अभियुक्त को आबकारी मामलों में ताड़ी के 'बी सैंपल' के रासायनिक जांच का कोई अधिकार नहीं है: केरल हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

24 Feb 2021 5:45 AM GMT

  • अभियुक्त को आबकारी मामलों में ताड़ी के बी सैंपल के रासायनिक जांच का कोई अधिकार नहीं है: केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट की खंडपीठ ने विभिन्न एकल पीठ के निर्णय में व्यक्त किए गए अलग-अलग विचारों को समझते हुए कहा है कि ताड़ी की मिलावट से संबंधित मामलों में, अभियुक्त को 'सैंपल बी' के रासायनिक जांच (केमिकल एनालिसिस) करने का कोई कानूनी अधिकार नहीं है।

    केरल आबकारी शॉप्स डिस्पोज़ल रूल्स के नियम 8 के अनुसार, संदिग्ध मिलावट के मामलों में ताड़ी के दो नमूने (सैंपल) लिए जाने चाहिए। रासायनिक जांच के लिए 'ए' लेबल का सैंपल मुख्य रासायनिक परीक्षक को भेजा जाएगा। अन्य सैंपल, जिसे 'बी' लेबल किया गया है, को उप आबकारी आयुक्त के कार्यालय में रखा जाएगा।

    यदि रासायनिक जांच रिपोर्ट में मिलावट पाई जाती है, तो 24 घंटों के भीतर मामला दर्ज किया जाना चाहिए। इसके साथ ही न्यायालय के समक्ष 'बी' सैंपल को भी प्रस्तुत किया जाना चाहिए।

    कई आबकारी के मामलों में, अभियुक्तों ने एक तर्क दिया था कि 'बी' सैंपल को भी जांच के लिए भेजा जाना चाहिए। जब 'बी' नमूने की जांच की जाती है, तो बहुत बार परिणाम में सैंपल 'ए' के जांच का खंडन होता है। कई मामलों में, अदालतों ने 'ए' और 'बी' सैंपलों के परिणामों के बीच विरोधाभास के कारण अभियुक्तों को बरी कर दिया।

    विभिन्न एकल पीठों द्वारा दिए गए परस्पर विरोधी निर्णयों के मद्देनजर, इस मामले को डिवीजन बेंच को भेज दिया गया था।

    अभियोजन पक्ष ने तर्क दिया कि समय के प्रवाह के कारण, रासायनिक अपघटन (Chemical Decomposition) 'बी सैंपल' में होगा, और इसलिए इस सैंपल का देरी से जांच करने पर गलत विश्लेषण प्राप्त होगा।

    जस्टिस ए हरिप्रसाद और जस्टिस एमआर अनीता की खंडपीठ ने संदर्भ का जवाब देते हुए नोट किया कि आबकारी नियमों में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है, जिससे अभियुक्तों को 'बी' सैंपल की जांच का अधिकार मिल सके। नियम केवल 'ए' सैंपल के जांच की अनुमति देता है।

    "स्पष्ट रूप से 'बी' सैंपल प्राप्त करने के लिए लाइसेंसधारी या विक्रेता को सक्षम करने या जांच करना, ऐसा नियम 8 में कोई प्रावधान नहीं है। इसके साथ ही 'बी' सैंपल को जांच के लिए भेजने के लिए न्यायालय से अनुरोध करने के, क्योंकि 'ए' नमूना की रिपोर्ट मिल जाती है और उसके पक्ष में रिपोर्ट नहीं हैं, का नियम 8 में कोई प्रावधान नहीं है।"

    बेंच ने कहा कि,

    "इसलिए हम इस विचार के अनुसार हैं कि विधायिका ने जानबूझकर पुन: सैंपल की जांच करने के लिए किसी पक्ष को विकल्प प्रदान नहीं किया है। इसलिए न्यायालय कोई शब्द क़ानून में नहीं जोड़ सकता है या उन शब्दों को नहीं पढ़ सकता है जो वहां नहीं हैं। यहां तक कि अगर क़ानून में कोई दोष या चूक है, तो अदालत से दोष को ठीक करने या चूक की आपूर्ति करने की उम्मीद नहीं की जाती है और इसके सात ही अभियुक्त को फिर से 'बी' सैंपल के जांच के लिए नहीं भेजा जा सकता है, जैसा कि अधिनियम और नियम में कहा गया है।"

    डिवीजन बेंच ने सात एकल पीठ के निर्णयों को खारिज करते हुए कहा कि,

    "याचिकाकर्ता / अभियुक्त के पास रासायनिक जांच के लिए 'बी' सैंपल भेजने के लिए अनुरोध करने का कोई कानूनी या वैधानिक अधिकार नहीं है। इस न्यायालय द्वारा गिरीश कुमार बनाम केरल राज्य (2010 (3) केएचसी 171), जोशी जॉर्ज बनाम केरल राज्य (2011 (4) केएचसी 818), राजप्पन और अन्य बनाम केरल राज्य (2012 (2) केएचसी 657), हरिकृष्णन आर. वी. बनाम केरल राज्य (2016 (4) केएच 57), संतोष और एक अन्य बनाम केरल राज्य (2020 (1) सीआरएल.एम.सी.2719 ऑफ 2020), सनेश बनाम केरल राज्य ( 2020 (1) केएचसी 289) और विजयन बनाम केरल राज्य (2020 (3) केएलटी 602) मामले में इसके विपरीत निर्धारित किया गया और अच्छा कानून नहीं माना गया था, लेकिन संतोष टी.ए और अन्य बनाम केरल राज्य (2017 (5) केएचसी 107) मामले में इस सही कानून माना गया था। सुधाकरन और अन्य बनाम केरल राज्य (2011) ) केएचसी 610) मामले में निष्कर्ष निकालते हुए कहा गया कि सैंपल 'बी' के रासायनिक परीक्षक की रिपोर्ट को, सैंपल 'ए' के रासायनिक जांच की रिपोर्ट के ऊपर मान्यता नहीं दी जा सकती है। कोर्ट ने आदेश में कहा कि यह रिपोर्ट स्वीकार्य है और इस कोर्ट के समक्ष प्रस्तुत कर दिया गया है कहा जाता है कि शीर्ष न्यायालय के समक्ष लंबित है, हम उस संबंध में कोई और अवलोकन नहीं कर सकते हैं।"

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