अधिकारी आदतन न्यायालय के आदेशों का प्रथम बार में अनुपालन नहीं करते; यह एक खेदजनक स्थिति है : इलाहाबाद हाईकोर्ट
SPARSH UPADHYAY
7 Oct 2020 11:03 AM IST
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने हाल ही में प्राधिकारियों/अधिकारियों द्वारा प्रथम बार में कोर्ट के आदेशों का पालन नहीं करने पर नाराजगी व्यक्त की।
न्यायमूर्ति विवेक कुमार बिड़ला की खंडपीठ ने आगे कहा कि अधिकारियों के इस दृष्टिकोण के कारण, पीड़ित पक्ष को अवमानना आवेदन दाखिल करने के लिए मजबूर किया जाता है और अवमानना आवेदन में पारित न्यायालय के आदेश का पालन करने के लिए और समय देने के बाद भी आदेश का अनुपालन नहीं किया जा रहा है।
न्यायालय के समक्ष मामला
उल्लेखनीय रूप से, रिट याचिका संख्या 15554/2019 में अदालत द्वारा 1.11.2019 को पारित के फैसले और आदेश एवं कंटेम्प्ट एप्लिकेशन (सिविल) नंबर 1442/2020 में 02-03-2020 को पारित आदेश के सम्बन्ध में विपरीत पक्ष द्वारा जानबूझकर आदेशों का पालन न करने के चलते, अदालत के समक्ष एक अवमानना आवेदन दायर किया गया था।
आवेदक के लिए वकील द्वारा यह कहा गया था कि रिट कोर्ट के आदेश की एक प्रति दिनांक 1.11.2019 को विपरीत पार्टी को दी गई थी। जब कुछ भी नहीं किया गया था, तो आवेदक ने वर्तमान अवमानना आवेदन दायर किया।
उच्च न्यायालय ने अपने आदेश के अनुपालन के लिए मौका दिया।
यह कहा गया कि अवमानना अदालत के आदेश की सेवा के बाद और समय समाप्त होने के बाद भी, विपरीत पक्षों द्वारा कोई निर्णय नहीं लिया गया था।
न्यायालय का आदेश और अवलोकन
न्यायालय का विचार था कि प्रथम दृष्टया, विपरीत पक्ष के आदेशों की अवमानना के लिए विपरीत पक्ष को दंडित करने का मामला बनता है, जैसा कि ऊपर उल्लेख किया गया है।
अदालत ने प्रतिवादी नंबर 2 को नोटिस जारी किया और अदालत के समक्ष निजी तौर पर उपस्थित होने तथा कारण बताने को कहा है कि आखिर क्यों ऊपर उल्लिखित आदेशों की जानबूझकर अवज्ञा करने के लिए न्यायालय की अवमानना अधिनियम की धारा 12 के तहत उन्हें दंडित करने के लिए उनपर आरोप न लगाया जाए।
कोर्ट ने यह भी कहा कि,
"यह अदालत हर दिन यह नोटिस कर रही है कि जाहिर तौर पर संबंधित अधिकारी, जिन्हें न्यायालय के आदेश के अनुसार कार्य करने के लिए निर्देशित किया गया था, वे पहले तो आदेशों का अनुपालन नहीं कर रहे हैं और पीड़ित पक्ष को अवमानना आवेदन दायर करने के लिए मजबूर किया जाता है।"
अदालत ने आगे टिप्पणी की,
"यह एक खेदजनक स्थिति है और यह उम्मीद की जाती है कि विपरीत पक्ष पहली बार आदेश का पालन करने के लिए हर संभव प्रयास करेगा और अधीनस्थ अधिकारियों को इस संबंध में आवश्यक आदेश जारी करेगा ताकि वे आदेशों का सख्ती से पालन कर सकें। अन्यथा अदालत मामले को गंभीरता से लेगी।"
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