तलाक के सभी रूप अवैध नहीं, केवल तीन तलाक अपराध: मुस्लिम पुरुष ने गिरफ्तारी पूर्व जमानत के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया

LiveLaw News Network

22 March 2022 10:10 AM IST

  • सुप्रीम कोर्ट, दिल्ली

    सुप्रीम कोर्ट

    एक मुस्लिम पुरुष ने अग्रिम जमानत के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। अपनी याचिका में उसने कहा है कि तलाक के सभी रूपों को अवैध घोष‌ित नहीं किया गया है, जिसे अपराध बनाया गया है वह "तलाक-ए-बिद्दत" (तीन तलाक) है।

    जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस बेला एम त्रिवेदी की पीठ ने झारखंड हाईकोर्ट के 17 जनवरी, 2022 के आदेश के खिलाफ दायर विशेष अनुमति याचिका पर नोटिस जारी किया है।

    हाईकोर्ट ने आक्षेपित फैसले में अग्रिम जमानत देने से इनकार कर दिया था। याचिकाकर्ता के खिलाफ मुस्लिम महिला (विवाह पर अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019 की धारा 4 के तहत एफआईआर दर्ज की गई थी।

    मुस्लिम महिला (विवाह पर अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019 की धारा 4 के अनुसार, कोई भी मुस्लिम पति, जो अपनी पत्नी पर तलाक-ए-बिद्दत (तीन तलाक) या किसी अन्य प्रकार के तात्कालिक या अपरिवर्तनीय तलाक शब्द का उच्चारण करता है, या लिखित या इलेक्ट्रॉनिक रूप में या किसी भी अन्य तरीके से कहा जाता है तो उसे पुरुष को कारावास से दंडित किया जाएगा, जिसे तीन साल तक बढ़ाया जा सकता है, और वह जुर्माने के लिए भी उत्तरदायी होगा।

    सुप्रीम कोर्ट ने नोटिस जारी करते हुए अपने आदेश में कहा,

    याचिकाकर्ता के विद्वान वकील ने कहा कि केवल तलाक-उल-बिद्दत एक अपराध है, जबकि तलाक अहसन और तलाक हसन को असंवैधानिक, अवैध या आपराधिक घोषित नहीं किया गया है। हाईकोर्ट ने आक्षेपित निर्णय/आदेश में इन पहलुओं की अनदेखी की है।

    सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा, "याचिका का जवाब 29 अप्रैल, 2022 को देना है। इसके अलावा, दस्ती की अनुमति है। इस बीच, याचिकाकर्ता के शामिल होने और जांच में सहयोग करने की शर्तों के अधीन उसे गिरफ्तार नहीं किया जाएगा। यह स्पष्ट किया जाता है कि हमने दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 या किसी अन्य कार्यवाही के तहत कार्यवाही पर रोक नहीं लगाई है।"

    उल्‍लेखनीय है कि 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने तीन तलाक (तलाक-उल-बिद्दत) की प्रथा को 3: 2 बहुमत से असंवैधानिक घोषित किया था।

    केस शीर्षक: दानिश अख्तर बनाम झारखंड राज्य और अन्य। Special Leave to Appeal (Crl.) No(s). 2063/2022

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