इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 'हजरत आदम' को हिंदुओं का पिता बताने वाले वीडियो के प्रसार पर दर्ज प्राथमिकी को रद्द करने से इनकार किया
LiveLaw News Network
10 Feb 2022 8:39 AM IST
इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) ने मंगलवार को फेसबुक पर एक वीडियो के प्रसार पर दर्ज प्राथमिकी को रद्द करने से इनकार कर दिया, जिसमें एक गुमनाम मौलाना को यह कहते हुए देखा गया कि हजरत आदम हिंदुओं का पिता है।
प्राथमिकी की सामग्री का अध्ययन करने के बाद न्यायमूर्ति अश्विनी कुमार मिश्रा और न्यायमूर्ति अजय त्यागी की खंडपीठ ने पाया कि प्रथम दृष्टया एक संज्ञेय अपराध का खुलासा किया गया है। कानून को देखते हुए प्राथमिकी को रद्द करने की प्रार्थना की अनुमति नहीं दी जा सकती है।
मामले के तथ्य
अनिवार्य रूप से, लाइव लॉ द्वारा एक्सेस किए गए मामले में प्राथमिकी महेश पांडे (मुखबिर) द्वारा दर्ज की गई शिकायत पर दर्ज की गई थी, जिन्होंने फेसबुक पर एक वीडियो देखा था जिसमें कुछ बयान दिए गए थे और जो कथित तौर पर हिंदुओं की भावनाओं को आहत करते हैं।
कथित तौर पर वीडियो में एक गुमनाम मौलाना कह रहे थे कि हजरत आदम हिंदुओं के पिता हैं और जिस वजह से मुखबिर ने आरोप लगाया कि हिंदू आक्रोशित हैं।
प्राथमिकी में आगे कहा गया कि वीडियो एक जाबिर खान द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम का था और इसे हिंदुओं की भावनाओं को ठेस पहुंचाने के इरादे से फेसबुक पर अपलोड किया गया था।
इसी के साथ मुखबिर ने शिकायत में कहा था कि नामजद आरोपियों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कर उचित कार्रवाई की जाए।
इसके तहत आरोपी व्यक्तियों के खिलाफ आईपीसी की धारा 295-ए, 505 (2) और सूचना प्रौद्योगिकी (संशोधन) अधिनियम, 2008 की धारा 66 के तहत मामला दर्ज किया गया था।
आवेदक शकील खान ने अधिवक्ता मोहम्मद शमीम खान और अधिवक्ता दीपक सिंह पटेल के माध्यम से अपनी वर्तमान रिट याचिका इस आधार पर दायर की कि आरोप बिल्कुल फर्जी हैं और वास्तव में ऐसा कोई वीडियो प्रसारित नहीं किया गया है, जो किसी विशेष समुदाय के सदस्यों की भावनाओं को ठेस पहुंचाए।
दूसरी ओर, एजीए ने प्रस्तुत किया कि सब्बीर खान के खिलाफ पहले ही आरोप पत्र दायर किया जा चुका है और शकील खान के खिलाफ जांच लंबित है और इसी तरह के नाम (शकील) के साथ एक अन्य व्यक्ति को बरी कर दिया गया है।
कोर्ट की टिप्पणियां
शुरुआत में, कोर्ट ने कहा कि इस तरह के वायरल वीडियो में कोई आपत्तिजनक सामग्री है या नहीं, इसकी जांच एजेंसियों द्वारा जांच की जानी आवश्यक है।
रिकॉर्ड पर लाए गए तथ्यों से, न्यायालय ने पाया कि प्रथम दृष्टया एक संज्ञेय अपराध का खुलासा किया गया है और इसलिए, न्यायालय ने प्रथम सूचना रिपोर्ट को रद्द करने से इनकार कर दिया।
हालांकि, यह देखते हुए कि पुलिस रिपोर्ट में कथित सभी अपराधों में सात साल से कम की सजा का प्रावधान है, पुलिस अधिकारियों को मामले की जांच करते समय सीआरपीसी की धारा 41-ए के प्रावधानों को ध्यान में रखने का निर्देश दिया गया है।
तदनुसार रिट याचिका का निपटारा किया गया।
केस टाइटल - शकील खान बनाम स्टेट ऑफ यू.पी. एंड 2 अन्य
केस उद्धरण: 2022 लाइव लॉ (एबी) 42
आदेश पढ़ने/डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें: