इलाहाबाद हाईकोर्ट ने झूठे तथ्य पेश करने, भौतिक तथ्य छुपाकर याचिका दायर करने वाले व्यक्ति पर एक लाख रूपए का जुर्माना लगाया

Shahadat

16 Jan 2023 8:09 AM GMT

  • इलाहाबाद हाईकोर्ट ने झूठे तथ्य पेश करने, भौतिक तथ्य छुपाकर याचिका दायर करने वाले व्यक्ति पर एक लाख रूपए का जुर्माना लगाया

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में ऐसे व्यक्ति पर एक लाख रूपए का जुर्माना लगाया, जिसने झूठे तथ्य पेश किए हुए और मामले के भौतिक तथ्यों को छिपाते हुए रिट याचिका दायर की।

    जस्टिस सूर्य प्रकाश केसरवानी और जस्टिस जयंत बनर्जी की खंडपीठ ने याचिकाकर्ता (आसिफ खालिक) को दो सप्ताह के भीतर हाईकोर्ट विधिक सेवा समिति के पास जुर्माना जमा करने का निर्देश दिया।

    याचिकाकर्ता ने अपनी फर्म मैसर्स अम्ब्रेला कॉर्पोरेशन से संबंधित फैक्ट्री मशीनों को अपने कब्जे में लेने के लिए अदालत का रुख किया, जिसे प्रतिवादी नंबर दो द्वारा जब्त किया गया।

    उसका मामला यह था कि मशीनों को तब भी जब्त कर लिया गया जब उसने मैसर्स हीरो फिनकॉर्प लिमिटेड से न तो कोई लोन लिया और न ही अपनी संपत्ति गिरवी रखी और न ही किसी के लिए गारंटर बना।

    पूछताछ किए जाने पर याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि लोन वास्तव में याचिकाकर्ता की पत्नी द्वारा लिया गया, जो मैसर्स ज़ेब डिज़ाइनर्स की मालिक है, जिसका मैसर्स अम्ब्रेला कॉर्पोरेशन के साथ कोई संबंध नहीं है, जो याचिकाकर्ता स्वामित्व वाली फर्म है।

    इन तथ्यों की पृष्ठभूमि के खिलाफ न्यायालय ने शुरुआत में रिट याचिका का अवलोकन किया और पाया कि याचिकाकर्ता ने यह नहीं कहा कि प्रश्नगत मशीनरी मैसर्स अम्ब्रेला कॉर्पोरेशन की है। उन्होंने यह भी खुलासा नहीं किया कि मैसर्स ज़ेब डिज़ाइनर्स का मालिक उनकी पत्नी का है।

    इसके अलावा, अदालत ने यह भी कहा कि कथित मैसर्स अंब्रेला कॉर्पोरेशन का कोई रजिस्ट्रेशन विवरण दायर नहीं किया गया और उससे संबंधित जब्त मशीनरी का कोई सबूत दायर नहीं किया गया। वास्तव में यह इंगित करने के लिए कोई कागजात दायर नहीं किया गया कि मैसर्स अम्ब्रेला कॉर्पोरेशन के नाम और शैली में वास्तव में स्वामित्व वाली संस्था मौजूद है।

    न्यायालय ने यह भी नोट किया कि रिट याचिका में यह कहा गया कि याचिकाकर्ता ने अतिरिक्त जिला मजिस्ट्रेट (वित्त और राजस्व) के साथ मशीनों की जब्ती के संबंध में अभ्यावेदन दायर किया। हालांकि, उक्त अभ्यावेदन आसिफ जैदी द्वारा भेजा गया, जो कि याचिकाकर्ता का बेटा है।

    अदालत ने कहा,

    “… हम पाते हैं कि याचिकाकर्ता ने दिनांक 28.4.2022 और 2.5.2022 को अतिरिक्त जिला मजिस्ट्रेट (वित्त और राजस्व), गाजियाबाद को अभ्यावेदन दिया और इसकी प्रति अनुलग्नक नंबर एक और दो के रूप में दायर की गई। रिट याचिका के अनुबंध-2 के अवलोकन से पता चलता है कि यह आसिफ जैदी द्वारा ईमेल के माध्यम से भेजा गया और अतिरिक्त जिला मजिस्ट्रेट (वित्त और राजस्व) के व्यक्तिगत हलफनामे के पृष्ठ 84 पर गारंटी के दस्तावेज के साथ संलग्न अनुसूची-1 के अनुसार भेजा गया। दिनांक 10.1.2023 को याचिकाकर्ता का पुत्र, जिसका नाम अशर आसिफ जैदी है और याचिकाकर्ता का पूरा नाम आसिफ के जैदी है। याची के वकीन ने कहा कि याची का पूरा नाम आसिफ खालिक जैदी है। याचिकाकर्ता ने रिट याचिका में इन सभी भौतिक तथ्यों को बड़ी आसानी से छुपाया है।”

    इस पृष्ठभूमि के खिलाफ यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड बनाम बी. राजेंद्र सिंह और अन्य, जेटी 2000 (3) SC.151 और एसपी चेंगलवरया नायडू (मृत) एलआर बनाम जगन्नाथ (मृत) एलआर और अन्य, एआईआर 1994 एससी 853 के मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का हवाला देते हुए बेंच ने याचिकाकर्ता को तथ्यों के साथ अदालत आने की आवश्यकता पर जोर दिया।

    इसलिए यह पाते हुए कि याचिकाकर्ता ने भौतिक तथ्यों को छुपाकर अदालत का दरवाजा खटखटाया, अदालत ने याचिका खारिज कर दी और एक लाख रूपए का जुर्माना लगाया।

    न्यायालय ने यह भी निर्देश दिया कि मैसर्स हीरो फिनकॉर्प लिमिटेड को आदेश के बारे में सूचित किया जाए, क्योंकि उसे इस मामले में पक्षकार के रूप में शामिल नहीं किया गया।

    केस टाइटल- आसिफ खालिक बनाम स्टेट ऑफ यूपी और 2 अन्य [WRIT - C No. - 16263 of 2022]

    केस साइटेशन: लाइवलॉ (एबी) 16/2023

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