जजों के प्रस्तावित तबादलों के विरोध में बेंगलुरु एडवोकेट्स एसोसिएशन ने काम का किया बहिष्कार

Amir Ahmad

23 April 2025 6:51 AM

  • जजों के प्रस्तावित तबादलों के विरोध में बेंगलुरु एडवोकेट्स एसोसिएशन ने काम का किया बहिष्कार

    सुप्रीम कोर्ट कोलेजियम द्वारा कर्नाटक हाईकोर्ट के चार जजों के प्रस्तावित तबादलों के खिलाफ विरोध जताते हुए बेंगलुरु एडवोकेट्स एसोसिएशन (AAB) ने मंगलवार (22 अप्रैल) को हुई अपनी जनरल बॉडी मीटिंग में बुधवार (23 अप्रैल) को कार्य से दूर रहने का फैसला लिया।

    बार एसोसिएशन द्वारा जारी नोटिस में सभी वकीलों से अनुरोध किया गया कि वे 23 अप्रैल को कार्य से दूर रहें।

    नोटिस में कहा गया,

    “विरोधस्वरूप जनरल बॉडी ने निर्णय लिया कि 23-4-25 को कार्य से विरत रहा जाएगा। हाईकोर्ट के सीनियर वकील व पदाधिकारियों का प्रतिनिधिमंडल माननीय चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया और सुप्रीम कोर्ट के अन्य माननीय जजों से मिलकर इस निर्णय पर पुनर्विचार करने का अनुरोध करेगा।"

    प्रमुख मांगें:

    प्रस्तावित चार जजों के तबादले को रोकने की अपील

    सुप्रीम कोर्ट कोलेजियम से आग्रह किया जाएगा कि बाहरी राज्यों के जजों की नियुक्ति से बचा जाए, जिससे स्थानीय भाषा और कानूनों की समझ में समस्या न हो।

    कर्नाटक सरकार से अनुरोध कि वह लैंड ग्रैबिंग कोर्ट को तुरंत आवश्यक सुविधाएं व स्टाफ उपलब्ध कराए, जहां इस समय जजमेंट राइटर्स नहीं हैं और स्टाफ की भारी कमी है।

    22 अप्रैल को हाईकोर्ट गेट के बाहर AAB के सदस्यों ने विरोध प्रदर्शन भी किया था।

    हाल ही में सुप्रीम कोर्ट कोलेजियम ने देश भर के सात हाईकोर्ट जजों के तबादले की सिफारिश की थी, जिनमें से चार कर्नाटक हाईकोर्ट से हैं।

    यह कदम समावेशिता और विविधता को बढ़ावा देने और न्याय प्रशासन की गुणवत्ता मजबूत करने के उद्देश्य से लिया गया बताया गया।

    जिन कर्नाटक हाईकोर्ट जजों के तबादले की सिफारिश हुई है, वे हैं-

    1.जस्टिस हेमंत चंदनगौड़र – कर्नाटक से मद्रास हाईकोर्ट

    2. जस्टिस कृष्णन नटराजन – कर्नाटक से केरल हाईकोर्ट

    3. जस्टिस एन.एस. संजय गौड़ा – कर्नाटक से गुजरात हाईकोर्ट

    4. जस्टिस दीक्षित कृष्ण श्रीपाद – कर्नाटक से ओडिशा हाईकोर्ट

    इस प्रस्ताव का कई सीनियर वकीलों, युवा वकीलों और बार संस्थाओं ने विरोध किया।

    उन्होंने चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया को पत्र लिखकर सिफारिश पर पुनर्विचार करने की मांग की।

    आज का विरोध कर्नाटक की न्यायिक स्वतंत्रता, जजों की स्थिरता, और स्थानीय संवेदनशीलताओं को ध्यान में रखते हुए किया गया।

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