‘भविष्य में सावधानी बरतें’: ट्रायल कोर्ट ने जजमेंट में कथित रेप पीड़िता के नाम का उल्लेख किया, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने आपत्ति जताई

Brij Nandan

4 Jan 2023 1:36 PM IST

  • Allahabad High Court

    Allahabad High Court

    इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) ने हाल ही में सेशन कोर्ट, कानपुर देहात द्वारा दिए गए एक फैसले पर आपत्ति जताई जिसमें बलात्कार पीड़िता के नाम का उल्लेख किया गया था।

    कोर्ट ने कहा कि जज को भविष्य में ऐसे मामलों से निपटने में सावधानी बरतनी चाहिए।

    जस्टिस समित गोपाल की पीठ ने कहा कि यह अच्छी तरह से स्थापित है कि वर्तमान जैसे मामलों में किसी भी कार्यवाही में पीड़िता का नाम नहीं बताया जाना चाहिए।

    कोर्ट ने आदेश दिया,

    "मामले को समाप्त करने से पहले यह उल्लेख करना आवश्यक है कि भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 228-ए, बलात्कार के अपराध की पीड़िता के नाम का खुलासा नहीं करने के सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट्स के विभिन्न निर्णयों के बावजूद, निचली अदालत ने निर्णय में विभिन्न स्थानों पर अपना साक्ष्य दर्ज करते समय पीड़िता/अभियोजन पक्ष के नाम का विशेष रूप से उल्लेख किया है।“

    हाईकोर्ट ने बलात्कार के दो दोषियों को संदेह का लाभ देते हुए उन्हें बरी करने के अपने आदेश में यह बात कही।

    पूरा मामला

    अभियोजन पक्ष के मामले के अनुसार, पीड़िता 'एक्स' कुमारी सपना देवी के साथ मंदिर गई थी, जहां से उसे 8 जनवरी, 2013 को आरोपी ने बहला-फुसलाकर भगा लिया और उसके बाद 19 अप्रैल, 2013 को उसे बरामद कर लिया गया।

    अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश/फास्ट ट्रैक कोर्ट नंबर 1, कानपुर देहात द्वारा दोषियों को 17 वर्षीय लड़की के साथ बलात्कार करने का दोषी पाया गया। दोनों को दोषी ठहराया गया और आईपीसी की धारा 376 (जी) के तहत प्रत्येक को 12 साल के कठोर कारावास और 15 हजार रुपये के जुर्माने की सजा सुनाई गई।

    अभियुक्त-अपीलकर्ता बबलू @ जितेंद्र को आगे दोषी ठहराया गया और आईपीसी की धारा 363 के तहत सात साल के कठोर कारावास के साथ-साथ 12 हजार रुपये के जुर्माने की सजा सुनाई गई।

    फैसले और आदेश को चुनौती देते हुए आरोपी-अपीलार्थी हाईकोर्ट चले गए।

    हाईकोर्ट की टिप्पणियां

    पक्षकारों के वकील को सुनने और रिकॉर्ड देखने के बाद, अदालत ने पाया कि इस तथ्य के संबंध में विरोधाभास थे कि प्राथमिकी दर्ज करने के लिए आवेदन किसने लिखा था।

    अदालत ने कहा कि जहां पीडब्लू-1 ने कहा कि प्राथमिकी कुमारी सपना देवी पीडब्लू-3 को लिखवाई गई थी, जबकि पीडब्लू-3 ने कहा कि वही एक पुलिस अधिकारी द्वारा लिखी गई थी जिसमें उसका नाम मुंशी के रूप में लिखा गया था।

    अदालत ने यह भी कहा कि प्राथमिकी में विवरण के बारे में कोई खुलासा नहीं किया गया और आरोपी व्यक्तियों के नाम और उनके नाम मामले में जांच के दौरान सामने आए थे। आगे यह भी पाया गया कि पीड़िता की वास्तविक उम्र को लेकर भी विवाद था।

    बलात्कार के आरोपों के बारे में, अदालत ने कहा कि चिकित्सा साक्ष्य के मुताबिक उसके साथ बलात्कार नहीं किया गया था और यहां तक कि पूरक चिकित्सा रिपोर्ट में भी, डॉक्टर ने उसके साथ यौन हमले के संबंध में कोई राय नहीं दी थी।

    गौरतलब है कि पीड़िता के बयानों पर ध्यान देते हुए कि वह अपहरण के बाद दिल्ली और बैंगलोर में 3 महीने तक आरोपी व्यक्तियों के साथ रही, अदालत ने कहा कि उसने खुद से आरोपियों के यहां से अलग होने का कोई प्रयास नहीं किया।

    कोर्ट ने कहा,

    "इसके विपरीत, बचाव पक्ष द्वारा एक सुझाव दिया गया है कि पीड़िता 'X' ने अपीलकर्ता नंबर 1/बबलू @ जितेंद्र से शादी की थी जैसा कि PW1 सुशीला ने पुलिस अधीक्षक, कानपुर देहात को बताया जो कि एक्सबी: के-1 के रिकार्ड में दर्ज किया है। दर्ज रिकार्ड में कहा गया है कि पीड़िता 'एक्स' ने अपने मोबाइल से सपना को सूचना दी थी कि बबलू, उसके मामा संजय सिंह और वीरेंद्र सिंह का अपहरण कर लिया गया है। इसके बावजूद, सपना द्वारा लिखित प्रथम सूचना रिपोर्ट आरोपी व्यक्तियों के नाम के प्रकटीकरण के संबंध में चुप है और अज्ञात व्यक्तियों के खिलाफ दर्ज की गई है। अलग-अलग व्यक्तियों द्वारा अलग-अलग संस्करण और अलग-अलग स्टोरी हैं और वही पूरी तरह से असंगत नहीं हैं।“

    इस मामले को देखते हुए कोर्ट इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि अभियुक्त-अपीलार्थी संदेह का लाभ पाने के योग्य हैं। इसके साथ, अपील स्वीकार की गई और अपीलकर्ताओं को आरोपों से बरी कर दिया गया।

    आवेदक के लिए वकील: बृजेश चंद कौशिक, बीएन सिंह, मनीष कुमार सिंह

    प्रतिवादी के वकील: जी.ए.

    केस टाइटल - बबलू @ जितेंद्र व अन्य बनाम यूपी राज्य [आपराधिक अपील संख्या - 1201 ऑफ 2021]

    केस साइटेशन: 2023 लाइवलॉ (एबी) 3

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