सार्वजनिक स्थानों पर मास्क पहनने को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जारी किए विस्तृत निर्देश, विकास प्राधिकरणों और स्थानीय नगर प्राधिकरणों के बीच अधिकार क्षेत्र को लेकर चल रहे संघर्ष का हल निकाला

LiveLaw News Network

9 Oct 2020 2:48 PM GMT

  • सार्वजनिक स्थानों पर मास्क पहनने को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जारी किए विस्तृत निर्देश, विकास प्राधिकरणों और स्थानीय नगर प्राधिकरणों के  बीच अधिकार क्षेत्र को लेकर चल रहे संघर्ष का हल निकाला

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बुधवार को यह सुनिश्चित करने के लिए विस्तृत निर्देश जारी किए हैं ताकि सार्वजनिक स्थानों पर जाने वाले सभी व्यक्ति मास्क पहनकर जाएं।

    जस्टिस सिद्धार्थ वर्मा और जस्टिस अजीत कुमार की खंडपीठ ने सार्वजनिक भूमि पर किए गए अनधिकृत अतिक्रमण के मुद्दे को भी गंभीरता से लिया है। जिसके चलते इन जगहों पर अक्सर COVID19 दिशानिर्देशों का उल्लंघन करते हुए बड़ी संख्या में पुरुष और महिलाएं एकत्रित हो जाते हैं।

    हाईकोर्ट सार्वजनिक स्थानों पर बार-बार मास्क पहनने के महत्व पर जोर देता रहा है।

    हाईकोर्ट ने पूर्व में भी टिप्पणी की थी कि,'' कोई भी व्यक्ति अपने चेहरे पर मास्क लगाए बिना अपने घर से बाहर नजर नहीं आना चाहिए। वहीं इस बात का भी ध्यान रखा जाए कि मास्क मुंह व नाक को अच्छी तरह से कवर करता हो।''

    हाईकोर्ट ने अब आदेश दिया है किः

    पूरे यूपी में स्थित विभागों के सभी प्रमुखों को अपने कर्मचारियों को रिमांइडर भेजना चाहिए कि उन्हें और उनके परिवार के सदस्यों को अनिवार्य रूप से मास्क पहनना है। यह काम प्रतिदिन किया जाना चाहिए।

    राज्य पुलिस को खुद निष्ठापूर्वक मास्क पहनना चाहिए और यह भी देखना चाहिए कि उनके आसपास के क्षेत्र में हर कोई मास्क पहनकर बाहर निकले। यहाँ इस बात का भी उल्लेख किया जा सकता है कि विभिन्न गणमान्य व्यक्तियों के घरों के बाहर प्रतिनियुक्त सुरक्षाकर्मी मास्क नहीं पहन रहे हैं। उन्हें अपने मास्क पहनने चाहिए और उनके पास से गुजरने वाले लोगों से भी अनुरोध करना चाहिए कि वे भी मास्क पहनें।

    भोजनालयों के अलावा अन्य सभी दुकानदारों को भी यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उनकी दुकान के परिसर में आने वाले सभी ग्राहक /व्यक्ति मास्क पहनकर आएं और हर समय उसे पहनकर रखें। यह कहने की जरूरत नहीं है कि मास्क न पहनने पर जुर्माना लगाया जा सकता है और केस चल सकता है।

    इस कोर्ट द्वारा नियुक्त एडवोकेट कमिश्नर पहले की तरह फोटो खींचना जारी रखें ताकि पता चल सकें कि किन-किन जगहों पर आदेश का उल्लंघन हो रहा है। वहीं राज्य प्राधिकरण इन तस्वीरों पर कार्रवाई कर सकता है।

    सार्वजनिक भूमि का अतिक्रमण

    इसी बीच,हाईकोर्ट ने विकास प्राधिकरण, प्रयागराज को निर्देश दिया है कि वह शहर में सार्वजनिक सड़क और सड़क के किनारे की भूमि और अन्य सार्वजनिक स्थानों से सभी अनधिकृत अतिक्रमणों को हटाने के लिए तुरंत आगे की कार्रवाई करें , ताकि इन स्थानों पर बड़ी सभाओं को रोका जा सके।

    कोर्ट ने आगे यह भी निर्देश दिया है कि नगर निगम और पुलिस प्रशासन को अतिक्रमण विरोधी अभियान में सभी आवश्यक मदद प्रदान करनी चाहिए। वहीं इस संबंध में अगली सुनवाई पर एक रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया है।

    गौरतलब है कि हाईकोर्ट ने कई बार स्थानीय अधिकारियों को सार्वजनिक भूमि पर अतिक्रमण रोकने और पार्किंग के संकट से निपटने का निर्देश दिया है। हालाँकि, यह पाया गया है कि यह मुद्दा अभी भी सुलझा नहीं है क्योंकि विकास प्राधिकरण और नगर निकाय यूपी शहरी नियोजन और विकास अधिनियम, 1973 व यूपी नगर निगम अधिनियम, 1959 के विभिन्न प्रावधानों का हवाला देते हुए ''एक-दूसरे पर अपना बोझ ड़ालते रहते हैं।''

    इसी को दर्शाते हुए, न्यायालय का विचार था कि किसी भी संघर्ष या आपसी विरोध के मामले में, दोनों अधिनियमों को ''एक दूसरे के साथ सद्भाव में पढ़ना'' जाना चाहिए ताकि दोनों प्राधिकरण बड़े जनहित में अपनी जिम्मेदारियों को निभा सकें।

    कोर्ट ने कहा कि,''दोनों अधिनियमों के तहत उद्देश्यों की प्राप्ति आवश्यक है। इसलिए दोनों अधिनियम 1959 व 1973 के तहत दिए गए प्रावधानों के दो अलग-अलग सेट में अनुरूपता बनाने की आवश्यकता है। हमने इन प्रावधानों को एक दूसरे का पूरक पाया है।''

    न्यायालय ने पाया कि अधिनियम 1959 और 1973 आपस में ओवरलैप नहीं करते हैं। कोर्ट ने स्पष्ट किया किः

    'विकास क्षेत्रों' में विकास गतिविधियों को विकास प्राधिकरणों द्वारा किया जाना चाहिए। ऐसी गतिविधियों में शामिल हैंः (1) मुख्य सार्वजनिक सड़क और सार्वजनिक भूमि पर नक्काशी, (2) विकास क्षेत्रों का निरीक्षण,(3) अधिनियम 1973 की धारा 26 ए के तहत अनधिकृत अतिक्रमणकारियों के खिलाफ कार्रवाई।

    दूसरी ओर नगर निगम (1) जल निकासी, (2) सार्वजनिक गलियां, (3) नगरपालिका क्षेत्रों में गलियों और उप-गलियों का रखरखाव, (4) बिजली के खंभे और प्रकाश की व्यवस्था आदि के लिए जिम्मेदार हैं। इसलिए उनके पास ऐसे अनधिकृत अतिक्रमणों को हटाने की शक्तियां भी निहित है।

    कोर्ट ने आगे स्पष्ट किया कि,

    ''किसी भी विकास क्षेत्र में अगर नगर निगम काम कर रहा है और मास्टर प्लान व जोनल डेवलपमेंट प्लान के अनुसार विकास कार्य किए जाते हैं, तो हमारे विचार में विकास प्राधिकरण व नगर निगम को मिलकर व एक दूसरे की सहायता करते हुए मिलकर कार्य करना चाहिए ताकि यह सुनिश्चित किया जा सकें कि किसी भी सार्वजनिक स्थान, सार्वजनिक सड़क या सड़क के किनारे की भूमि या सार्वजनिक भवनों पर किसी व्यक्ति का कब्जा न हो पाए,भले ही ऐसा कब्जा अस्थायी या स्थायी ढ़ाचे के रूप में हो या अधिनियमों के तहत अधिसूचित क्षेत्र में किसी भी विकास गतिविधि का उल्लंघन करके किया गया हो।''

    इसके अलावा, कोर्ट ने कहा कि सड़क के किनारे की जमीन की सफाई, शहर के व्यावसायिक क्षेत्रों में वाहनों की पार्किंग के प्रबंधन के साथ-साथ वेंडिंग जोन में सड़क किनारे खड़े होने वाले वेंडर/ रेहड़ी वालों का पुनर्वास करना आदि कुछ ऐसे अन्य कार्य हैं,जिन्हें महामारी के इन दिनों में विभिन्न स्थानीय प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा पूरा किया जाना है।

    सैनिटाइजर

    न्यायालय ने राज्य सरकार से यह भी स्पष्ट करने को कहा है कि क्या सैनिटाइजर के निर्माण और बिक्री के लिए लाइसेंस लेने के साथ-साथ ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक एक्ट, 1940 और ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक रूल्स, 1945 के तहत लाइसेंस लेना की भी आवश्यक है?

    यह मामला अब 14 अक्टूबर, 2020 को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया गया है।

    केस का शीर्षक-In-Re Inhuman Condition At Quarantine Centres…

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