इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 'फर्जी' मुठभेड़ में 10 सिखों को 'आतंकवादी' मानकर उनकी हत्या करने के आरोपी 34 पुलिसकर्मियों को जमानत देने से इनकार किया

Sharafat

25 May 2022 5:01 PM GMT

  • इलाहाबाद हाईकोर्ट ने फर्जी मुठभेड़ में 10 सिखों को आतंकवादी मानकर उनकी हत्या करने के आरोपी 34 पुलिसकर्मियों को जमानत देने से इनकार किया

    इलाहाबाद हाईकोर्ट (लखनऊ पीठ) ने पिछले हफ्ते प्रादेशिक सशस्त्र कांस्टेबुलरी (पीएसी) में 34 पुलिसकर्मियों को जमानत देने से इनकार कर दिया, जिन पर वर्ष 1991 में एक कथित फर्जी मुठभेड़ में आतंकवादी मानकर 10 सिखों की हत्या करने का आरोप लगाया गया है।

    जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस बृज राज सिंह की खंडपीठ ने कहा कि आरोपी पुलिसकर्मी निर्दोष व्यक्तियों को आतंकवादी कहकर उनकी बर्बर और अमानवीय हत्या में शामिल रहे।

    अदालत ने अंतिम सुनवाई के लिए पुलिसकर्मियों की दोषसिद्धि को चुनौती देने वाले अभियुक्तों की आपराधिक अपील को 25 जुलाई, 2022 को सूचीबद्ध करते हुए कहा,

    " यदि कुछ मृतक असामाजिक गतिविधियों में शामिल थे और उनके खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज थे तो कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया का भी पालन किया जाना चाहिए था। उन्हें अपना काम करना चाहिए था और आतंकवादियों के नाम पर निर्दोष व्यक्तियों की इस तरह बर्बर और अमानवीय हत्या में लिप्त नहीं होना था।"

    संक्षेप में मामला

    अभियोजन मामले के अनुसार, 12 जुलाई 1991 को उत्तर प्रदेश पुलिस की एक टीम द्वारा जिला पीलीभीत (अपीलकर्ता) की एक टीम द्वारा पीलीभीत के पास यात्रियों/तीर्थयात्रियों से भरी एक बस को सुबह करीब 09-10 बजे रोका गया।

    उन्होंने तीर्थयात्रियों की बस से 10-11 सिख युवकों को उतारा और उन्हें उनकी नीली रंग की बस (पुलिस बस) में बिठाया और कुछ पुलिसकर्मी शेष यात्रियों / तीर्थयात्रियों (PW11, PW13, बच्चों, महिलाओं और बूढ़े) के साथ बस में बैठ गए।

    इसके बाद शेष यात्री/तीर्थयात्री पुलिस कर्मियों के साथ दिन भर तीर्थयात्रियों की बस में इधर-उधर घूमते रहे और उसके बाद रात में पुलिसकर्मी बस को पीलीभीत के एक गुरुद्वारे में छोड़ गए। जबकि 10 सिख युवक, जिन्हें तीर्थयात्रियों की बस से वहां से उतारा था, पुलिसकर्मियों (अपीलकर्ताओं) द्वारा उन्हें तीन भागों में विभाजित करके आतंकवादी के रूप में दिखाते हुए मार डाला गया। पुलिसकर्मियों पर 10 युवकों की हत्या के आरोप में तीन अलग-अलग एफआईआर दर्ज की गई।

    इन युवकों में ग्यारहवां बच्चा था, जिसके ठिकाने का पता नहीं चला और उसके माता-पिता को राज्य द्वारा मुआवजा दिया गया।

    घटना की जांच जिला पीलीभीत की स्थानीय पुलिस द्वारा की गई और स्थानीय पुलिस द्वारा एक क्लोजर रिपोर्ट दर्ज की गई। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने तथाकथित मुठभेड़ से जुड़ी घटनाओं की जांच सीबीआई को सौंप दी।

    विशेष न्यायाधीश, सीबीआई/अतिरिक्त जिला न्यायाधीश, लखनऊ की अदालत में सुनवाई हुई और 4 अप्रैल, 2016 के अपने फैसले और आदेश के तहत, कुल 47 व्यक्तियों को आईपीसी की धारा 120-बी, 302, 364, 365, 218, 117 के तहत दोषी ठहराया गया।

    उपरोक्त दोषसिद्धि और सजा से व्यथित होकर सभी 47 दोषियों/अपीलकर्ताओं ने हाईकोर्ट का रुख किया। इन 47 दोषियों में से 12 दोषियों/अपीलकर्ताओं को या तो उम्र या गंभीर बीमारी के आधार पर हाईकोर्ट की को-ऑर्डिनेट बेंच ने जमानत दे दी थी। अब कोर्ट को 35 लोगों की जमानत याचिकाओं पर सुनवाई करनी थी।

    उनका तर्क था कि मृतकों में से 4 आतंकवादी संगठनों, अर्थात खालिस्तान लिबरेशन आर्मी के थे। एक विजेलेंस रिपोर्ट थी कि खालिस्तान लिबरेशन फ्रंट के कट्टर आतंकवादी पीलीभीत और आसपास के क्षेत्र में मौजूद हैं और वे हत्या, लूट, जैसे जघन्य अपराध कर रहे हैं।

    हाईकोर्ट की टिप्पणियां

    रिकॉर्ड पर मौजूद सबूतों और दोनों पक्षों की दलीलों का विश्लेषण करने के बाद कोर्ट ने पाया कि यह मृतकों की जघन्य हत्या का मामला था, जिनका कोई आपराधिक इतिहास नहीं था और न ही कुछ मृतकों की कोई आपराधिक पृष्ठभूमि थी।

    कोर्ट ने कहा कि सभी मृतकों को उनकी पत्नियों और उनके बच्चों से अलग करके, जो बस में तीर्थ यात्रा पर जा रहे थे और उन्हें ले जाकर सभी मृतकों के साथ आतंकवादी के रूप में व्यवहार करना आरोपी व्यक्तियों की ओर से उचित नहीं था। एक अन्य बस में उन्हें ले गए और उन्हें पीलीभीत जिले के तीन अलग-अलग स्थानों पर फर्जी मुठभेड़ में मार गिराया।

    कोर्ट ने कहा,

    " मामले के तथ्यों और परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए और अपराध की गंभीरता को देखते हुए अभियोजन पक्ष के गवाहों के बयान, दो चश्मदीद गवाहों PW11 और PW13 की उपस्थिति, जिन्होंने अभियोजन मामले का समर्थन किया, चिकित्सा साक्ष्य अभियोजन मामले की पुष्टि करते हैं।

    मृत व्यक्तियों के शवों पर पाए गए रगड़ और कटे हुए घावों के निशान की व्याख्या, नीले रंग की बस पर गोली के निशान का स्पष्टीकरण नहीं, जिसके द्वारा चश्मदीदों PW11 और PW13 ने 10 युवा सिखों को लाने की बात कही थी। पुलिस कर्मियों/अपीलकर्ताओं द्वारा घटना की तारीख को अपीलकर्ताओं द्वारा तीर्थयात्रियों की बस से आतंकवादियों की यात्रा के संबंध में एकत्रित इनपुट के स्रोत की व्याख्या न कर पाना। यह सब देखते हुए यह न्यायालय अपीलकर्ताओं को जमानत देने के लिए उपयुक्त मामला नहीं पाता है।"

    नतीजतन अदालत ने 34 पुलिस को जमानत देने से इनकार कर दिया और स्पष्ट किया कि उसके द्वारा की गई टिप्पणियों को केवल जमानत देने के सवाल पर फैसला करना था और यह मामले की योग्यता पर किसी भी राय की अभिव्यक्ति के रूप में नहीं माना जाएगा।

    केस का टाइटल - देवेंद्र पांडे और अन्य बनाम सीबीआई के माध्यम से और संबंधित अपील यूपी राज्य

    आदेश पढ़ने/डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें



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