"एक महीने के लिए गाय की सेवा करें, गौशाला में एक लाख रुपए जमा करें ": इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश गोहत्या अधिनियम के आरोपी पर जमानत की शर्त लगाई

Sharafat

3 Jun 2022 4:18 PM GMT

  • एक महीने के लिए गाय की सेवा करें, गौशाला में एक लाख रुपए जमा करें : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश गोहत्या अधिनियम के आरोपी पर जमानत की शर्त लगाई

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गुरुवार को एक व्यक्ति पर उत्तर प्रदेश गो-हत्या निवारण अधिनियम 1955 के तहत दर्ज मामले में इस शर्त पर जमानत दे दी कि वह जेल से रिहा होने के बाद गौशाला में एक महीने तक गायों की सेवा करेगा।

    जस्टिस शेखर यादव की पीठ ने एक सलीम उर्फ ​​कालिया को जमानत देते हुए यह आदेश जारी किया , जिस पर गोहत्या अधिनियम, 1955 की धारा 3/8 के तहत मामला दर्ज किया गया था ।

    अदालत के समक्ष आरोपी ने तर्क दिया कि उसका नाम एफआईआर में नहीं था और जांच के दौरान आवेदक की संलिप्तता सिर्फ उसके इकबालिया बयान के आधार पर वर्तमान मामले में दिखाई गई थी।

    आगे यह तर्क दिया गया कि उसकी गिरफ्तारी के बाद उस पर दो मामले दर्ज किए गए थे, भले ही उसके कब्जे से कुछ भी बरामद नहीं हुआ और बरामदगी का कोई स्वतंत्र चश्मदीद गवाह नहीं है।

    आरोपी के वकील ने तर्क दिया कि जो बरामदगी दिखाई गई है वह झूठी और मनगढ़ंत है। उन्होंने अपने क्लाइंट के खिलाफ लगाए गए आरोपों को झूठा साबित करने के लिए कई अन्य दलीलें दीं। अंत में यह प्रस्तुत किया गया कि आरोपी अगस्त 2021 से जेल में है।

    इस पृष्ठभूमि में निवेदनों के प्रकाश में मामले के रिकॉर्ड का अवलोकन करने के बाद और मामले के सभी तथ्यों और परिस्थितियों, साक्ष्य की प्रकृति, हिरासत में बिताई गई अवधि का समग्र दृष्टिकोण लेने के बाद, मुकदमे के जल्दी निष्कर्ष की संभावना और सबूतों के साथ छेड़छाड़ की संभावना को इंगित करने की किसी भी ठोस सामग्री की अनुपस्थिति में अदालत ने निष्कर्ष निकाला कि आवेदक को जमानत दी जा सकती है ।

    आवेदक को निम्नलिखित दो शर्तों पर जमानत दी गई :

    " आवेदक रिहा होने के एक माह के भीतर जिला बरेली के किसी रजिस्टर्ड गौशाला के पक्ष में एक लाख रुपए जमा करवाएगा। जेल से छूटने के तुरंत बाद आवेदक स्वयं गौशाला में उपलब्ध होगा और एक माह की अवधि तक गायों की सेवा करेगा।"

    जस्टिस शेखर कुमार यादव की पीठ ने सितंबर 2021 में कहा था कि इस तथ्य के आलोक में गाय को राष्ट्रीय पशु का दर्जा दिया जाना चाहिए कि गाय भारत की संस्कृति का अभिन्न अंग है और गोमांस को खाना किसी भी व्यक्ति का मौलिक अधिकार नहीं माना जा सकता। जस्टिस शेखर कुमार यादव ने अपने आदेश में यह भी कहा कि वैज्ञानिकों का मानना ​​​​है कि गाय एकमात्र ऐसी जानवर है, जो ऑक्सीजन लेती है और ऑक्सीजन ही छोड़ती है।

    जस्टिस शेखर कुमार यादव की पीठ ने हिंदी में लिखे जमानत आदेश में कहा था कि मौलिक अधिकार केवल गोमांस खाने वालों का ही नहीं है, बल्कि गाय की पूजा करने वालों और गायों पर आर्थिक रूप से निर्भर लोगों को भी है। इस संदर्भ में कोर्ट ने कहा, "जीवन का अधिकार मारने के अधिकार से ऊपर है और गोमांस खाने के अधिकार को कभी भी मौलिक अधिकार नहीं माना जा सकता है । जीवन का अधिकार केवल दूसरे के स्वाद के लिए नहीं छीना जा सकता है, और यह कि जीवन का अधिकार मारने के अधिकार से ऊपर है। गोमांस खाने का अधिकार कभी भी मौलिक अधिकार नहीं हो सकता।"

    केस टाइटल - सलीम उर्फ ​​कालिया बनाम. यूपी राज्य [आपराधिक विविध। जमानत आवेदन नंबर - 48222/2021]

    साइटेशन :

    आदेश पढ़ने/डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें



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