इलाहाबाद हाईकोर्ट ने राष्ट्रीयकृत बैंक कर्मचारी का ट्रांसफर आदेश पत्नी की दिव्यांगता के आधार पर रद्द किया

Sharafat

11 Jun 2022 11:39 AM GMT

  • इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट


    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया के एक कर्मचारी को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ट्रांसफर करने के आदेश को रद्द कर दिया क्योंकि यह नोट किया गया कि उसकी पत्नी स्थायी रूप से दिव्यांग है जिसकी दिव्यांगता 100% है।

    जस्टिस राजेश सिंह चौहान की खंडपीठ ने कहा कि पति (कर्मचारी) अपनी पत्नी की देखभाल करने वाला है [जैसा कि दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम, 2016 की धारा 2 (डी) के तहत परिभाषित किया गया है], इसलिए, बैंक की ट्रांसफर पॉलिसी के अनुसार , उसे नियमित / रोटेशनल ट्रांसफर से छूट दी जाए।

    अप्रैल 2022 में सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया ने अपने 163 कर्मचारियों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर सेवा देने वाले विभिन्न क्षेत्रों में ट्रांसफर करने का निर्णय लिया। वर्तमान याचिकाकर्ता [बैंक में स्केल- II अधिकारी] उन कर्मचारियों में से एक था, जिन्हें बैंक द्वारा स्थानांतरित किया गया था।

    याचिकाकर्ता ने अपने ट्रांसफर आदेश को इस आधार पर चुनौती दी कि वह अपनी दिव्यांग पत्नी की 'देखभाल करने वाला व्यक्ति है और बैंक के स्केल- I, II और III में मुख्यधारा / विशिष्ट अधिकारी के ट्रांसफर पॉलिसी के मद्देनज़र अक्टूबर 2018 में जारी डीओपीटी के मेमो के साथ पढ़ा जाए तो उनका ट्रांसफर रूटीन ट्रांसफर मानकर नहीं किया जा सकता।

    इस संबंध में उनके वकील ने तर्क दिया कि उनकी पत्नी पूरी तरह दिव्यांग है और उनकी की देखभाल करने वाला व्यक्ति होने के नाते उन्हें मद संख्या 1.2 के तहत बैंक की अपनी नीति का लाभ दिया जा सकता है, जिसके अनुसार कर्मचारी का कोई भी स्थानांतरण, चाहे वह नियमित स्थानांतरण हो या रोटेशनल स्थानांतरण हो, ऐसे स्थानांतरण से छूट दी जा सकती है।

    इन सबमिशन के बाद कोर्ट ने कहा,

    "चूंकि याचिकाकर्ता की पत्नी 100% दिव्यांगता वाली स्थायी दिव्यांग है और उसकी देखभाल करना याचिकाकर्ता की जिम्मेदारी है तो उसकी स्थिति 'देखभाल करने वाले' शब्द के अर्थ के अंतर्गत आएगी जैसा कि अधिनियम, 2016 की धारा 2 (डी) में परिभाषित है।

    याचिकाकर्ता की पत्नी की दिव्यांगता के कारण वह अधिनियम, 2016 की धारा 2 (आर) और (एस) के अर्थ के अनुसार वह 'बेंचमार्क दिव्यांगता'के तहत आएगी और वह 'दिव्यांग व्यक्ति' है।

    यदि बैंक के सक्षम प्राधिकारी ने याचिकाकर्ता को ट्रांसफर पॉलिसी /दिशानिर्देशों के अनुपालन में ट्रांसफर कर दिया है, जिसमें यह प्रावधान है कि जिसने भी एक स्थान पर 10 वर्ष की सेवा पूरी कर ली है, उसे एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में ट्रांसफर किया जाएगा तो वही पॉलिसी भी स्पष्ट रूप से पैरा 1.2 के द्वारा इंगित करती है कि जिस व्यक्ति का पति/पत्नी आदि 'बेंचमार्क दिव्यांगता' या दीर्घकालिक दिव्यांगता वाला व्यक्ति हो, उसे ट्रांसफर/पोस्टिंग आदि में डीओपीटी दिशानिर्देशों दिनांक 08.10.2018 के अनुसार नियमित / रोटेशन ट्रांसफर से छूट दी जाएगी।"

    कोर्ट ने जोर देकर कहा कि रोटेशनल ट्रांसफर एक ऐसे व्यक्ति के लिए होता है, जिसे किसी अनुकंपा या लाभकारी नीति द्वारा संरक्षित नहीं किया गया है। हालांकि कोर्ट ने कहा, यदि किसी कर्मचारी को किसी लाभकारी या अनुकंपा नीति से संरक्षित किया गया है तो ऐसा नहीं हो सकता। जब तक ऐसे व्यक्ति को एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में ट्रांसफर करने का कोई प्रशासनिक कारण न हो।

    अदालत ने याचिकाकर्ता को लखनऊ से कूचबिहार, कोलकाता में ट्रांसफर करने के आदेश को रद्द कर दिया। हालांकि, चूंकि याचिकाकर्ता के स्थान पर किसी ने अपना कार्यभार ग्रहण कर लिया है, इसलिए न्यायालय ने विपक्षी दलों को लखनऊ क्षेत्र में किसी भी उपयुक्त स्थान पर याचिकाकर्ता को अधिकारियों की सुविधा के अनुसार ग्रामीण क्षेत्रों या शहरी क्षेत्रों में समायोजित करने का निर्देश दिया

    केस टाइटल - नीरज चतुर्वेदी बनाम महाप्रबंधक और दो अन्य के माध्यम से सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया, मानव संसाधन विभाग [WRIT - A No. - 3793/2022]

    साइटेशन : 2022 लाइव लॉ (एबी) 288

    आदेश पढ़ने/डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें




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