"व्यभिचार अपराध नहीं"-P&H हाईकोर्ट ने कहा-इलाहाबाद हाईकोर्ट के 'सामाजिक ताने-बाने' के फैसले से सहमत नहीं; किसी और से विवाहित लेकिन लिव-इन संबंध में रह रहे वयस्क को सुरक्षा दी

LiveLaw News Network

8 Sept 2021 11:51 AM IST

  • P&H High Court Dismisses Protection Plea Of Married Woman Residing With Another Man

    Punjab & Haryana High Court

    पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने पिछले सप्ताह कहा कि यदि दो वयस्क, भले ही वे पहले से किसी अन्य के साथ विवाहित हैं, लिव-इन रिलेशनशिप में एक दूसरे के साथ रहते हैं तो यह अपराध नहीं होगा।

    जस्टिस अमोल रतन सिंह की खंडपीठ ने उक्त टिप्पणियों के साथ यह रेखांकित किया कि जोसेफ शाइन बनाम यूनियन ऑफ इंडिया के मामले में सुप्रीम कोर्ट आईपीसी की धारा 497 (व्यभिचार के लिए सजा) को असंवैधानिक घोषित कर चुकी है।

    संक्षेप में मामला

    अदालत लिव-इन संबंधों में रह रहे एक जोड़े की सुरक्षा याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें आधिकारिक प्रतिवादियों को निर्देश देने की मांग की गई थी कि प्रतिवादी 4 (याचिकाकर्ता की पत्नी) से 6 तक के कहने पर उन्हें परेशान न किया जाए।

    याचिकाकर्ताओं के वकील ने प्रस्तुत किया कि याचिकाकर्ता 2 (पुरुष) और प्रतिवादी 4 (पत्नी) पहले से ही विवाहित हैं, हालांकि, उन्होंने तलाक की याचिका दायर की, जिसे खारिज कर दिया गया था, जिसके बाद उन्होंने हाईकोर्ट में अपील दायर की थी और वह अभी भी लंबित है।

    न्यायालय की टिप्पणियां

    पक्षों की दलीलें सुनकर और मामले की परिस्थितियों पर विचार करते हुए, न्यायालय का प्रथम दृष्टया विचार था कि याचिकाकर्ताओं द्वारा कोई अपराध नहीं किया गया है, वे वयस्क हैं और एक-दूसरे के साथ लिव-इन रिलेशनशिप में रह रहे हैं, चाहे इस अदालत के समक्ष तलाक की कोई याचिका लंबित हो या न हो।

    महत्वपूर्ण रूप से, न्यायालय ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के सामाजिक ताने-बाने के फैसले से भी असहमति व्यक्त की, जिसमें उच्च न्यायालय ने कहा था कि लिव-इन-रिलेशन इस देश के सामाजिक ताने-बाने की कीमत पर नहीं हो सकता है और तलाक प्राप्त किए बिना एक पति या पत्नी किसी अन्य व्यक्ति के साथ संबंध के लिए सुरक्षा का हकदार नहीं है।

    इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने पिछले महीने अपने साथी के साथ रहने वाली एक विवाहित महिला की सुरक्षा याचिका को 5,000 रुपए के जुर्माने के साथ खारिज कर दिया था।

    " उचित सम्मान के साथ, मैं खुद को इससे (इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले) से सहमत होने में असमर्थ पाता हूं, खासकर इस तथ्य को देखते हुए कि जोसेफ शाइन बनाम यूनियन ऑफ इंडिया में सुप्रीम कोर्ट ने IPC की धारा 497 को असंवैधानिक और अनुच्छेद 14, 15 और 21 का उल्लंघन में होने के कारण रद्द कर दिया है। (उक्त प्रावधान के तहत व्यभिचार के लिए सजा उपलब्ध थी।)"

    महत्वपूर्ण रूप से, इलाहाबाद उच्च न्यायालय के 'सामाजिक ताने-बाने' के फैसले पर भरोसा करते हुए , राजस्थान उच्च न्यायालय ने पिछले महीने एक विवाहित महिला को पुलिस सुरक्षा से वंचित कर दिया , जो किसी अन्य पुरुष के साथ लिव-इन रिलेशनशिप में थी और जिसने कुछ निजी व्यक्तियों के खिलाफ पुलिस सुरक्षा की मांग की थी, जो उसके रिश्ते से खुश नहीं थे।

    अंत में, कोर्ट ने इस मामले में पंजाब राज्य को नोटिस जारी किया और एसएसपी खन्ना को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि याचिकाकर्ताओं को प्रतिवादी संख्या 4 से 6 और एसएचओ से सुरक्षा दी जाए।

    अदालत ने कठोर टिप्पणी की, "... स्पष्ट रूप से इस अदालत द्वारा एक बहुत ही प्रतिकूल दृष्टिकोण लिया जाने वाला है, अगर याचिकाकर्ताओं को फिर से एसएचओ द्वारा लिव-इन-रिलेशनशिप के कारण परेशान किया जाता है।"

    केस का शीर्षक - परमजीत कौर और अन्य बनाम पंजाब राज्य और अन्य

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