इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सोशल मीडिया पर भगवान हनुमान की अपमानजनक तस्वीर पोस्ट करने के आरोपी को राहत देने से इनकार किया

Sharafat

19 Jun 2023 11:21 AM IST

  • इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सोशल मीडिया पर भगवान हनुमान की अपमानजनक तस्वीर पोस्ट करने के आरोपी को राहत देने से इनकार किया

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में सोशल मीडिया पर एक बहुत ही आपत्तिजनक टैगलाइन के साथ भगवान हनुमान की एक बहुत ही आपत्तिजनक और अपमानजनक तस्वीर पोस्ट करने के आरोपी राजेश कुमार के खिलाफ एक आपराधिक मामले को खारिज करने से इनकार कर दिया ।

    जस्टिस प्रशांत कुमार की पीठ ने एफआईआर में आरोपों को 'चौंकाने वाला' करार देते हुए कहा कि हाईकोर्ट सबूतों की सराहना नहीं कर सकता और न ही सीआरपीसी की धारा 482 के तहत दायर चार्जशीट को चुनौती देने वाले आवेदन से निपटने के दौरान एफआईआर की सामग्री और भरोसा की गई सामग्री से अपना निष्कर्ष निकाल सकता है। [ कप्तान सिंह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एलएल 2021 एससी 379 का संदर्भ ]।

    अदालत ने कहा,

    " यह अच्छी तरह से स्थापित है कि संज्ञान लेने के स्तर पर न्यायालय को मामले के गुण-दोष में नहीं पड़ना चाहिए। इस स्तर पर न्यायालय की शक्ति इस हद तक सीमित है कि वह यह पता लगा सके कि उसके समक्ष रखी गई सामग्री से अभियुक्त के खिलाफ जिस अपराध का आरोप लगाया गया वह मामले को आगे बढ़ाने की दृष्टि से उसके खिलाफ बनता है या नहीं।... यदि तथ्य का कोई विवादित प्रश्न है तो उसे निचली अदालत द्वारा देखा जाना चाहिए और हाईकोर्ट को सीआरपीसी की धारा 482 के तहत आवेदन मामले से निपटने के दौरान नहीं देखना चाहिए।”

    इस संबंध में अदालत ने अमानुल्लाह और अन्य बनाम बिहार राज्य और अन्य (2016) 6 एससीसी 699 में रिपोर्ट किए गए मामले में शीर्ष अदालत के फैसले को ध्यान में रखा , जिसमें यह माना गया था कि एक बार एक मजिस्ट्रेट, सबूतों का अवलोकन करने के बाद रिकॉर्ड पर इस निष्कर्ष पर पहुंचता है कि प्रथम दृष्टया मामला बनता है और संज्ञान लेता है तो हाईकोर्ट को सीआरपीसी की धारा 482 के तहत दी गई निहित शक्ति का उपयोग नहीं करना चाहिए, जब तक कि आदेश पूर्व-दृष्टया अवैध न हो।

    न्यायालय ने निष्कर्ष निकाला कि वर्तमान मामला सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित दिशानिर्देशों के अंतर्गत नहीं आता है।

    न्यायालय ने आगे कहा कि सीआरपीसी की धारा 482 के तहत हाईकोर्ट को प्रदत्त अधिकार क्षेत्र का उपयोग करने की सीमा अच्छी तरह से परिभाषित है और कल्पना की किसी भी सीमा तक यह नहीं कहा जा सकता है कि वर्तमान आवेदन अपेक्षित आवश्यकता को पूरा करता है, इसलिए अदालत ने वर्तमान आवेदन में हस्तक्षेप करने और विचार करने से इनकार कर दिया।

    उलीखनीय है कि मौजूदा मामले के अभियुक्तों ने दिनांकित चार्जशीट और सम्मन आदेश के साथ-साथ आईपीसी की धारा 505 (2)/295 (ए) और आईटी अधिनियम की धारा 67 के तहत आपराधिक मामले की पूरी कार्यवाही को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट का रुख किया था।

    जांच के बाद मामले में आरोप पत्र दायर किया गया और अदालत ने रिकॉर्ड पर उपलब्ध सामग्री का अवलोकन करने के बाद संज्ञान लिया और निष्कर्ष निकाला कि आरोपी आवेदक के खिलाफ प्रथम दृष्टया मामला बनता है।

    अपीयरेंस

    आवेदक के वकील: जुनैद आलम, मोहम्मद हामिद

    विरोधी पक्ष के वकील: आगा एके सैंड

    केस टाइटल - राजेश कुमार बनाम यूपी राज्य और अन्य [आवेदन U/S 482 No. - 21056/2023]

    केस साइटेशन: 2023 लाइवलॉ (एबी) 196

    आदेश पढ़ने/डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें



    Next Story