इलाहाबाद हाईकोर्ट ने वक्फ अधिनियम को चुनौती देने वाली जनहित याचिका पर अटॉर्नी जनरल, एडवोकेट जनरल को नोटिस जारी किया

Brij Nandan

19 Oct 2022 10:57 AM GMT

  • इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) ने भारत के अटॉर्नी जनरल और एडवोकेट जनरल को वक्फ अधिनियम, 1995 की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली जनहित याचिका (पीआईएल) पर नोटिस जारी किया है।

    मामले को 15 दिसंबर 2022 के लिए नए सिरे से सूचीबद्ध किया गया है।

    चीफ जस्टिस राजेश बिंदल और जस्टिस जे जे मुनीर की पीठ आशीष तिवारी और अन्य की ओर से दायर जनहित याचिका पर विचार कर रही है। याचिका में अदालत से यह घोषित करने का निर्देश देने की मांग की गई है कि वक्फ अधिनियम के तहत जारी एक अधिसूचना, आदेश, निर्णय या नियम हिंदुओं या गैर-इस्लामिक समुदायों से संबंधित सदस्यों की संपत्तियों पर नहीं लागू होगा।

    इसके अलावा, याचिका में वक्फ अधिनियम के कुछ प्रावधानों को संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 25, 26, 27 और 300-ए के उल्लंघन के रूप में रद्द करने की भी मांग की गई है।

    याचिका में तर्क दिया गया है कि कुछ प्रावधान (चुनौती दी जा रही है) वक्फ संपत्तियों को विशेष दर्जा प्रदान करते हैं। साथ ही, ट्रस्ट, मठों, अखाड़ों और सोसायटी को समान दर्जा देने से इनकार करते हैं। और इस प्रकार वे बिना निर्देशित और अनियंत्रित शक्तियां प्रदान करते हैं। वक्फ बोर्ड किसी भी संपत्ति को वक्फ संपत्ति के रूप में पंजीकृत करेगा।

    याचिका में कहा गया है,

    "इस अधिनियम में हिंदुओं और गैर-इस्लामिक समुदायों के लिए उनकी धार्मिक और निजी संपत्तियों को सरकार या वक्फ बोर्डों और हिंदू द्वारा जारी वक्फ की सूची में शामिल होने से बचाने के लिए कोई सुरक्षा नहीं है, और इसलिए, अन्य धार्मिक समुदाय के साथ भेदभाव किया जा रहा है और ये प्रावधान भारत के संविधान के अनुच्छेद 14,15,25,27 और 300 ए का उल्लंघन करते हैं।"

    याचिका में यह भी तर्क दिया गया है कि वक्फ अधिनियम के कुछ प्रावधान (धारा 4, 5, 36 और 40) भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 के अनुरूप नहीं हैं क्योंकि इस तरह के प्रावधानों में किसी को भी संपत्ति, वक्फ संपत्ति के रूप में शामिल करने के खिलाफ कोई उचित सुरक्षा प्रदान नहीं की गई है।

    यह भी प्रस्तुत किया गया है कि 1955 अधिनियम प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का पालन नहीं करता है, क्योंकि इसमें प्रभावित व्यक्तियों को सुनवाई का अवसर देने के लिए पर्याप्त प्रावधान नहीं किया गया है जो संपत्ति को वक्फ संपत्ति के रूप में शामिल करने का विरोध करना चाहते हैं।

    याचिका में कहा गया है कि इसके अलावा, धारा 40 का जिक्र करते हुए, एक प्रावधान जो वक्फ बोर्डों को किसी भी भूमि के संबंध में जांच करने के लिए अधिकृत करता है ताकि यह पता लगाया जा सके कि संपत्ति वक्फ संपत्ति है या नहीं।

    याचिका में कहा गया है कि मामले में, वक्फ बोर्ड के पास यह मानने का कारण है कि ट्रस्ट या सोसाइटी की कोई भी संपत्ति एक वक्फ संपत्ति है, वह ट्रस्ट या सोसाइटी से यह कारण बताने के लिए कह सकती है कि ऐसी संपत्ति को वक्फ संपत्ति के रूप में पंजीकृत क्यों नहीं किया जाए। बोर्ड का निर्णय अंतिम है और ट्रिब्यूनल द्वारा पारित किसी भी आदेश के अधीन है।

    याचिका में कहा गया है,

    "इस प्रकार ट्रस्ट या सोसायटी की संपत्तियों का भाग्य बोर्ड की इच्छा के अधीन है और दूसरे शब्दों में, उन्हें वक्फ बोर्डों के अधीनस्थ के रूप में रखा गया है, जो कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 15, 26 और 300 में निहित प्रावधानों का बिल्कुल उल्लंघन है।"

    गौरतलब है कि याचिका में दावा किया गया है कि पिछले 10 वर्षों में वक्फ बोर्डों ने दूसरों की जमीन पर तेजी से कब्जा किया है और उन संपत्तियों को वक्फ संपत्ति घोषित कर दिया है।

    केस टाइटल - आशीष तिवारी एंड अन्य बनाम भारत सरकार एंड अन्य [जनहित याचिका (पीआईएल) संख्या – 1922 ऑफ 2022]

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