मार्कशीट की जालसाजी के आरोप में एफआईआर में बरी होने के बाद पटना हाईकोर्ट ने अधिकारियों से बहाली के लिए पूर्व स्वास्थ्य प्रबंधक के दावे पर विचार करने के लिए कहा

Sharafat

24 April 2023 8:46 PM IST

  • मार्कशीट की जालसाजी के आरोप में एफआईआर में बरी होने के बाद पटना हाईकोर्ट ने अधिकारियों से बहाली के लिए पूर्व स्वास्थ्य प्रबंधक के दावे पर विचार करने के लिए कहा

    पटना हाईकोर्ट ने अधिकारियों को एक ऐसे कर्मचारी के मामले पर विचार करने का निर्देश दिया है, जिसे मार्कशीट में कथित तौर पर फर्जीवाड़ा करने के कारण उसकी सेवा से बर्खास्त कर दिया गया था, लेकिन बाद में संबंधित आपराधिक मामले में निचली अदालत ने उसे बरी कर दिया था।

    जस्टिस हरीश कुमार और जस्टिस आशुतोष कुमार की खंडपीठ ने कहा कि,

    "अपीलकर्ता की इंगेजमेंट को केवल एमबीए की गलत और जाली मार्कशीट पेश करके अपीलकर्ता द्वारा की गई जालसाजी के कारण समाप्त कर दिया गया था, जिसके परिणामस्वरूप एक आपराधिक मामला दर्ज किया गया था। हालांकि उक्त आरोप अंततः ट्रायल कोर्ट द्वारा सिद्ध नहीं हो पाया और इस तरह कार्रवाई का कारण अपीलकर्ता के पक्ष में उचित फोरम के समक्ष चुनौती देने के लिए उत्पन्न हुआ है, जिसे दाखिल करने में प्रतिवादी ने भी सुझाव दिया है।

    सिविल सर्जन, जमुई द्वारा विधिवत पूरक जवाबी हलफनामा इस न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किया है कि अपीलकर्ता / रिट याचिकाकर्ता के पास जिला मजिस्ट्रेट के समक्ष त्वरित वैकल्पिक उपाय उपलब्ध है, जो जिला स्वास्थ्य सोसायटी का अध्यक्ष होता है।

    हालांकि अदालत ने यह भी कहा कि किसी भी संविदा कर्मचारी को किसी वैधानिक नियम या उसके पक्ष में अन्य नियमों के अभाव में समय-समय पर अपने अनुबंध को नवीनीकृत करने का कोई अधिकार नहीं है। इसने आगे कहा कि आधुनिक व्यावसायिक दुनिया में अधिकारियों को एक विशेष क्षेत्र में उनकी विशेषज्ञता के कारण नियुक्त किया जाता है और जो लोग इस तरह कार्यरत हैं वे छोड़ने के लिए स्वतंत्र हैं और नियोक्ता द्वारा छोड़ने के लिए कहा जाता है।

    "संविदात्मक नियुक्ति केवल तभी काम करती है जब दोनों अनुबंध पक्षों के लिए पारस्परिक रूप से लाभकारी हों और अन्यथा नहीं," अदालत ने कहा कि किसी भी संविदा कर्मचारी को तब तक अपने नियमितीकरण का दावा नहीं किया जा सकता जब तक कि समझौते में कोई शर्त न हो या कोई नियम उसी के लिए प्रदान करता हो।

    हालांकि अदालत ने कहा कि अपीलकर्ता की इंगेजमेंट केवल कथित जालसाजी के आधार पर की गई है। अदालत ने अधिकारियों से कहा कि "इस तथ्य के मद्देनजर कि अपीलकर्ता को फर्ज़ी मार्कशीट और कथित जालसाजी के सभी आरोपों से बरी कर दिया गया है, अपीलकर्ता को उपयुक्त प्राधिकारी के समक्ष बर्खास्तगी के विवादित आदेश को चुनौती देने की स्वतंत्रता दी।"

    तथ्यात्मक पृष्ठभूमि

    अपीलकर्ता ने संविदात्मक स्वास्थ्य प्रबंधक पद के लिए चयन प्रक्रिया में भाग लिया, जैसा कि 14.02.2007 में विज्ञापन जारी किया गया। चयन प्रक्रिया में उम्मीदवारों के कार्य अनुभव को ध्यान में रखते हुए वॉक-इन इंटरव्यू और दस्तावेज़ वैरिफिकेशन शामिल था।

    संविदात्मक इंगेजमेंट के नियम और शर्तें विज्ञापन में निर्धारित की गई थीं, जिसमें दो साल का कार्यकाल शामिल है जो पूरा होने पर स्वचालित रूप से समाप्त हो जाएगा, और उम्मीदवार को क्षतिपूर्ति बांड दाखिल करने की आवश्यकता होगी।

    अपीलकर्ता, जिसके पास एमबीए की योग्यता थी, उसे 07 दिनांक 30.08.2007,को निर्दिष्ट शर्तों के साथ जिला मजिस्ट्रेट-सह-अध्यक्ष जिला स्वास्थ्य सोसाइटी, जमुई द्वारा पत्र संख्या 11-2019 द्वारा रेफरल अस्पताल, झाझा में दो साल की अवधि के लिए स्वास्थ्य प्रबंधक के रूप में चुना गया।

    जिला स्वास्थ्य सोसाइटी के दिनांक 15.12.2009 के निर्णय के अनुसार जिला स्वास्थ्य सोसायटी ने बाद में अपीलकर्ता के अनुबंध को तीन साल की अवधि के लिए बढ़ा दिया, जो पहले की संविदात्मक सेवा के समाप्त होने और नए अनुबंध के शुरू होने के बीच एक दिन के अंतराल के बाद था।

    अपीलकर्ता की सेवा के दौरान एक वैरिफिकेशन के दौरान यह पाया गया कि उसने फर्ज़ी और MBA की गलत मार्कशीट के आधार पर संविदात्मक इंगेजमेंट हासिल की थी, जिसके परिणामस्वरूप एक आपराधिक मामला दर्ज किया गया।

    आपराधिक मामले में उसके बरी होने के बाद अपीलकर्ता ने हाईकोर्ट का रुख किया और प्रतिवादी अधिकारियों को उसकी बहाली के लिए एक सकारात्मक निर्देश देने और उसे अनुबंध के आधार पर स्वास्थ्य प्रबंधक के रूप में काम करना जारी रखने की अनुमति देने की मांग की। हाईकोर्ट की सिंगल बेंच ने याचिका खारिज कर दी। इस प्रकार, हाईकोर्ट की एकल पीठ द्वारा उसकी रिट याचिका खारिज किए जाने के बाद अपीलकर्ता ने एलपीए दायर किया।

    सब्मिशन

    प्रतिवादी ने तर्क दिया कि अपीलकर्ता की मार्कशीट संबंधित संस्थान को वैरिफिकेशन के लिए भेजी गई थी, जिसमें बताया गया था कि अपीलकर्ता ने 1800 में से केवल 1065 अंक प्राप्त किए और अपीलकर्ता द्वारा प्रस्तुत मार्कशीट संस्था द्वारा कभी जारी नहीं की गई थी।

    अपीलकर्ता ने दूसरी ओर प्रतिवादी के दावों का खंडन किया और कोर्ट को बताया कि उसने 1800 में से 1303 अंकों वाली कोई मार्कशीट जमा नहीं की। उसने जो एकमात्र मार्कशीट जमा की थी, उससे पता चला कि उसने मुजफ्फरपुर के एलएन मिश्रा कॉलेज ऑफ बिजनेस मैनेजमेंट से एमबीए कोर्स में 1800 में से कुल 1065 अंक हासिल किए थे। अपीलकर्ता ने यह भी तर्क दिया कि चूंकि इतनी सारी सीटों के लिए एमबीए योग्यता रखने वाले कुछ ही उम्मीदवार थे, इसलिए उनके पास जाली और मनगढ़ंत मार्कशीट जमा करने का कोई कारण नहीं था।

    उन्होंने आगे तर्क दिया कि उन्होंने विधिवत प्रमाणित प्रमाण पत्र प्रस्तुत किया था, जो सत्यापित नहीं था। अंत में अपीलकर्ता ने दावा किया कि उसे निचली अदालत द्वारा उचित संदेह से परे सभी आरोपों से बरी कर दिया गया और यह कि उसकी इंगेजमेंट को केवल जाली मार्कशीट के अप्रमाणित आरोपों के आधार पर हटा दिया गया।


    केस टाइटल : कंचन कुमार मिश्रा बनाम बिहार राज्य सिविल रिट क्षेत्राधिकार केस नंबर 14648/2018

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