इलाहाबाद हाईकोर्ट ने भाजपा, कांग्रेस को 'राष्ट्रीय दल' का दर्जा देने, चुनाव चिन्ह आवंटित करने के चुनाव आयोग के आदेश के खिलाफ जनहित याचिका खारिज की
LiveLaw News Network
7 Jan 2022 3:41 PM IST
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गुरुवार को एक जनहित याचिका (पीआईएल) याचिका खारिज की, जिसमें भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (आईएनसी) को भारतीय चुनाव आयोग (ईसीआई) द्वारा राष्ट्रीय दलों के रूप में मान्यता देने, चुनाव चिन्ह आवंटित करने के आदेश को रद्द करने की मांग की गई थी।
न्यायमूर्ति देवेंद्र कुमार उपाध्याय और न्यायमूर्ति सरोज यादव की खंडपीठ याचिकाकर्ता शेषमणि नाथ त्रिपाठी (समाजवादी पार्टी के नेता) द्वारा दायर एक जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें ईसीआई के 1989 के आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसमें भाजपा और कांग्रेस को राष्ट्रीय पार्टी के रूप में मान्यता दी गई थी और भाजपा को पार्टी चिन्ह के रूप में 'कमल' और कांग्रेस "हाथ" आरक्षित किया गया था।
याचिकाकर्ता का प्राथमिक तर्क था कि 19 सितंबर, 1989 और 23 सितंबर, 1989 के पंजीकरण पत्र (राजनीतिक दलों, अर्थात् भाजपा और कांग्रेस के) को चुनाव आयोग द्वारा अधिनियम की धारा 29ए के तहत अपनी शक्ति का प्रयोग करते हुए जारी किया गया था।
यह तर्क दिया गया कि उक्त प्रावधान ईसीआई को एक राजनीतिक दल को राष्ट्रीय पार्टी घोषित करने या अपने चुनाव चिह्न को सुरक्षित रखने का अधिकार नहीं देता है, इसलिए पंजीकरण के उक्त पत्र कानून के तहत सही नहीं है।
जनहित याचिका में कहा गया है कि अधिनियम की धारा 29-ए अपने दायरे में किसी राजनीतिक दल को राष्ट्रीय पार्टी या राज्य पार्टी के रूप में मान्यता देने या ऐसे राजनीतिक दल के लिए चुनाव चिह्न आरक्षित करने की शक्तियों को शामिल नहीं करती है।
कोर्ट की टिप्पणियां
अदालत ने शुरू में देखा कि याचिका "जनहित" में दायर की गई है। हालांकि, रिकॉर्ड पर उपलब्ध दलीलों से यह बहुत अच्छी तरह से अनुमान लगाया जा सकता है कि याचिकाकर्ता ने एक व्यक्तिगत कारण को भी समर्थन देने का प्रयास किया है क्योंकि वह एक राजनीतिक दल, समाजवादी पार्टी से संबंधित है।
अदालत ने कहा,
"इस प्रकार समाजवादी पार्टी की ओर से इस रिट याचिका हस्तक्षेप करने का भी प्रयास किया गया है।"
कोर्ट ने आगे कहा कि रिट याचिका भी आवश्यक पार्टियों के गैर-संयुक्त से पीड़ित है, जैसे कि रिट याचिका में यह प्रार्थना की गई है कि ईसीआई के आदेश को रद्द किया जाए।
कोर्ट ने कहा कि राजनीतिक दल, जो इस याचिका में की गई प्रार्थना के स्वीकृत होने की स्थिति में प्रभावित होने की संभावना है, उन्हें प्रतिवादी के रूप में पक्षकार नहीं बनाया गया है।
कोर्ट ने याचिकाकर्ता के प्राथमिक तर्क के संबंध में चुनाव आयोग की शक्तियों को चुनौती पर कहा कि धारा 29A या अधिनियम, 1951 के भाग IVA में निहित कोई अन्य प्रावधान चुनाव आयोग को किसी राजनीतिक दल को मान्यता देने या चुनाव चिन्ह सुरक्षित रखने का अधिकार नहीं देता है।
कोर्ट ने इस बात को रेखांकित किया कि जहां तक राजनीतिक दलों को राष्ट्रीय पार्टी या राज्य पार्टी के रूप में मान्यता देने का संबंध है, आवंटन आदेश, 1968 में चुनाव आयोग को ऐसा करने का अधिकार देने वाले प्रावधान शामिल हैं।
पीठ ने याचिका को गलत मानते हुए कहा,
"जब हम 19 सितंबर, 1989 और 23 सितंबर, 1989 के पंजीकरण पत्रों के विवादित पैराग्राफ 3 की जांच करते हैं, तो हम पाते हैं कि यह अधिनियम की धारा 29 ए के लिए नहीं बल्कि दूसरे संशोधन में निहित प्रावधानों के कारण अस्तित्व में है। आदेश, 1989 चुनाव आयोग द्वारा 11.08.1989 को जारी किया गया। ऐसा प्रतीत होता है कि उक्त पैराग्राफ 3 को याचिकाकर्ता द्वारा समझा गया है जैसे कि इसे चुनाव आयोग द्वारा धारा 29 ए में निहित अपनी शक्ति का प्रयोग करते हुए जारी किया गया है। द्वितीय संशोधन आदेश, 1989 के प्रावधानों को याचिकाकर्ता द्वारा पूरी तरह से अनदेखा कर दिया गया है।"
इसके अलावा, याचिकाकर्ता के तर्क के संबंध में कि अधिनियम द्वारा कवर किए गए क्षेत्र में भारत के चुनाव आयोग में निहित किसी भी वैधानिक शक्तियों के अभाव में एक राजनीतिक दल को मान्यता देने और चुनाव चिन्ह को सुरक्षित रखने की शक्ति का प्रयोग नहीं किया जा सकता है, कोर्ट ने निष्कर्ष निकाला,
"एक राजनीतिक दल को राष्ट्रीय पार्टी या राज्य पार्टी के रूप में मान्यता और चुनाव चिन्ह आरक्षित करना ऐसे कार्य हैं जो चुनाव आयोग द्वारा चुनाव चिह्न (आरक्षण और आवंटन) आदेश, 1968 के प्रावधानों के तहत किए जाते हैं, जैसा कि समय-समय पर संशोधित किया जाता है।"
अंत में, यह मानते हुए कि याचिकाकर्ता का तर्क है कि चुनाव आयोग के पास किसी राजनीतिक दल को मान्यता देने या चुनाव चिन्ह आरक्षित करने का कोई अधिकार नहीं है, अदालत ने जनहित याचिका खारिज की।
केस का शीर्षक - शेषमनी नाथ त्रिपाठी बनाम मुख्य चुनाव आयुक्त के माध्यम से ई.सी.आई., नई दिल्ली एंड अन्य
केस उद्धरण: 2022 लाइव लॉ (एबी) 3
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