तो सभी प्रकार की गहन देखभाल इकाई सुविधाओं के साथ एम्बुलेंस प्रदान की जानी चाहिए, ताकि रोगी को एक बड़े शहर में उचित चिकित्सा सुविधा वाले अस्पताल में लाया जा सके।"

    जस्टिस सिद्धार्थ वर्मा और अजीत कुमार की खंडपीठ ने देश भर में वैक्सीन की भारी कमी को देखते हुए कहा था कि,

    "हमें यह नहीं समझ में आ रहा है कि हमारी सरकार जो कि एक कल्याणकारी राज्य है, बड़े पैमाने पर खुद वैक्सीन बनाने की कोशिश क्यों नहीं कर रही है।"

    कोर्ट ने 11 मई को कहा था कि राज्य को यूपी पंचायत चुनाव के दौरान COVID-19 के कारण मरने वाले मतदान अधिकारियों के परिवारों को मुआवजे के रूप में कम-से-कम 1 करोड़ रूपए दिए जाने चाहिए।

    जस्टिस सिद्धार्थ वर्मा और जस्टिस अजीत कुमार की डिवीजन बेंच ने कहा था कि,

    "यह ऐसा मामला नहीं है कि किसी ने चुनाव के दौरान अपनी सेवाएं देने के लिए स्वेच्छा से काम किया। चुनाव के दौरान कर्तव्यों को निभाने के लिए नियुक्त किए गए लोगों को अनिवार्य रूप से काम कराया गया, जबकि वे लोगों ने इसके प्रति अनिच्छा दिखाया था।"

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