'प्रथम दृष्टया मामला बनाता है': इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कथित रूप से निर्दोष व्यक्तियों को झूठे रेप केस में फंसाने के मामले में 'नफीसा गैंग' की 5 महिलाओं को राहत देने से इनकार किया

Brij Nandan

18 Jan 2023 10:04 AM GMT

  • प्रथम दृष्टया मामला बनाता है: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कथित रूप से निर्दोष व्यक्तियों को झूठे रेप केस में फंसाने के मामले में नफीसा गैंग की 5 महिलाओं को राहत देने से इनकार किया

    Allahabad High Court

    इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) ने कथित रूप से निर्दोष व्यक्तियों को झूठे रेप केस में फंसाने के मामले में 'नफीसा गैंग' की 5 महिलाओं को राहत देने से इनकार किया।

    कोर्ट ने इन महिलाओं के खिलाफ दर्ज एफआईआर रद्द करने और गिरफ्तारी पर रोक लगाने से इनकार कर दिया।

    इन महिलाओं पर आरोप है कि कथित रूप से पैसे निकालने के उद्देश्य से निर्दोष व्यक्तियों को झूठे रेप और एससी-एसटी अधिनियम के तहत केस में फंसाती हैं।

    जस्टिस अंजनी कुमार मिश्रा और जस्टिस गजेंद्र कुमार की पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ताओं के खिलाफ प्रथम दृष्टया मामला बनता है। इस पर अधिकारियों द्वारा एक विस्तृत जांच की आवश्यकता है।

    न्यायालय ने आगे कहा कि याचिकाकर्ताओं ने सीआरपीसी की धारा 482 के तहत याचिका दायर करके अग्रिम जमानत मांगने या अदालत का दरवाजा खटखटाने के उपाय को समाप्त किए बिना भारत के संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत एक रिट याचिका दायर करने का सहारा लिया था, जो उचित नहीं है।

    हालांकि, अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता अग्रिम जमानत के लिए सीआरपीसी की धारा 438 के तहत उचित आवेदन दायर करने के लिए स्वतंत्र हैं और एफआईआर रद्द करने के लिए सीआरपीसी की धारा 482 के तहत एक आवेदन दायर कर सकता है।

    क्या है पूरा मामला?

    5 महिलाओं ने आईपीसी की धारा 384, 420, 195, 506, 120-बी, 211 के तहत दर्ज एफआईआर को रद्द करने और उनकी गिरफ्तारी पर रोक लगाने के लिए आपराधिक रिट याचिका दायर की थी।

    यह उनका मामला था कि उनके खिलाफ प्राथमिकी और कुछ नहीं बल्कि याचिकाकर्ताओं द्वारा प्रतिवादी संख्या 4 और अन्य आरोपी व्यक्तियों के खिलाफ विभिन्न समयों पर दायर किए गए पिछले मामलों का प्रतिवाद है और केवल याचिकाकर्ताओं पर बढ़ते दबाव और मामले में समझौता करने की दृष्टि से है।

    दूसरी ओर, प्रतिवादियों ने तर्क दिया कि कथित 'नफीसा गैंग' पैसे निकालने के लिए बलात्कार के कई झूठे मामले दर्ज करने में शामिल है। ये गैंग सह-आरोपी, एडवोकेट माधव तिवारी द्वारा निर्देशित/संरक्षित है।

    यह भी प्रस्तुत किया गया कि निहारिका इंफ्रास्ट्रक्चर प्राइवेट लिमिटेड बनाम महाराष्ट्र राज्य और अन्य एलएल 2021 एससी 211। के मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित कानून के मद्देनजर कोई दंडात्मक कार्रवाई नहीं करने का निर्देश जारी करने की भी अनुमति नहीं है।

    बता दें, निहारिका इन्फ्रास्ट्रक्चर मामले (सुप्रा) में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि हाईकोर्ट सीआरपीसी की धारा 482 और भारत के संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत याचिका को खारिज/निस्तारित करते हुए जांच के दौरान या जब तक जांच पूरी नहीं हो जाती और/या सीआरपीसी की धारा 173 के तहत अंतिम रिपोर्ट/चार्जशीट दाखिल नहीं हो जाती, तब तक गिरफ्तारी न करने और/या "कोई सख्त कदम नहीं उठाने" का आदेश पारित नहीं करेंगे।

    गौरतलब है कि आगे यह भी कहा गया था कि याचिकाकर्ताओं ने, अग्रिम जमानत के उपाय का लाभ उठाने के लिए सक्षम न्यायालयों का दरवाजा खटखटाए बिना, सीधे भारत के संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत यह याचिका दायर की थी, और यह याचिका सुनवाई योग्य नहीं है।

    कोर्ट की टिप्पणियां

    मामले के तथ्यों को ध्यान में रखते हुए कोर्ट ने कहा कि निहारिका मामले (सुप्रा) में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के मद्देनजर, इस मामले में लंबित जांच में गिरफ्तारी नहीं करने या कोई दंडात्मक कार्रवाई नहीं करने का कोई आदेश पारित नहीं किया जा सकता है।

    कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ताओं के पास सीआरपीसी की धारा 438 के तहत अग्रिम जमानत याचिका दायर करके संबंधित अदालतों का दरवाजा खटखटाने का उपाय है और उसके बाद, सीआरपीसी की धारा 482 के तहत सहारा ले सकते हैं, जिसमें उच्च न्यायालय के पास एफआईआर को रद्द करने की शक्ति निहित है। लेकिन वर्तमान मामले में सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन किए बिना, भारत के संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत तत्काल याचिका दायर की गई है, जिसमें याचिकाकर्ताओं की गिरफ्तारी पर रोक लगाने की मांग की गई है। याचिकाकर्ताओं को अनावश्यक रूप से परेशान किया जा रहा है। हालांकि, तथ्य यह है कि याचिकाकर्ताओं के खिलाफ दर्ज की गई प्राथमिकी का केवल अवलोकन करने से प्रथम दृष्टया एक संज्ञेय मामला बनता है जिसके लिए मामले में जांच की आवश्यकता है।

    कोर्ट ने कहा कि जब स्पष्ट रूप से संज्ञेय अपराध का मामला बनता है, तो ऐसा कोई व्यापक आदेश पारित नहीं किया जा सकता है।

    कोर्ट ने यह भी कहा कि अधिकारियों को मामले की जांच पूरी करने की आवश्यकता है और आरोपी चाहे तो मामले में अग्रिम जमानत के संबंध में आपराधिक कानून के प्रावधानों के तहत सीआरपीसी की धारा 438 का सहारा ले सकता है।

    इसके साथ ही कोर्ट ने याचिका खारिज कर दी गई।

    याचिकाकर्ता के वकील: अजातशत्रु पांडेय

    प्रतिवादी के वकील: जीए, कमलेश कुमार तिवारी, मनोज कुमार श्रीवास्तव

    केस टाइटल - नफीसा और 4 अन्य बनाम यूपी राज्य और 3 अन्य [आपराधिक विविध रिट याचिका संख्या-14344/2022]

    केस साइटेशन- 2023 लाइव लॉ (एबी) 24

    आदेश पढ़ने/डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें:





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