इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सीआरपीसी की धारा 156 (3) के तहत पुलिस जांच की मांग वाली बलात्कार पीड़िता की याचिका खारिज करने वाले सीजेएम के आदेश को रद्द किया, मामले को वापस विचार के लिए भेजा
Brij Nandan
26 Dec 2022 6:30 AM GMT
![Allahabad High Court expunges adverse remarks against Judicial Officer Allahabad High Court expunges adverse remarks against Judicial Officer](https://hindi.livelaw.in/h-upload/2019/06/750x450_03360372-allahabad-hc-1jpg.jpg)
इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) ने सीआरपीसी की धारा 156 (3) के तहत पुलिस जांच की मांग वाली बलात्कार पीड़िता की याचिका खारिज करने वाले मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट (सीजेएम) के आदेश को रद्द किया।
दरअसल, रेप पीड़िता ने आरोपी के खिलाफ पुलिस जांच की मांग की थी।
जस्टिस राहुल चतुर्वेदी की खंडपीठ ने इस मामले को फिर से विचार करने और और XYZ बनाम मध्य प्रदेश राज्य 2022 LiveLaw (SC) 676 मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित अनुपात के आलोक में निर्णय लेने के निर्देश के साथ मामले को वापस सीजेएम की अदालत में भेज दिया।
बता दें, XYZ मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि एक न्यायिक मजिस्ट्रेट का कर्तव्य है कि वह सीआरपीसी की धारा 156 (3) के तहत पुलिस जांच का आदेश दे, जब शिकायत प्रथम दृष्टया संज्ञेय अपराध का होना दर्शाती है, विशेष रूप से यौन अपराधों में, और तथ्य पुलिस जांच की आवश्यकता का संकेत देते हैं।
पूरा मामला
मौजूदा मामले में, बलात्कार पीड़िता एक विवाहित महिला है जिसके दो बच्चे हैं जिनकी उम्र 18 और 14 वर्ष है। बयान के अनुसार आरोपी पीड़िता को छेड़ता था और इसी बात पर वह परेशान थी। उसने उसे ऐसा गलत काम करने के लिए मना किया लेकिन वह नहीं माना।
बीच की अवधि के दौरान, आरोपी ने पीड़िता याचिकाकर्ता को अपने घर जाने और उसकी परीक्षा के लिए अध्ययन सामग्री लेने के लिए मना लिया। हालांकि, जब उसे पता चला कि वह वहां अकेला रह रहा है, तो उसने वापस आने की कोशिश की, लेकिन आरोपी ने कथित तौर पर अंदर से दरवाजा बंद कर उसके साथ दुष्कर्म किया और उसके अश्लील फोटो व वीडियोग्राफी भी कर ली।
वह पुलिस स्टेशन गई और प्राथमिकी दर्ज करने के लिए एक आवेदन दिया, हालांकि, कोई कार्रवाई नहीं हुई। इसलिए, उसने एसपी, मेरठ को एक आवेदन भेजा, लेकिन किसी भी अधिकारी ने उसके अनुरोध पर कोई ध्यान नहीं दिया।
इसके बाद, उसने सीआरपीसी की धारा 156(3) के तहत एक आवेदन दायर किया। मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, मेरठ के समक्ष, हालांकि, जुलाई 2021 में इसे खारिज कर दिया गया था। इसके बाद, उन्होंने जिला एवं सत्र न्यायाधीश, मेरठ की अदालत के समक्ष एक पुनरीक्षण याचिका दायर की और उसे भी खारिज कर दिया गया (18 अप्रैल, 2022 को)।
नतीजतन, वह दोनों आदेशों की वैधता को चुनौती देते हुए वर्तमान याचिका के साथ हाईकोर्ट गई।
हाईकोर्ट की टिप्पणियां
मामले के तथ्यों को ध्यान में रखते हुए, शुरुआत में, न्यायालय ने XYZ मामले (उपरोक्त) का उल्लेख किया कि न्यायालयों को समाज के कमजोर वर्ग से जुड़े यौन उत्पीड़न के मामलों में जांच के लिए पुलिस पर दबाव डालना चाहिए, जहां पीड़िता पहले से ही ट्रामा स्टेज में है।
न्यायालय ने आगे कहा कि ऐसे मामलों में, न्यायालयों से इस तथ्य का संज्ञान लेने की उम्मीद की जाती है कि कानूनी प्रक्रिया उन शिकायतकर्ताओं के लिए और भी कठिन हो जाती है जो संभावित रूप से यौन पीड़ितों से जुड़े अनुचित कलंक के कारण आघात और सामाजिक शर्म से निपट रहे हैं।
अदालत ने कहा,
"अदालत को इतना संवेदनशील होना चाहिए कि वह गरीब पीड़ित की पीड़ा और मानसिक आघात को समझ सके और यह अदालत की जिम्मेदारी है कि वह पुलिस एजेंसी को इस मामले की गहन जांच के लिए कहे।"
यह मानते हुए कि विवादित आदेश XYZ केस (सुप्रा) में सुप्रीम कोर्ट द्वारा स्थापित मानक से कम है, न्यायालय ने विवादित आदेशों को रद्द कर दिया और मामले को फिर से विचार करने के लिए सीजेएम अदालत को वापस भेज दिया। पूरे मामले को एक बार फिर छह सप्ताह की अवधि के भीतर एक सुविचारित आदेश पारित करने का निर्देश दिया।
इसी के साथ याचिका का निस्तारण कर दिया गया।
केस टाइटल - XYZ बनाम यूपी राज्य और 2 अन्य [अनुच्छेद 227 के तहत मामला संख्या - 6105 ऑफ 2022]
केस साइटेशन: 2022 लाइव लॉ (एबी) 539
आदेश पढ़ने/डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें: