इलेक्ट्रिक पोल पर 'कमल' जैसे राजनीतिक दल के चिन्ह का पोस्टर चिपकाना जरूरी नहीं कि शरारत हो, जानबूझकर दंगा भड़का रहा हो: केरल हाईकोर्ट ने एफआईआर रद्द की

Shahadat

2 Oct 2023 9:04 AM GMT

  • इलेक्ट्रिक पोल पर कमल जैसे राजनीतिक दल के चिन्ह का पोस्टर चिपकाना जरूरी नहीं कि शरारत हो, जानबूझकर दंगा भड़का रहा हो: केरल हाईकोर्ट ने एफआईआर रद्द की

    केरल हाईकोर्ट ने इलेक्ट्रिक पोल पर गोंद के साथ राजनीतिक दल के चिन्ह कमल का पोस्टर चिपकाने के लिए व्यक्ति के खिलाफ शुरू की गई आपराधिक कार्यवाही रद्द कर दी। उक्त व्यक्ति पर आरोप था कि आरोपियों ने अन्नमकुलंगरा देवी मंदिर के पास हंगामा किया और बिजली बोर्ड को पोस्टर हटाने के लिए 63 रुपये खर्च करने पड़े।

    जस्टिस पीवी कुन्हिकृष्णन ने कहा कि किसी मान्यता प्राप्त राजनीतिक दल के चिन्ह वाले पोस्टर को बिजली के खंभे पर चिपकाना दुर्भावनापूर्ण या मनमाने ढंग से किया गया कार्य नहीं माना जा सकता।

    इसमें जोड़ा गया,

    "आरोपी पर एकमात्र खुला कृत्य यह है कि उसने इलेक्ट्रिक पोल पर कमल का पोस्टर चिपकाया, जो राजनीतिक दल का चिन्ह है और हंगामा किया। मेरी सुविचारित राय है कि भले ही उस कृत्य को स्वीकार कर लिया जाए कुल मिलाकर, आईपीसी की धारा 153 के तहत अपराध नहीं बनता है। बेशक, इलेक्ट्रिक पोल पर पोस्टर चिपकाना गैरकानूनी कार्य हो सकता है। लेकिन इलेक्ट्रिक पोल पर किसी मान्यता प्राप्त राजनीतिक दल के चिन्ह वाले पोस्टर को चिपकाना अवैध नहीं माना जा सकता।"

    उस व्यक्ति पर आईपीसी की धारा 153, सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान की रोकथाम अधिनियम की धारा 3 (1) और विद्युत अधिनियम, 2003 की धारा 140 के तहत मामला दर्ज किया गया, जो 'नुकसान पहुंचाने वाली शरारत' से संबंधित है।

    कोर्ट ने कहा कि इलेक्ट्रिक पोल पर किसी मान्यता प्राप्त राजनीतिक दल के प्रतीक वाला पोस्टर चिपकाना हर स्थिति में शरारत नहीं माना जा सकता।

    अदालत ने कहा,

    "अगर इस प्रकार के मामलों को आईपीसी की धारा 425 के तहत शरारत के रूप में माना जाता है तो नागरिकों द्वारा की गई शरारत का कोई अंत नहीं होगा।"

    न्यायालय ने यह भी कहा कि सभी मामलों को अदालत के समक्ष पूर्ण सुनवाई की आवश्यकता नहीं है और कई मामले ऐसे हैं, जहां पुलिस भी सामान्य ज्ञान का उपयोग करके मामले को सुलझा सकती है। इसमें कहा गया कि जब वर्तमान जैसे सार्वजनिक संपत्ति के मामले में 63 रुपये के नुकसान के लिए दर्ज किए जाते हैं तो अदालतें इस पर प्रयास करने में अपना समय बर्बाद कर रही होंगी।

    जस्टिस कुन्हिकृष्णन ने मलयालम फिल्म 'एक्शन हीरो बीजू' के लोकप्रिय संवाद का हवाला देते हुए कहा कि आम आदमी के लिए पुलिस स्टेशन ही उनका जिला न्यायालय, हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट है।

    अदालत ने कहा,

    "...कुछ स्थितियों में अंतिम रिपोर्ट प्रस्तुत करते समय पुलिस अधिकारियों द्वारा सामान्य ज्ञान का उपयोग किया जाता है। कई मामलों को पुलिस स्टेशन से ही बंद किया जा सकता है। पुलिस स्टेशन एक ऐसी जगह है, जहां आम आदमी प्रवेश कर सकता है और किसी भी समय शिकायत पर अपनी रिपोर्ट जमा कर सकता है । केरल राज्य में कई पुलिस स्टेशनों को "जन मैत्री पुलिस स्टेशन" के रूप में घोषित किया गया है। आजकल, राज्य के पुलिस स्टेशन नागरिक अनुकूल हैं। यहां तक कि कुछ पुलिस स्टेशनों में बच्चों के मनोरंजन क्षेत्र भी हैं। कई मामले मामले को अदालत में भेजे बिना पुलिस स्टेशन से ही निपटाया जा सकता है। इसीलिए मैंने कहा कि अंतिम रिपोर्ट जमा करने से पहले सामान्य ज्ञान आवश्यक है। केवल इसलिए कि पुलिस अधिकारी को कानून का ज्ञान है, सभी स्थितियों में पर्याप्त नहीं होगा.... किसी विशेष स्थिति में कार्य करने के लिए केवल शिक्षा ही पर्याप्त नहीं है। सामान्य ज्ञान भी आवश्यक है"।

    इसमें आगे कहा गया कि वर्तमान मामले को भी सत्र न्यायालय को सौंपना होगा, क्योंकि विद्युत अधिनियम की धारा 140 भी जोड़ी गई। अदालत ने प्रावधान के तहत अपराध साबित करने के लिए सबूतों के संबंध में अभियोजन पक्ष से सवाल किया।

    अदालत ने घोषणा की,

    "अभियोजन पक्ष के पास ऐसा कोई मामला नहीं है कि आरोपी ने बिजली की आपूर्ति में कटौती करने के इरादे से किसी विद्युत आपूर्ति लाइन या काम को काट दिया या घायल करने या काटने या घायल करने का प्रयास किया। ऐसी परिस्थितियों में भले ही पूरे आरोप अनुबंध में हों- 2 अंतिम रिपोर्ट पूरी तरह से स्वीकार कर ली गई है, विद्युत अधिनियम की धारा 140 के तहत अपराध लागू नहीं होता है।'

    सत्र न्यायालय में पूरी प्रक्रिया को ध्यान में रखते हुए, जो वर्तमान मामले को निपटाने के लिए होनी चाहिए, जब पहले से ही मामले लंबित हों, न्यायालय ने पुलिस अधिकारियों को आईपीसी की धारा 95 के अस्तित्व के प्रति सचेत रहने की याद दिलाई, जो 'मामलों की जांच करते समय मामूली नुकसान पहुंचाने वाले कार्य' या 'तुच्छ कार्य' का प्रवाधान करती है।

    याचिकाकर्ता आरोपी के खिलाफ कार्यवाही रद्द करते हुए अदालत ने कहा,

    "इलेक्ट्रिक पॉल पर पोस्टर चिपकाने के कारण 63/- रुपये के कथित नुकसान के लिए इस मामले में जांच अधिकारी ने आरोप पत्र दायर किया। वास्तव में अभियोजन पक्ष का मामला यह है कि एक ही इलेक्ट्रिक पॉल पर एक ही पोस्टर चिपका हुआ है। यदि ऐसा है तो 63/- रुपये के नुकसान के लिए पूरे न्यायिक सिस्टम को कई दिनों तक काम करना पड़ता है। न्यायिक अधिकारी को इस मामले को निपटाने के लिए बहुत समय खर्च करना पड़ता है। ऐसी स्थिति में पुलिस अधिकारियों को यह पता लगाना होगा कि ऐसे मामलों में आरोप पत्र दायर किया जाना चाहिए या नहीं। ऐसी स्थिति में पोस्टर चिपकाने वाले व्यक्तियों के लिए साधारण चेतावनी पर्याप्त से अधिक है।"

    याचिकाकर्ता के वकील: के.एन. अभिलाष, सुनील नायर पलक्कट, रितिक एस. आनंद, अनु पॉल, और श्रीलक्ष्मी मेनन पी. और प्रतिवादियों के वकील: लोक अभियोजक श्रीजा वी.

    केस टाइटल: रोहित कृष्णा बनाम केरल राज्य एवं अन्य।

    केस नंबर: सीआरएल.एमसी नंबर 1895/2023

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