इलाहाबाद हाईकोर्ट उत्तर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू को जमानत दी
LiveLaw News Network
16 Jun 2020 1:49 PM GMT
![Allahabad High Court expunges adverse remarks against Judicial Officer Allahabad High Court expunges adverse remarks against Judicial Officer](https://hindi.livelaw.in/h-upload/2019/06/750x450_03360372-allahabad-hc-1jpg.jpg)
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मंगलवार को 21 मई से जेल में बंद उत्तर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अजय कुमार की नियमित जमानत अर्जी का अनुमति दे दी। उत्तर प्रदेश सरकार ने उन्हें कथित रूप से उन बसों की गलत जानकारी देने के आरोप में गिरफ्तार किया था, जिन बसों से प्रवासी मजदूरों को घर भेजा जाना था।
हाईकोर्ट ने कहा कि वर्तमान मामले में हुए कथित अपराध की प्रकृति को देखते हुए, जमानत देने का मामला बनता है। जस्टिस अताउ रहमान मसूदी की पीठ ने कहा, "यह आश्चर्यजनक है कि आरोपी आवेदक के खिलाफ वर्ष 2000 से ही कई मामलों दर्ज हैं, हालांकि वर्तमान मामले में उसके खिलाफ आरोपित अपराधों की सामग्री को देखते हुए, जमानत देने का मामला बनता है। और विशेष रूप से जब COVID-19 के कारण मानव जीवन सुरक्षित नहीं है।"
पृष्ठभूमि
उल्लेखनीय है कि 9 मई को हजरतगंज पुलिस थाने में लल्लू और प्रियंका गांधी वाड्रा के निजी सचिव संदीप सिंह के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई थी, जिनमें प्रवासी श्रमिकों को घर भेजने के लिए भेजी गई बसों की सूची में गलत जानकारी देने का आरोप लगाय गया था।
यह आरोप लगाया गया है कि प्रवासी मजदूरों को ऑटो-रिक्शा, एम्बुलेंस, ट्रक आदि से घर भेजा गया, जिनका सूची में कोई उल्लेख नहीं है। पार्टी की ओर से भेजी गई कई बसों के पास अपेक्षित फिटनेस प्रमाणपत्र या/ और वैध बीमा भी नहीं था।
एफआईआर में आरोप लगाया गया था कि कांग्रेस नेताओं ने केंद्रीय गृह मंत्रालय की ओर से जारी दिशा-निर्देशों का व्यापक उल्लंघन किया था।
कोर्ट की टिप्पणियां
अदालत ने कहा कि भले ही प्रधानमंत्री और संबंधित मुख्यमंत्रियों ने महामारी के प्रकोप को नियंत्रित करने के लिए जनता से मौद्रिक समर्थन की अपील की हो, परिवहन सेवाओं की प्रकृति की किसी अन्य सेवा के लिए कोई अपील नहीं की थी, आदि।
इस प्रकार, अदालत ने कहा, किसी भी स्वैच्छिक संगठन या एक राजनीतिक संगठन के लिए कोई अवसर नहीं था कि वह परिवहन सेवाओं या किसी अन्य सेवा की पेशकश करे, जिसकी प्रधानमंत्री या राज्य के मुख्यमंत्रियों की ओर से प्रार्थना नहीं की गई थी।
पीठ ने कहा, हालांकि, किसी भी तरह से "राजनीतिक लाभ या हानि का अनुमान लगाए" बिनापी सुशासन सुनिश्चित करना कार्यकारी और विपक्ष का संयुक्त कर्तव्य होता है।
"यह इस अदालत का जिम्मेदारी नहीं है कि वह यह परीक्षण करे की सरकार के विवेक में ऐसा निर्णय अच्छा था या बुरा, लेकिन यह परेशान करने वाला है कि उत्तर प्रदेश राज्य में ..सरकार और एक राजनीतिक पार्टी एक मुद्दे पर एक दूसरे के आमने सामने हैं, जिसका कोई कानूनी आधार नहीं है।
… आचरण नियम सार्वजनिक कर्तव्यों का निर्वहन करते हुए कार्यकारी और उसके लोक सेवकों को किसी भी राजनीतिक दल या संघ के साथ जुड़ने से रोकते हैं। यह कार्यकारी का कर्तव्य है कि वह सुशासन सुनिश्चित करे और इसी तरह यह विपक्षी राजनीतिक दलों का कर्तव्य है कि शासन को जवाबदेह बनाएं।"
अदालत ने कहा कि जिन सेवाओं को, सरकार के बजाय सीधे पीड़ितों तक पहुंचना चाहिए था, जिसके लिए कोई अपील नहीं थी और उक्त घटना के तहत सेवा में कोई भी दोष कानून की निर्धारित प्रक्रिया के अनुसार देखा जाना था।
जस्टिस मसूदी ने कहा, "न्याय वितरण प्रणाली की यह भूमिका नहीं है कि यह सरकार की नीतिगत फैसलों की सराहना करे या किसी आलोचना को गति दे, जिन्हें विपक्षी राजनीतिक आंदोलन बड़े पैमाने पर जनता से जुड़े किसी मामले में उचित मानता है।"
उन्होंने कहा कि न्यायपालिका, संप्रभु राज्य के एक अंग के रूप में, "तटस्थ मध्यस्थ" के रूप में कार्य करती है।
आवेदक का प्रतिनिधित्व वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने किया, सतेंद्र कुमार सिंह ने उनकी सहायता की, और राज्य की ओर से अनुराग वर्मा, एजीए, पेश हुए।
पिछले हफ्ते हाईकोर्ट ने संदीप सिंह की अग्रिम जमानत अर्जी पर यूपी सरकार से जवाब मांगा था। कोर्ट ने केस डायरी भी तलब की थी और मामले की सुनवाई 17 जून को तय की थी।
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