'अधिवक्ताओं ने न्यायालयों का बहिष्कार करके आम आदमी को गलत संकेत भेजा': कर्नाटक हाईकोर्ट ने हड़ताल पर बार एसोसिएशनों से माफी मांगने को कहा

LiveLaw News Network

12 April 2021 6:30 PM IST

  • Strict Action Will Be Taken Against Advocates Who Appear Before Court Or Indulge In Physical/E-Filing

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने सोमवार को कहा कि यह बार के सदस्यों का कर्तव्य है कि वह यह सुनिश्चित करें कि अदालत का कामकाज किसी भी तरह से प्रभावित न हो। यदि उक्त कार्यप्रणाली प्रभावित होती है तो इसका परिणाम आम आदमी को भुगतना पड़ता है।

    मुख्य न्यायाधीश अभय ओका और न्यायमूर्ति सूरज गोविंदराज की खंडपीठ राज्य में बार एसोसिएशनों के पदाधिकारियों के खिलाफ शुरू की गई स्वतःसंज्ञान अवमानना की कार्यवाही पर सुनवाई कर रही थी। इन पदाधिकारियों ने अपने सदस्यों को अदालती काम से दूर करने के लिए कहा था। कोर्ट ने उन्हें माफी मांगते हुए 22 अप्रैल तक एक शपथ-पत्र बयान दर्ज करने का निर्देश दिया है। साथ ही कहा है कि यह अंडरटेकिंग दी जाए कि वे शीर्ष अदालत द्वारा निर्धारित कानून का उल्लंघन नहीं करेंगे।

    रजिस्ट्री द्वारा अदालत को सौंपी गई एक रिपोर्ट के अनुसार, जिला मांड्या बार एसोसिएशन 4 जनवरी, 2021 को अदालत के कामकाज में अनुपस्थित रही थी। मद्दुर की बार एसोसिएशन ने 4 जनवरी और 6 फरवरी को अदालत के काम में भाग न लेने का आह्वान किया था। श्रीरंगपट्टनम, मालवल्ली, कृष्णराजपेटे की बार एसोसिएशन ने भी 4 जनवरी को अदालती कामकाज में भाग नहीं लिया था। पांडवपुरा की बार एसोसिएशन 4, 15 और 30 जनवरी को अदालत के कामकाज में अनुपस्थित रही थी। दावणगेरे में बार एसोसिएशन ने 29 जनवरी और 8 फरवरी को अदालती कामकाज से दूरी बना ली थी।

    सुनवाई के दौरान पीठ ने मौखिक रूप से बार एसोसिएशन के पदाधिकारियों की तरफ से उपस्थित वकील से कहा, ''यह कोई मुकदमा नहीं है जिसमें किसी को जेल भेजा जाए। यदि कानून स्पष्ट रूप से निर्धारित किया गया है कि अधिवक्ताओं को अदालतों के बहिष्कार का सहारा नहीं लेना चाहिए तो मुश्किल हालात में आप ऐसा नहीं कर सकते हैं। हम जो चाहते हैं, वह आपसे आश्वासन है कि आप कानून का पालन करेंगे।''

    पीठ ने कहा कि,''बड़ी मुश्किलों से हम अदालतें चला रहे हैं और फिर वकील अपनी परेशानियों की गिरफ्त में आकर अदालतों का बहिष्कार कर रहे हैं। यह अनुमन्य नहीं है, आप निर्धारित कानून को देखें।''

    इसके बाद वकील ने कहा कि ''हम निश्चित रूप से कानून का पालन करेंगे।'' उन्होंने कहा कि बार एसोसिएशन के सदस्यों ने मांड्या जिले के प्रधान जिला न्यायाधीश को पत्र लिखकर सूचित किया था कि वे विरोध करना चाहते थे क्योंकि एक वकील की बेरहमी से हत्या कर दी गई थी। उनका अदालत का बहिष्कार करने का इरादा नहीं था।

    इस पर पीठ ने उल्लेख किया ''यदि किसी वकील को किसी मामले में पेश होने के कारण चोट लग जाती है तो एक अलग बात है। मूल रूप जो भी कारण हो सकता है, परंतु सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित कानून इस तरह के बहिष्कार की बिल्कुल अनुमति नहीं देता है। हम वकीलों को यहां बुलाने में खुश नहीं हैं।''

    अदालत ने तब वकील से पूछा ''यदि अधिवक्ता अदालतों का बहिष्कार करते हैं, तो कौन पीड़ित होगा, आप हमें बताएं?''

    तो वकील ने जवाब दिया कि ''अधिवक्ता और लिटिगेंट्स।''

    पीठ ने यह कहते हुए उनको स्पष्ट किया कि ''लिटिगेंट्स पीड़ित होते हैं, हम यहां लिटिगेंट्स की खातिर हैं और वह क्यों पीड़ित होने चाहिए?''

    पीठ ने यह भी कहा कि,''क्या आप समझते हैं कि आम आदमी का कितना पैसा अदालत के कामकाज में निवेश किया जाता है? किसी दिन इस विश्लेषण को करने की आवश्यकता है, एक दिन काम करने वाली अदालतों पर कितना पैसा खर्च होता है। यदि एक दिन अदालत बेकार बैठती है, तो किसका नुकसान है, अंततः यह आम आदमी का पैसा है।''

    अदालत ने आगे कहा कि,''आखिरकार हम आप पर क्या प्रभाव ड़ालना चाहते हैं (प्रतिवादियों के लिए वकील), आप देखो संख्या(कोरोना के मामले) बढ़ रही हैं, हम क्यों काम कर रहे हैं? इसका कारण है कि हम आम आदमी के लिए काम कर रहे हैं और अंततः हमें सोचना होगा आम आदमी क्या महसूस करने वाला है। जैसा कि हमें पता है, अदालत में काफी छुट्टियां होती हैं। ऐसे में शेष दिनों में भी आप अपनी समस्याओं के लिए कामकाज नहीं करेंगे तो हम आम आदमी को एक गलत संकेत भेज रहे हैं।''

    यह भी कहा गया है, ''जब तक बार के सदस्य सहयोग नहीं करेंगे, अदालतें काम नहीं कर पाएंगी और हम बड़े पैमाने पर समाज को नुकसान पहुंचा रहे हैं।''

    प्रतिवादियों के वकील ने तब कहा,''जहां तक मांड्या का संबंध है, वहां बहुत क्रांतिकारी/परिवर्तनवादी लोग हैं। उन्होंने (अधिवक्ताओं ने) कावेरी जल विरोध में भाग लिया था और कई अधिवक्ताओं के खिलाफ एफआईआर दर्ज हैं।''

    अदालत ने इसका यह कहकर जवाब दिया ''वास्तव में बार के सदस्यों ने स्वतंत्रता संग्राम में अग्रणी भूमिका निभाई थी। परंतु यह सवाल नहीं है। यदि वकील सक्रिय हैं तो अदालत के बाहर उनकी सक्रियता जारी रहनी चाहिए जो सबसे स्वागत योग्य होगा। वकील समाज में योगदान दे रहे हैं। वकील महत्वपूर्ण कानूनी और संवैधानिक मुद्दों को उठा रहे हैं .. जो कि बहुत स्वागत योग्य है। लेकिन इसका अदालत की कार्यप्रणाली पर कोई असर नहीं होना चाहिए।''

    अपने आदेश में अदालत ने कहा,''हर कोई समाज की मदद करने में बार के सदस्यों द्वारा निभाई गई सक्रिय भूमिका की सराहना करेगा, परंतु यह सुनिश्चित करना भी उनका कर्तव्य है कि अदालत का कामकाज किसी भी तरह से प्रभावित नहीं हो क्योंकि यदि उक्त कार्य प्रभावित होगा तो इससे आम आदमी ही पीड़ित होने वाला है।''

    अदालत ने महाधिवक्ता प्रभुलिंग के नवदगी द्वारा प्रस्तुत की गई उन दलीलों को भी दर्ज किया,जिनमें कहा गया था कि यदि अवमानना याचिका में प्रतिवादी बार के सदस्य खेद व्यक्त करते हैं और कानून का पालन करने के लिए सहमत होते हैं तो कार्यवाही को खत्म किया जा सकता है।

    इस प्रकार अदालत ने अपने आदेश में उल्लेख किया गया कि,'' वास्तव में 12 मार्च को दिए गए आदेश के खंड 2 में, रिकॉर्ड किया गया था कि बार एसोसिएशन के पदाधिकारियों के खिलाफ स्वतःसंज्ञान की कार्यवाही शुरू करने का उद्देश्य किसी को दंडित करना नहीं है, बल्कि यह सुनिश्चित करना है कि बार के सदस्य शीर्ष अदालत द्वारा निर्धारित कानून का सम्मान करते हुए उसे कार्यान्वित करें।''

    मामले की अगली सुनवाई 22 अप्रैल को होगी।

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