इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गर्भपात की मांग कर रही नाबालिग बलात्कार पीड़िता को मेडिकल सुविधा और मुआवजा देने का आदेश दिया, पीड़िता के पिता गोद लिए जाने तक बच्चे को रखने के लिए सहमत

Sharafat

6 Sep 2023 12:36 PM GMT

  • इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गर्भपात की मांग कर रही नाबालिग बलात्कार पीड़िता को मेडिकल सुविधा और मुआवजा देने का आदेश दिया, पीड़िता के पिता गोद लिए जाने तक बच्चे को रखने के लिए सहमत

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बुधवार को एक 15 वर्षीय बलात्कार पीड़िता को पर्याप्त मेडिकल सुविधा और मुआवजा दिया। अदालत से पीड़ित लड़की अपने 29 सप्ताह के गर्भ को समाप्त करने की मांग कर रही थी, लेकिन उसके पिता अपनी बेटी की मेडिकल रिपोर्ट देखने के बाद गोद लिये जाने तक नवजात शिशु की देखभाल करने के लिए सहमत हुए। इसे देखते हुए अदालत ने पीड़िता को पर्याप्त मेडिकल सुविधा और मुआवजा देने का आदेश दिया।

    बलात्कार पीड़िता ने अपनी गर्भावस्था को समाप्त करने की मांग करते हुए हाईकोर्ट का रुख किया था, हालांकि लड़की की मेडिकल रिपोर्ट को देखते हुए उसके पिता गोद लेने तक बच्चे को रखने और उसकी देखभाल करने के लिए सहमत हुए। पीड़िता की मेडिकल रिपोर्ट में कहा गया था कि भ्रूण 30 सप्ताह का है और भ्रूण (अजन्मा) व्यवहार्यता की उम्र (यानी 24 सप्ताह से अधिक गर्भकालीन आयु) पार कर चुका है।

    पीड़िता की मेडिकल रिपोर्ट में मेडिकल बोर्ड ने सर्वसम्मति से राय दी है कि हालांकि पीड़िता किसी भी ऑपरेशन से गुजरने के लिए मेडिकल रूप से फिट है, लेकिन भ्रूण की प्री मैच्योरिटी को देखते हुए नवजात (जन्मजात भ्रूण) जीवित रह भी सकता है और नहीं भी।

    पीड़ित के के पिता गोद लिये जाने तक बच्चे को रखने के लिए सहमत हो गए। उन्होंने अदालत से अनुरोध किया कि मेडिकल सुविधा का खर्च, गोद लेने तक नवजात शिशु का भरण पोषण और अन्य सुविधाएं, जो नवजात शिशुओं के लिए आवश्यक हैं, राज्य द्वारा याचिकाकर्ता के पिता को दी जाएं।

    जस्टिस महेश चंद्र त्रिपाठी और जस्टिस प्रशांत कुमार की पीठ ने इसे देखते हुए पर्याप्त मेडीकल सुविधाओं के लिए आदेश देने के अलावा, जिला मजिस्ट्रेट, चंदौली को 'रानी लक्ष्मीबाई महिला सम्मान कोष' योजना के तहत बलात्कार पीड़िता को अनुग्रह राशि प्रदान करने का निर्देश दिया।

    उल्लेखनीय है कि मेडिकल रिपोर्ट हाईकोर्ट के 4 सितंबर के आदेश के अनुसार डॉक्टरों की एक टीम द्वारा दायर की गई थी, जिसमें अदालत ने पीड़िता की जांच के लिए सर सुंदर लाल अस्पताल, बनारस हिंदू विश्वविद्यालय, वाराणसी के चिकित्सा अधीक्षक से प्रसूति एवं स्त्री रोग विभाग, एनेस्थीसिया विभाग और रेडियो डायग्नोसिस विभाग की अध्यक्षता में पांच सदस्यीय टीम गठित करने का अनुरोध किया था।

    अपने आदेश में अदालत ने यह भी कहा कि पीड़िता को यौन उत्पीड़न करने वाले व्यक्ति के बच्चे को जन्म देने के लिए मजबूर करने से उसे दुखों का सामना करना पड़ेगा।

    पीठ ने कहा था,

    " यौन उत्पीड़न के मामले में एक महिला को गर्भावस्था के मेडिकल टर्मिनेशन के लिए न कहने और उसे मातृत्व की ज़िम्मेदारी से बांधने के अधिकार से इनकार करना उसके सम्मान के साथ जीने के मानव अधिकार से इनकार करने के समान होगा क्योंकि उसे अपने शरीर के संबंध में अधिकार है, जिसमें मां बनने के लिए हां या ना कहना शामिल है।'

    केस टाइटल - एक्स बनाम यूपी राज्य और 4 अन्य [रिट - सी नंबर - 30708/2023

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