इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अभियोजन मामले की 'सच्चाई का पता लगाने' के लिए हत्या के एक मुकदमे में डीएनए परीक्षण का आदेश दिया

LiveLaw News Network

8 Aug 2022 5:41 AM GMT

  • इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अभियोजन मामले की सच्चाई का पता लगाने के लिए हत्या के एक मुकदमे में डीएनए परीक्षण का आदेश दिया

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण आदेश में हत्या के एक मुकदमे में डीएनए परीक्षण की अनुमति दी है, क्योंकि इसने महसूस किया है कि यह अभियोजन के मामले की सच्चाई का पता लगाने के लिए न्याय के हित में होगा।

    जस्टिस गौतम चौधरी की पीठ ने जोर देकर कहा कि डीएनए परीक्षण को नियमित रूप से निर्देशित नहीं किया जाना चाहिए, बल्कि इसे केवल ऐसे योग्य मामलों में इस्तेमाल किया जाना चाहिए जहां मजबूत प्रथम दृष्टया मामला बनता है।

    कोर्ट ने कहा कि हत्या के आरोपी की यह दलील कि वह निर्दोष है और अगर डीएनए नमूनों का मिलान नहीं किया जाता है तो यह साबित हो जाएगा और यह रिकॉर्ड में आएगा कि उसे मामले में झूठा फंसाया जा रहा था।

    संक्षेप में मामला

    हरदेव सिंह / मुखबिर द्वारा आईपीसी की धारा 302 के तहत प्राथमिकी दर्ज कराई गई थी, जिसमें आरोप लगाया गया था कि मोहन सिंह (हत्या के आरोपी) ने कुछ सामान खरीदने बाजार गयी उसकी मां को गाली दी और गोली मार दी। चार्जशीट दाखिल होने के बाद मामला सेशन कोर्ट के सुपुर्द किया गया।

    मुकदमे के लंबित रहने के दौरान, आरोपी ने तर्क दिया कि मृतक की मृत्यु कहीं और हुई थी और जांच अधिकारी ने घटना के स्थान की गलत 'नक्शा नजरी' तैयार की थी और आरोपी को मामले में झूठा फंसाया गया था क्योंकि रिकॉर्ड में दर्ज घटना का स्थान सही नहीं था।

    इसलिए, उन्होंने सीआरपीसी की धारा 233 के तहत एक आवेदन दायर किया और मांग की कि अभियोजन पक्ष को पीड़ित के परिवार के सदस्यों के रक्त का नमूना उपलब्ध कराने के लिए निर्देशित किया जा सकता है और उसे फॉरेंसिक लेबोरेट्री भेजा जाए ताकि उन नमूनों के डीएनए परीक्षण परिमाण को (घटना स्थल से) भूमि से एकत्र रक्त के डीएनए परीक्षण परिणाम के साथ मिलान किया जा सके, और यह स्पष्ट हो सके कि दोनों के डीएनए एक से हैं।

    उनका प्राथमिक तर्क था कि यदि मिट्टी में सना हुआ खून और पीड़ित के परिवार के सदस्यों का खून समान पाया जाता है, तो यह कहा जा सकता है कि अभियोजन पक्ष के पास एक वैध मामला है और इसलिए, यह सब केवल डीएनए टेस्ट के माध्यम से ही पता लगाया जा सकता है ।

    इसके अलावा, जब अभियोजन पक्ष ने यह तर्क दिया कि डीएनए परीक्षण करने से मृतक के परिवार के सदस्य की निजता का उल्लंघन होगा, तो आरोपी ने तर्क दिया कि मुखबिर के लिए कोई प्रतिकूलता नहीं होगी, यदि कोर्ट निर्देश देता है कि खून से सने मिट्टी के साथ पीड़ित के परिवार के सदस्यों का डीएनए परीक्षण हो, और वही (डीएनए परीक्षण ही) उसे (आरोपी को) अपनी बेगुनाही साबित करने में मदद कर सकता है।

    हालांकि, अभियुक्त के आवेदन पर, अभियोजन पक्ष की ओर से आपत्ति दर्ज की गई थी, और उसके बाद, संबंधित अर्जी खारिज कर दी गयी थी। इस आदेश को मौजूदा याचिका के माध्यम से हाईकोर्ट में चुनौती दी गयी थी।

    हाईकोर्ट के समक्ष, मुखबिर के वकील ने दलील दी कि यदि कोई व्यक्ति डीएनए परीक्षण के लिए मना कर देता है, तो उसे ऐसा करने के लिए दबाव नहीं डाला जा सकता या मजबूर नहीं किया जा सकता है, ठीक उसी तरह मुखबिर या उसके परिवार के सदस्यों को भी डीएनए जांच के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है क्योंकि यह उनकी निजता से संबंधित है।

    कोर्ट की टिप्पणियां

    शुरुआत में, कोर्ट ने कहा कि यदि डीएनए जांच का निर्देश दिया जाता है और डीएनए का मिलान हो जाता है, तो आरोपी को दोषी ठहराया जा सकता है और यदि डीएनए मेल नहीं खाता है, तो यह दलील साबित हो जाएगी कि याचिकाकर्ता निर्दोष है।

    इसे देखते हुए, कोर्ट ने कहा कि वर्तमान मामले में, याचिकाकर्ता और मुखबिर के बीच संबंध स्थापित करने के लिए डीएनए परीक्षण की मांग नहीं की जा रही है, बल्कि आवेदक की बेगुनाही साबित करने के लिए अनुरोध किया गया है, इसलिए, कोर्ट ने कहा कि इससे मुखबिर की व्यक्तिगत स्वतंत्रता या उसके परिवार के सदस्यों की निजता के अधिकार पर कोई आक्षेप नहीं होगा।

    कोर्ट ने टिप्पणी की,

    "आवेदक का कहना है कि उसे फंसाने के लिए झूठी नक्शा नजरी तैयार की गई है, क्योंकि घटना कहीं और हुई है और प्राथमिकी में इसे उल्लिखित स्थान पर दिखाया गया है, इसलिए सबसे पहला काम होगा इसका पता लगाना, ताकि प्राथमिकी में वर्णित अभियोजन की कहानी में विश्वास किया जा सके। घटना के कथित स्थान से बरामद खून से सने मिट्टी के साथ मुखबिर या उसके रिश्तेदार के रक्त के नमूने का डीएनए परिणाम प्राप्त करके उक्त आवश्यकता को अच्छी तरह से पूरा किया जा सकता है।''

    तथ्यों और परिस्थितियों पर पूरी तरह से विचार करते हुए, कोर्ट ने कहा कि मामले के न्यायसंगत निर्णय तक पहुंचने और अभियोजन मामले में किसी भी संदेह या संशय से बचने के लिए, यह न्याय के हित में होगा कि डीएनए परीक्षण किया जाए।

    इसलिए, कोर्ट ने माना कि निचली अदालत ने आक्षेपित आदेश पारित करने में अवैधता की है, इसलिए इसे रद्द किया जाता है और अदालत ने निर्देश दिया कि अभियोजन मामले की सच्चाई का पता लगाने के लिए मुखबिर या उसके परिवार के किसी भी सदस्य के रक्त का नमूना घटनास्थल से ली गयी खून से सनी मिट्टी के डीएनए जांच परिणाम के साथ मिलान किया जाए।

    केस का शीर्षक - मोहन सिंह बनाम उत्तर प्रदेश सरकार एवं अन्य [आवेदन धारा 482 के तहत/संख्या-1621 of 2022]

    केस उद्धरण: 2022 लाइव लॉ (इलाहाबाद) 360

    ऑर्डर डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें




    Next Story