एक सिटिंग जज के समक्ष प्रतिदिन सूचीबद्ध मामलों की सीमित संख्या को चुनौती देते हुए एडवोकेट ने केरल हाईकोर्ट का रुख किया

Sharafat

1 March 2023 1:09 PM GMT

  • एक सिटिंग जज के समक्ष प्रतिदिन सूचीबद्ध मामलों की सीमित संख्या को चुनौती देते हुए एडवोकेट ने केरल हाईकोर्ट का रुख किया

    Kerala High Court

    बार काउंसिल ऑफ केरल में इनरोल एक एडवोकेट ने केरल हाईकोर्ट में चुनौती दी है कि केरल हाईकोर्ट के एक सिटिंग जज के समक्ष एक दिन में केवल 20 मामलों की सूचीबद्ध होते हैं, जबकि अन्य न्यायाधीशों के पास प्रतिदिन 100 या अधिक मामले सूचीबद्ध होते हैं।

    एडवोकेट यशवंत शेनॉय ने एक रिट याचिका दायर की है जिसमें कहा गया है कि 'चीफ जस्टिस, मास्टर ऑफ रोस्टर होने के नाते मामलों की लिस्टिंग पर रजिस्ट्री को निर्देश देने की शक्ति रखते हैं और कोई भी जज इसमें हस्तक्षेप नहीं कर सकता और रजिस्ट्री को उस सूची में कटौती करने के निर्देश दे सकते हैं।

    जस्टिस शाजी पी चाली के सामने जब यह मामला बुधवार को आया तो अदालत ने हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल (मामले में चौथे प्रतिवादी) को इस मामले में आगे बढ़ने के लिए एक वकील नियुक्त करने का निर्देश दिया।

    जस्टिस मैरी जोसेफ के समक्ष याचिकाकर्ता ने एक दिन में सीमित संख्या में मामलों को सूचीबद्ध किए जाने का मुद्दा उठाया है। याचिकाकर्ता के अनुसार, सूचीबद्ध मामलों में से कई को स्थगित कर दिया गया है और उन पर विचार नहीं किया गया है। याचिका में कहा गया है, "इसका मतलब यह है कि वकीलों और वादियों को प्रतिवादी संख्या 3 (जस्टिस मैरी जोसेफ) के समक्ष अपने मामले की 'लिस्टिंग के लिए भी अंतहीन इंतजार करना पड़ता है।

    याचिकाकर्ता ने मामलों के बैकलॉग देखते हुए कम से कम 50 मामलों को हाईकोर्ट में प्रत्येक अदालत के समक्ष सूचीबद्ध करने की मांग की है। याचिकाकर्ता ने अपनी रिट याचिका में कहा कि याचिकाकर्ताओं को त्वरित न्याय सुनिश्चित करना संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत एक मौलिक अधिकार है। याचिकाकर्ता का तर्क है कि जैसे-जैसे मामलों का बैकलॉग बढ़ेगा, लोगों का न्याय प्रणाली में विश्वास कम होने लगेगा।

    “यदि हाईकोर्ट का प्रत्येक न्यायाधीश अपने समक्ष मामलों की संख्या को 20 तक सीमित कर देता है तो संस्था अपनी प्राकृतिक मृत्यु मर जाएगी। पहले से ही मामलों के बैकलॉग ने न्यायपालिका की कमर तोड़ दी है और यदि प्रत्येक न्यायाधीश एक दिन में केवल 20 मामलों की सुनवाई करने का फैसला करता है तो संस्था ही नहीं बचेगी।

    याचिकाकर्ता का तर्क है कि किसी भी न्यायाधीश के पास रजिस्ट्री को उनके न्यायालय के समक्ष सूचीबद्ध मामलों की संख्या को कम करने का निर्देश देने की शक्ति नहीं है और मास्टर ऑफ रोस्टर के रूप में मुख्य न्यायाधीश संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन नहीं कर सकते हैं और इस तरह की कटौती की अनुमति नहीं दे सकते हैं।

    याचिका में कहा गया कि

    "याचिकाकर्ता न्यायाधीशों का सम्मान करता है और उनके कठिन जीवन से अच्छी तरह वाकिफ है, लेकिन शपथ लेने के समय वे इसके बारे में जानते थे। एक बार उत्तरदायित्व चुन लिए जाने के बाद, वे उस उत्तरदायित्व और उसके साथ आने वाले कर्तव्यों से पीछे नहीं हट सकते। याचिकाकर्ता किसी भी तरह से यह नहीं कह रहा है कि जज को हर दिन 15 घंटे काम करना पड़ता है। वास्तव में भारत में अधिकांश न्यायाधीश एक दिन में 15 घंटे से अधिक काम करते हैं और याचिकाकर्ता के मन में उनके द्वारा प्रदान की जाने वाली सेवाओं के लिए बहुत सम्मान है।

    वकीलों के रूप में हम भी दिन में 15 घंटे से अधिक काम करने के आदी हैं, लेकिन हम कभी शिकायत नहीं करते। हम धैर्यपूर्वक अपनी बारी आने का इंतजार करते हैं। हालांकि, यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि प्रतिवादी संख्या 3 की अदालत में हमारी बारी कभी नहीं आती है क्योंकि सूची को केवल 20 मामलों तक सीमित कर दिया जाता है।"

    मामले को आगे के विचार के लिए 3 फरवरी 2023 को पोस्ट किया गया है।

    केस टाइटल : यशवंत शेनॉय बनाम केरल हाईकोर्ट चीफ जस्टिस और अन्य

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