भविष्य निधि निवेश घोटालाः इलाहाबाद हाईकोर्ट ने रद्द की UPPCL के निदेशक की जमानत याचिका
LiveLaw News Network
9 April 2020 8:54 AM IST
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने प्रॉविडेंट फंड इन्वेस्टमेंट स्कैम के मामले में उत्तर प्रदेश पावर कॉरपोरेशन लिमिटेड (UPPCL) के निदेशक (वित्त) की जमानत याचिका खारिज कर दी है। जस्टिस दिनेश कुमार सिंह ने कहा है कि घोटाला एक गहरी साजिश हो सकता है। उल्लेखनीय है कि इस घोटाले में प्रॉविडेंट फंड की 2,000 करोड़ रुपए से अधिक की धनराशि की लॉन्डरिंग की गई है।
पृष्ठभूमि
रिकॉर्ड पर उपलब्ध तथ्यों के अनुसार, UPPCL के निदेशक (वित्त) सुधांशु द्विवेदी प्रॉविडेंट फंड की राशि के निवेश के लिए जिम्मेदार थे। आरोप है कि सरकारी अधिसूचना के विपरित, द्विवेदी ने घोटाले की शिकार दीवान हाउसिंग फाइनेंस कॉर्पोरेशन लिमिटेड (डीएचएफएल) के टर्म डिपॉजिट में 50% से अधिक राशि का निवेश किया।
2 मार्च, 2015 को वित्त मंत्रालय ने एक अधिसूचना जारी की थी, जिसमें कहा गया था कि प्रॉविडेंट फंड के पैसे को शेड्यूल्ड/अनशेड्यूल्ड कॉमर्शियल बैंकों के अलावा किसी भी संस्थान में निवेश नहीं किया जाना चाहिए। मौजूदा मामले में, आरोप लगाया गया है कि द्विवेदी ने गलत इरादों से डीएचएफएल के टर्म डिपॉजिट में 50% से अधिक राशि का निवेश किया, जबकि वह यह अच्छी तरह से जानते थे कि यह अनशेड्यूल्ड कॉमर्शियल बैंकों की श्रेणी में नहीं आता है और यह एक असुरक्षित निजी संस्थान था।
आगे यह आरोप लगाया गया है कि एक निजी संस्थान में इतनी बड़ी राशि का निवेश करने का निर्णय एमडी/अध्यक्ष की सिफारिश/संज्ञान के बिना लिया गया था, और प्रॉविडेंट फंड के ट्रस्टी बोर्ड की बैठक के जाली मिनट तैयार किए गए, ताकि यह दिखाया जा सके बोर्ड 2 मार्च 2015 के सरकारी अधिसूचना के अनुसार राष्ट्रीयकृत बैंकों में डिपॉजिट की अपेक्षा, एएए-रेटेड कंपनियों में उच्च सुरक्षा और उच्च-ब्याज दरों की प्रतिभूतियों में निवेश प्रस्तावों पर विचार करने पर सहमत था।
इस प्रकार आरोप यह है कि अभियुक्त ने व्यक्तिगत लाभ के लिए और कानून के संबंधित प्रावधानों का उल्लंघन करते हुए, गलत इरादों से आपराधिक साजिश की, घोटाले में लिप्त रही डीएचएफएल में प्रॉविडेंट फंड की एक बड़ी राशि का निवेश किया और इस फैसले से भारी नुकसान हुआ है।
जांच के नतीजे
हाईकोर्ट ने कहा कि द्विवेदी वह व्यक्ति थे, जिन्होंने डीएचएफएल में निवेश की सिफारिश की थी; ट्रस्टी बोर्ड की अनुज्ञा के बिना निवेश किए गए थे। निवेश का औचित्य साबित करने के लिए बैठक के जाली मिनट तैयार किए गए थे, जिस पर अध्यक्ष के हस्ताक्षर जाली थे।
आरोपी को निवेश के एवज में डीएचएफएल ने ब्रोकरेज एमाउंट दिया, आरोपी ने जिसका ठीक से हिसाब नहीं दिया था।
हाईकोर्ट ने मामले में सह-अभियुक्त एक और ट्रस्टी की गई जमानत याचिका को भी खारिज कर दिया।
अपने बचाव में, द्विवेदी ने तर्क दिया कि एएए-रेटेड हाउसिंग फाइनेंस कंपनियों में निवेश करना ट्रस्टी बोर्ड का एक संयुक्त निर्णय था, क्योंकि नोटबंदी के बाद बैंकों के टर्म डिपॉजिट से मुनाफे नहीं हो रहे थे। उनकी भूमिका केवल डीएचएफएल की वित्तीय हालता और व्यवहार्यता के बारे में सिफारिश करने भर थी।
उन्होंने यह भी तर्क दिया कि 2 मार्च, 2015 की भारत सरकार की अधिसूचना यूपीपीसीएल के ट्रस्टों पर लागू नहीं होती, क्योंकि वे ईपीएफओ के साथ पंजीकृत नहीं हैं, जो भविष्य निधि को नियंत्रित करता है।
बॉम्बे हाईकोर्ट ने रिलायंस निप्पॉन एसेट मैनेजमेंट लिमिटेड के साथ लंबित विवाद के मद्देनजर डीएचएफएल को उसके किसी भी अन्य लेनदार को भुगतान करने से रोक दिया है।
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