बाबरी विध्वंस मामला : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने लालकृष्ण आडवाणी और अन्य को बरी करने के लखनऊ कोर्ट के आदेश के खिलाफ अपील खारिज की

Sharafat

9 Nov 2022 9:47 AM GMT

  • बाबरी विध्वंस मामला : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने लालकृष्ण आडवाणी और अन्य को बरी करने के लखनऊ कोर्ट के आदेश के खिलाफ अपील खारिज की

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने लखनऊ में विशेष सीबीआई अदालत के आदेश के खिलाफ दायर एक आपराधिक अपील को खारिज कर दिया, जिसमें सभी 32 व्यक्तियों (प्रमुख भाजपा नेताओं लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती, कल्याण सिंह, आदि सहित) को 6 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद विध्वंस के पीछे की साजिश के आरोपों में बरी कर दिया था।

    जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस सरोज यादव की पीठ ने 31 अक्टूबर को फैसला सुरक्षित रखने के बाद अपील खारिज कर दी। अदालत के विस्तृत फैसले का इंतजार है।

    विशेष सीबीआई न्यायाधीश एस के यादव (30 सितंबर, 2020 को दिया गया) के फैसले को चुनौती देते हुए याचिका दायर की गई थी। इस फैसले में कहा गया था कि मस्जिद को गिराने की योजना नहीं बनाई गई थी और इसके पीछे कोई आपराधिक साजिश नहीं थी।

    संक्षेप में मामला

    यह याचिका अयोध्या के दो निवासियों - हाजी महमूद अहमद और सैयद अखलाक अहमद की ओर से दायर की गई थी, जिन्होंने दावा किया था कि वे 6 दिसंबर, 1992 की घटना के गवाह हैं। उन्होंने याचिका में यह भी दावा किया कि वे इस घटना के शिकार हैं।

    याचिका मूल रूप से 2021 में एक आपराधिक पुनरीक्षण याचिका के रूप में दायर की गई थी। उल्लेखनीय है कि 18 जुलाई को जब एकल न्यायाधीश के समक्ष पुनर्विचार याचिका दायर की गई। सीनियर वकील सैयद फरमान अली नकवी ने प्रस्तुत किया कि अनजानी गलती से याचिकाकर्ताओं द्वारा पुनर्विचार याचिका दायर की गई, जो सीआरपीसी की धारा 372 में किए गए संशोधन को देखते हुए पीड़ित होने का दावा करते हैं। प्रभावी कार्य दिवस 31 दिसंबर 2009, याचिकाकर्ताओं की अपील को प्राथमिकता देनी चाहिए थी।

    उनका आगे यह निवेदन था कि सीआरपीसी की धारा 401(5) के तहत शक्तियों का प्रयोग करते हुए यह अदालत इस याचिका को याचिकाकर्ताओं की अपील के रूप में मान सकती है।

    यह उनका आगे निवेदन था कि धारा 401(5) सीआरपीसी के तहत शक्तियों का प्रयोग करते हुए यह अदालत पुनरीक्षण याचिका को याचिकाकर्ताओं की अपील के रूप में मान सकती है।

    कोर्ट ने उक्त प्रस्तुतीकरण पर विचार करते हुए और सीबीआई के वकील शिव पी.शुक्ल और प्रतिवादी-राज्य के वकील विमल कुमार श्रीवास्तव को सुनने के बाद याचिका को सीआरपीसी की धारा 372 के तहत अपील के रूप में माना जाने का निर्देश दिया।

    कथित पीड़ितों की दलीलें

    अपीलकर्ता संख्या 2 (सैयद अखलाक अहमद) ने विशेष रूप से तर्क दिया था कि वह न केवल उक्त घटना का गवाह है, बल्कि पीड़ित भी है क्योंकि घटना के दौरान उसका घर और घरेलू सामान जल गया था।

    आगे कहा गया कि,

    "अपीलकर्ताओं को न केवल अपने ऐतिहासिक पूजा स्थल को बाबरी मस्जिद को खोना पड़ा, बल्कि उनके घरों को नष्ट करने के कारण भी भारी वित्तीय नुकसान हुआ है। उनके घरों को भी नष्ट कर दिया गया था। आग लगा दी गई थी और उनके घरों की आगजनी और लूट के कारण उनके घरों का अधिकांश सामान भी नष्ट हो गया था।"

    पीड़ितों द्वारा यह भी तर्क दिया गया कि सीबीआई ने मामले की जांच की थी क्योंकि यह आपराधिक मामले की एक प्रमुख जांच एजेंसी है। हालांकि, मामले में आरोपी व्यक्तियों के बरी होने का विरोध करते हैं।

    आगे प्रस्तुत किया,

    "एजेंसी ने आरोपी व्यक्तियों की ओर से बचाव की भूमिका निभाई है और पीड़ितों को न तो राज्य और न ही पुलिस और न ही सीबीआई से मदद मिली।"

    आदेश पढ़ने/डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें

    Next Story