'आरोपियों को चार्जशीट दाखिल करने के लिए समय बढ़ाने से पहले नहीं सुना गया': कर्नाटक हाईकोर्ट ने बेंगलुरु हिंसा मामले में 115 यूएपीए आरोपियों को डिफॉल्ट जमानत दी

LiveLaw News Network

17 Jun 2021 11:59 AM GMT

  • आरोपियों को चार्जशीट दाखिल करने के लिए समय बढ़ाने से पहले नहीं सुना गया: कर्नाटक हाईकोर्ट ने बेंगलुरु हिंसा मामले में 115 यूएपीए आरोपियों को डिफॉल्ट जमानत दी

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने हाल ही में 11 अगस्त, 2020 को डीजे हल्ली और केजी हल्ली पुलिस स्टेशन की सीमा के भीतर हुई हिंसा के मामले में 115 आरोपियों को दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 167 (2) के तहत डिफॉल्ट जमानत दी है।

    न्यायमूर्ति एस विश्वजीत शेट्टी की पीठ ने एजेंसी को चार्जशीट दाखिल करने के लिए समय बढ़ाने के विशेष एनआईए अदालत के आदेश को पलटते हुए कहा कि,

    "गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम, 1967 की धारा 43-डी (2) (बी) के प्रावधान के तहत अभियोजन पक्ष द्वारा दायर आवेदन पर दिनांक 03.11.2020 को आदेश पारित किया गया, जिसमें जांच पूरी करने के लिए समय बढ़ाने की मांग की गई थी और साथ ही दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 167(2) के तहत याचिकाकर्ताओं द्वारा दायर आवेदन पर विशेष एनआईए कोर्ट, बैंगलोर (सीसीएच-50) द्वारा पारित आदेश दिनांक 05.01.2021 को निरस्त किया जाता है।"

    अदालत ने परिणामस्वरूप याचिकाकर्ताओं द्वारा दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 167 (2) के तहत के डिफ़ॉल्ट जमानत की मांग वाली याचिका में की गई प्रार्थना को स्वीकार कर लिया है। अदालत ने आरोपी को दो लाख रुपये के निजी बॉन्ड भरने और इतनी ही राशि के दो जमानतदार पेश करने की शर्त पर जमानत पर रिहा करने का निर्देश दिया है।

    पीठ ने कहा कि,

    "भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत मान्यता प्राप्त किसी व्यक्ति के मौलिक अधिकार को कानून के अलावा अन्य तरीके से प्रतिबंधित नहीं किया जा सकता है। चूंकि अभियोजन पक्ष द्वारा दायर आवेदन पर ट्रायल कोर्ट द्वारा पारित आदेश के बाद जांच पूरी करने के लिए समय बढ़ाने की मांग की गई पहले से ही कानून के हिसाब से सही नहीं माना जाता है। कानूनी अधिकार जो याचिकाकर्ताओं / अभियुक्तों को पहले 90 दिनों की अवधि के पूरा होने के तुरंत बाद प्राप्त हुआ है, जो कि धारा 167 (2) के तहत एक आवेदन दाखिल करके उनके द्वारा प्राप्त किया गया है। याचिकाकर्ताओं/अभियुक्तों को वैधानिक जमानत मांगने और जमानत देने से इनकार नहीं किया जा सकता है।"

    अदालत ने विशेष अदालत के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें चार्जशीट दाखिल करने के लिए समय को बढ़ाया गया था।

    कोर्ट ने कहा कि,

    "मेरी राय में हितेंद्र ठाकुर के मामले में और संजय दत्त के मामले में सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय वर्तमान मामले के तथ्यों पर लागू होगा। चूंकि जांच पूरी करने के लिए समय बढ़ाने के लिए अभियोजन पक्ष द्वारा दायर आवेदन पर आदेश पारित करने से पहले याचिकाकर्ताओं को सुनवाई का अवसर नहीं दिया गया।"

    कोर्ट ने आगे कहा कि,

    "इसके साथ ही याचिकाकर्ताओं को अदालत के समक्ष उपस्थित नहीं रखा गया, जब अभियोजन पक्ष द्वारा जांच पूरी करने के लिए समय बढ़ाने के लिए दायर आवेदन पर विचार किया जा रहा था और याचिकाकर्ताओं को सूचित नहीं किया गया था कि अभियोजन द्वारा दायर इस तरह के एक आवेदन पर अदालत द्वारा जांच पूरी करने के लिए समय बढ़ाने के उद्देश्य से विचार किया जा रहा है। मेरा विचार है कि जांच पूरी करने के लिए समय बढ़ाने के लिए अभियोजन पक्ष द्वारा 1967 के अधिनियम की धारा 43-डी(2)(बी) के प्रावधान के तहत दायर किए गए आवेदन पर निचली अदालत द्वारा पारित आदेश कानूनी रूप से बरकरार रखने योग्य नहीं है।"

    कोर्ट ने आदेश में कहा कि,

    "न तो आरोपी व्यक्ति और न ही उनका प्रतिनिधित्व करने वाले वकील उक्त तिथि पर ट्रायल कोर्ट के समक्ष उपस्थित थे। अभियोजन पक्ष द्वारा इस तरह के एक आवेदन को दाखिल करने के लिए न तो आरोपी को सूचित किया गया था और न ही उनके वकील को।"

    अदालत ने अभियोजन पक्ष की इस दलील को भी खारिज कर दिया कि इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि विस्तारित अवधि के दौरान अभियोजन पक्ष द्वारा आरोप पत्र पहले ही दायर किया जा चुका था, आरोपी इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए संहिता की धारा 439 के तहत नियमित जमानत के लिए आवेदन कर सकता है। वह चार्जशीट पहले ही दाखिल की जा चुकी है।

    न्यायमूर्ति शेट्टी ने कहा कि,

    "बिक्रमजीत सिंह के मामले में निर्धारित कानून के मद्देनजर केवल इसलिए कि आरोप पत्र दायर किया गया है, यह याचिकाकर्ताओं के मौलिक अधिकार को नहीं छीनेगा।"

    आगे कहा कि,

    "एएसजी की दलीलों में कोई दम नहीं है कि याचिकाकर्ताओं द्वारा दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 167 (2) के तहत वैधानिक जमानत देने के लिए की गई प्रार्थना को इस तथ्य के संबंध में नहीं माना जा सकता है कि चार्जशीट में जांच पूरी करने के लिए बढ़ाई गई अवधि के दौरान दायर किया गया है।"

    मामले की पृष्ठभूमि

    यह मामला पिछले साल बेंगलुरु में एक विधायक के रिश्तेदार द्वारा सांप्रदायिक रूप से संवेदनशील फेसबुक पोस्ट को लेकर हुए दंगों से संबंधित है।

    आरोपी मुज़्ज़मिल पाशा और अन्य को 12 अगस्त, 2020 को गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम, 1967 की धारा 15, 16, 18, 20, भारतीय दंड संहिता की धारा 143, 147, 148, 353, 333, 332, 436, 427, 149 और लोक संपत्ति नुकसान निवारण अधिनियम, 1984 की धारा 4 के तहत दंडनीय अपराधों के लिए गिरफ्तार किया गया है।

    एनआईए ने 3 नवंबर, 2020 को अंतिम रिपोर्ट दाखिल करने के लिए समय बढ़ाने की मांग वाला एक आवेदन दायर किया और उसी दिन उसे अनुमति दे दी गई। आरोपी ने 11 नवंबर को डिफ़ॉल्ट जमानत के लिए एक आवेदन दायर किया, जिसे अदालत ने इस आधार पर खारिज कर दिया था कि एजेंसी को चार्जशीट दाखिल करने के लिए समय बढ़ा दिया गया है।

    आदेश की कॉपी यहां पढ़ें:



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