इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 'उत्तर प्रदेश भूमि रिकॉर्ड नियमावली' को चुनौती देने वाली जनहित याचिका खारिज की, 10 हजार रूपये का जुर्माना लगाया

LiveLaw News Network

16 April 2022 5:05 AM GMT

  • इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश भूमि रिकॉर्ड नियमावली को चुनौती देने वाली जनहित याचिका खारिज की, 10 हजार रूपये का जुर्माना लगाया

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में जनहित याचिका (पीआईएल) के रूप में दायर एक रिट याचिका खारिज कर दी। इस याचिका में उत्तर प्रदेश भूमि रिकॉर्ड मैनुअल को उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता, 2006 और राजस्व संहिता नियम, 2016 के अल्ट्रा-वायरल के रूप में घोषित करने की मांग की गई थी।

    जस्टसि प्रिंकर दिवाकर और जस्टिस आशुतोष श्रीवास्तव की खंडपीठ ने याचिकाकर्ता (शैलेश कुमार मिश्रा) पर याचिका के सुनवाई योग्य न होने के कारण 10,000/- रुपये का जुर्माना भी लगाया।

    गौरतलब है कि यू.पी. भूमि अभिलेख नियमावली भूमि अभिलेखों की तैयारी और रखरखाव के लिए नियम और प्रक्रियाएं प्रदान करती है। वहीं दूसरी ओर यू.पी. राजस्व संहिता, 2006 को उत्तर प्रदेश राज्य में भूमि काश्तकार और भू-राजस्व से संबंधित कानून को समेकित और संशोधित करने, उससे जुड़े और उसके आनुषंगिक मामलों के लिए प्रदान करने के लिए प्रख्यापित किया गया है।

    कोर्ट के सामने मामला

    मिश्रा ने सामाजिक कार्यकर्ता और किसान के रूप में हाईकोर्ट का रुख किया। याचिकाकर्ता ने दावा किया कि उक्त याचिका में उसका कोई व्यक्तिगत हित नहीं है, वह केवल ग्रामीणों और जनता के लाभ के लिए याचिका दायर कर रहा है।

    उसके द्वारा यह तर्क दिया गया कि जनहित याचिका जनता के सामान्य हित के लिए यू.पी. भूमि अभिलेख नियमावली एक पुराना नियमावली है और यू.पी. राजस्व संहिता, 2006 के अनुसार नहीं है।

    दूसरी ओर, यूपी राज्य ने इस आधार पर जनहित याचिका का विरोध किया कि यू.पी. जनहित याचिका के रूप में दायर की गई रिट याचिका में भूमि रिकॉर्ड मैनुअल को चुनौती/प्रश्न नहीं किया जा सकता है।

    कहा गया कि अधिनियम के प्रावधानों को केवल दो आधारों पर अल्ट्रा-वायर्स के रूप में रद्द किया जा सकता है (i) विधायी क्षमता की कमी के कारण, या (ii) किसी अन्य संवैधानिक प्रावधान के किसी भी मौलिक अधिकार का उल्लंघन होने के कारण।

    अंत में यह प्रस्तुत किया गया कि याचिकाकर्ता यह स्थापित करने में विफल रहा कि मैनुअल के प्रासंगिक प्रावधान वास्तव में भारत के संविधान के अनुच्छेद -14 के तहत परिकल्पित किसी भी मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करते हैं या विधायी क्षमता की कमी है।

    न्यायालय की टिप्पणियां

    इस पृष्ठभूमि के खिलाफ कोर्ट ने शुरू में कहा कि उसे एक भी शब्द नहीं मिला जो यह बता सके कि याचिकाकर्ता एक ऐसा व्यक्ति है जो सीधे तौर पर पीड़ित है। इसके अलावा, कोर्ट ने यह भी नोट किया कि याचिकाकर्ता यह साबित करने में सक्षम नहीं है कि मैनुअल को विधायी क्षमता के बिना लाया गया है।

    नियमावली के अधिकार के संबंध में न्यायालय ने विशेष रूप से देखा कि यू.पी. भूमि अभिलेख नियमावली केवल भूमि अभिलेखों को बनाए रखने के तरीके और प्रक्रिया प्रदान करती है।

    कोर्ट ने आगे कहा कि यू.पी. राजस्व संहिता, 2006 की धारा 234(3) में प्रावधान है कि राजस्व संहिता, 2006 के प्रारंभ होने की तिथि पर लागू भूमि अभिलेख नियमावली उस सीमा तक लागू रहेगी जब तक कि वे राजस्व संहिता, 2006 के प्रावधानों के साथ असंगत नहीं हैं।

    इसे देखकर और जनहित याचिका पर विचार करने से इनकार करते हुए न्यायालय ने टिप्पणी की:

    "उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता, 2006 की धारा 234(3), स्वयं भूमि अभिलेख नियमावली की असंगति का ध्यान रखती है और इसे केवल उस सीमा तक कायम रखती है, जब तक यह राजस्व संहिता, 2006 के प्रावधानों के साथ असंगत नहीं है। हमारी राय है कि यह एक उपयुक्त मामला नहीं है जहां जनहित याचिका क्षेत्राधिकार को लागू किया जाना चाहिए या प्रयोग किया जाना चाहिए।"

    तदनुसार, न्यायालय ने 10 हजार रुपये का जुर्माना लगाकर गैर-रखरखाव के कारण याचिका को खारिज कर दिया।

    उक्त जुर्माने की राशि को आदेश की तिथि से 45 दिनों के भीतर हाईकोर्ट विधिक सेवा समिति, हाईकोर्ट, इलाहाबाद के पास जमा करना होगा।

    केस का शीर्षक - शैलेश कुमार मिश्रा बनाम यूपी राज्य और अन्य

    केस साइटेशन: 2022 लाइव कानून (सभी) 178

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